कमरे में हल्की-सी रोशनी का वर्चस्व था। चहुंओर सन्नाटा छाया हुआ था। ललित अपनी रेस्ट चेयर पर बैठा एकटक छत पर लगे गाटरों की ओर देखे जा रहा था। उसके हाथों में शादी का कार्ड था। यह उसी मोनिका की शादी का कार्ड था, जो कभी ललित के लिए अपनी जान न्योछावर करने के लिए तैयार रहती थी, जिसने कभी ललित के साथ जीने-मरने की कसमें खाईं थीं। ललित ने उस कॉडर्र् को कई बार पढ़ा और अतीत की गहराइयों में खो गया।
ललित का उस दिन कॉलेज में प्रथम-दिवस था। वह लाइब्रेरी में समाचार-पत्र पढ़ रहा था। अखबार पढ़ते-पढ़ते यकायक उसकी नजर एक सुंदर-सी लड़की की ओर चली गयी, जो लगातार उसी की ओर देख रही थी। न जाने क्यों ललित को उसका इस तरह से देखना अच्छा नहीं लगा और वह वहॉं से उठकर कैंटीन में चला गया। वह भी उसके पीछे कैंटीन में आकर ठीक उसके सामने वाली कुर्सी पर बैठ गयी और उसे एकटक देखने लगी। हिन्दी के पीरियड का समय हो गया था। इसीलिए वह बगैर चाय पीये वहॉं से उठकर सीधा कक्षा में चला गया। वह सबसे आखिरी बेंच पर आकर बैठ गया। अचानक उसकी नजरें बगल वाली बेंच की ओर गयीं, जहां उसे वही लड़की बैठी हुई दिखाई दी। वह लगातार ललित को ही निहारे जा रही थी। ललित को उस अनजान लड़की की इस हरकत पर बहुत ाोध आ रहा था। पीरियड समाप्त हुआ। ललित कक्षा से बाहर निकला ही था कि पीछे से उस लड़की ने पुकारा, “”हैलो ललित कैसे हो?” ललित उसकी आवाज को अनसुना करके वहां से नौ दो ग्यारह हो गया। घर पहुँच कर उस लड़की के बारे में सोचने लगा।
अगले दिन भी वह लड़की ललित को कदम-कदम पर एकटक देखती रही और यह ाम कई दिनों तक चलता रहा। वह ललित को देखने का कोई मौका नहीं छोड़ती, मगर वह हर बार उसकी नजरों से बचने का प्रयास करता रहता था। एक दिन सायकोलॉजी का पीरियड खत्म होने के पश्र्चात वह घर जाने लगा, तो उस लड़की ने हाथ पकड़ कर कहा, “”ललित कहॉं जा रहे हो, क्या मुझसे कोई गलती हो गई है?” “”आप क्यों मेरे पीछे पड़ी रहती हैं? क्यों मुझे तंग करती रहती हैं?” ललित अपना गुस्सा जाहिर करते हुए पूछने लगा, “”मेरा नाम मोनिका है। जब मैंने आपको पहली बार देखा, तभी से आपसे प्रेम करने लगी हूं, लेकिन कभी अपने प्यार को आपके सामने कबूल नहीं कर पायी।” उस समय तो ललित उसे कुछ बताये बिना ही उससे हाथ छुड़वा कर चला, परंतु उसके हाथ का स्पर्श अभी तक महसूस कर रहा था। एक दिन उचित अवसर पाकर उसने भी अपने दिल का हाल मोनिका को बता डाला। फिर तो दोनों प्यार का झूला झूलने लगे और पत्रों का आदान-प्रदान आरंभ हो गया। कुछ ही दिनों में दोनों का प्यार आकाश की ऊँचाइयों को छूने लगा। दोनों ने एक साथ जीने-मरने की कसमें खाईं और कई वायदे किये।
एक दिन मोनिका के पिता की सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गयी। इससे उन दोनों के प्यार को विराम लग गया। चूंकि मोनिका संयुक्त परिवार से संबंध रखती थी। इसलिए पिता की मृत्यु के बाद उसके परिवार वाले उसकी शादी जल्दी कर देना चाहते थे। ललित बेरोजगार था। वह चाहते हुए भी मोनिका के लिए कुछ नहीं कर सका और एक नौकरीपेशा युवक से मोनिका की शादी निश्र्चित कर दी गयी। शादी के कॉर्ड छप चुके थे।
मोनिका चाहकर भी इस विवाह का प्रतिरोध नहीं कर पायी, क्योंकि वह भी विवश थी। उसने अपनी विवशता का रोना रोकर ललित के प्यार की कुर्बानी दे दी। उसके सारे अरमान धूल-धूसरित हो गये। उसके पास कोई और चारा नहीं था। वह ललित से केवल इतना ही कह पाई, “”ललित, प्लीज मुझे माफ कर देना। हमने जो सपने संजोये थे, वे सब मेरी मजबूरी रूपी दीवार के ढहने से समाप्त हो गये हैं। संभव हो सके तो मुझे माफ कर देना।”
अतीत के इन पलों को याद करके उसकी आँखों से आंसू टपक पड़े। वह पूरी तरह टूट चुका था, क्योंकि उसके प्यार ने तो “मुझे माफ कर देना’ कहकर बात खत्म कर दी थी, परंतु उसे तो पुरानी यादें कचोट रही थीं। उसने सामने टेबल पर रखी शराब की बोतल उठाई और पूरी की पूरी एक ही सांस में गटक गया।
– पंकज जैन
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