पं. गोविंदलाल व्यास “व्यास जी’
पं. गोविंदलाल व्यास जी का जन्म सन् 1918 को राजस्थान के नागौर जिले में हुआ। इन्होंने हिन्दी में स्नातकोत्तर तक शिक्षा प्राप्त की तथा राजस्थानी हिन्दी विद्यालय, चौक-कसारहट्टा में लिपिक के पद पर कार्यरत रहे।
पं.गोविंदलाल व्यास 1947 में हैदराबाद शहर में ाान्ति लाने के लिए संकल्पबद्घ थे। उनके आदर्श थे, सुभाषचन्द्र बोस। उन्होंने कुछ साथियों को साथ लेकर एक छोटा-सा ग्रुप बनाया, जिसका कोई नाम नहीं था। काम था, ाान्ति के लिए जनमत तैयार करना। इस कार्य के लिए वे गुप्तरूप से “हस्त पत्रक’ छपवाकर हिन्दी, उर्दू, तेलुगु भाषी जनता में गुप्त-रीति से वितरण करते थे। इन पत्रकों में जहां निजाम के अत्याचार का भांडा-फोड़ किया जाता था, वहीं अंग्रेजी-शासन की बुराइयां बता कर उनके प्रति घृणा पैदा की जाती थी।
लोगों को इस दुहरी गुलामी की जंजीरों को तोड़ने के लिए अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित हो, संगठित रूप से धावा करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता था। इस कार्याम को यथासंभव कार्यान्वित करने के लिए उन्हें सहायता दी जाती थी। यह कार्य एक वर्ष तक भली-भांति निर्विघ्न रूप से चलता रहा। निजाम की पुलिस हैरान व परेशान थी। परन्तु पं. गोविंदलाल की एक छोटी-सी भूल और सी.आई.डी. की सतर्कता के कारण एक दिन शहर के 15 घरों पर एकसाथ छापा मारा गया, जिनमें सर्व श्री स्वामी रामानन्द तीर्थ, काशीनारायण वैद्य, हरिश्र्चन्द्र हेड़ा, बिरधीचन्द्र चौधरी, कोण्डा लक्ष्मण बापू जी, बुलगुल रामकृष्ण राव, श्री निवासचारी “वकील’, कृष्णमचारी, जयचन्द्र जैन, दिवाकर तोरणीकर, वैद्य गोवर्धन शर्मा आदि के निवास शामिल थे। बेगम बाजार में गोविंदलाल व्यास के घर पर उक्त पत्रक की प्रतिलिपि मिली तथा जयचन्द्र जैन के यहां से मन्मथनाथ गुप्त की “ाान्ति का इतिहास’ पुस्तक जब्त की गई। पं. गोविंदलाल व्यास को उसी समय गिरफ्तार कर लिया गया। अपने एकमात्र पुत्र गोविंदलाल की गिरफ्तारी का उनके बीमार पिता पं. रामचन्द्र जी व्यास को गहरा आघात पहुँचा और उनके प्राण-पखेरू उड़ गये।
मुक्ति-संग्राम के योद्घाओं से 1942 में निजाम सरकार बहुत ही भयभीत हो गई थी। उस पर लगाये गये मुकदमों की सुनवायी खुली अदालत के बजाय सेंटल जेल, चंचलगुड़ा के बंद कमरे में हुई। इस मुकदमे में पं. गोविंदलाल व्यास को 6 मास सश्रम कारावास की स़जा हुई, अवधि समाप्त होने पर उन्हें मुक्त किया गया।
पं. गोविन्दलाल व्यास ने सन् 1947 के आंदोलन में भूमिगत हो राजा बदरीविशाल पित्ती, कोण्डा लक्ष्मण बापू, डी.डी.बी. रायपल्ली आदि के साथ रेडियो-प्रसारण एवं बमों के निर्माण का कार्य किया। श्री व्यास जी राजनीति में जहां उग्र ाान्तिकारक साबित हुए, तो वहीं धार्मिक क्षेत्र में कट्टर सनातनी। आज भी वे 85 वर्ष की उम्र में नियमित रूप से प्रातःकाल “श्री बालकिशन लाल मंदिर’ बेगम बाजार में श्रीमद्भागवत् का पाठ करते हैं। वे निष्काम कर्म करते रहते हैं। प्रसिद्घि से उन्हें चिढ़-सी है।
भारत सरकार द्वारा प्रदान किया जाने वाला “स्वतंत्रता सेनानी पेंशन’ सम्मान लेने से भी इन्होंने मना कर दिया। घर वालों व दोस्तों के इस हेतु दबाव या आग्रह करने पर वे कहते हैं, “”भारत-माता को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराने के लिए कोई भी राशि या जमीन एवं “सम्मान’ आजीवन स्वीकार नहीं करूंगा।”
– जी. राजगोपाल व्यास
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