मेघालय में यूरेनियम खनन में गतिरोध

भारतीय यूरेनियम निगम (यूसी आईएल) ने मेघालय के पश्चिमी खासी जिले में वाखीन इलाके से लेकर माउथाबान इलाके तक उच्च गुणवत्तायुक्त यूरेनियम का पता लगाया है। मेघालय का यूरेनियम भंडार भारत के कुल यूरेनियम भंडार का 16 प्रतिशत है। वर्ष 1992 में यूसीआईएल ने यूरेनियम की खोज करने के लिए अभियान शुरू किया था और यह अभियान 14 वर्षों तक चलता रहा। यूसीआईएल ने जब व्यावसायिक स्तर पर यूरेनियम खनन का कार्य शुरू करने की घोषणा की तो मेघालय के जनसंगठन विरोध करने के लिए सड़कों पर उतर आए। यूसीआईएल ने कई बार मेघालय की जनता और जनसंगठनों को खनन की जरूरत के बारे में समझाने का प्रयास किया मगर हर बार उसे नाकाम होना पड़ा। स्थानीय लोग खनन का विरोध इसलिए कर रहे हैं चूंकि उन्हें लगता है कि इसके दुष्प्रभाव से मेघालयवासियों का जीना मुहाल हो सकता है।

अपने परमाणु कार्यक्रम को चलाने के लिए और ऊर्जा की जरूरत पूरी करने के लिए भारत को यूरेनियम की जरूरत है। देश में यूरेनियम पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं होने के कारण सरकार मेघालय के यूरेनियम भंडार का इस्तेमाल करना चाहती है। लेकिन सरकार स्थानीय लोगों को यह समझा पाने में विफल रही है कि यूरेनियम खनन से स्थानीय आबादी को कोई नुकसान नहीं होगा। यही वजह है कि हाल के दिनों में केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय और यूसीआईएल को खनन का कार्य शुरू करते ही रोकना पड़ा है। खनन के मुद्दे पर गतिरोध बना हुआ है और जब तक सरकार मेघालय के नागरिकों को खनन की वजह से स्वास्थ्य एवं पर्यावरण को होने वाले नुकसान के बारे में आश्र्वस्त नहीं कर पाती, तब तक लगता नहीं है कि खनन का कार्य सफलता पूर्वक शुरू हो पाएगा।

हाल ही में राज्य के जनसंगठनों को खनन के खतरों के संबंध में आश्र्वस्त करने के लिए केन्द्र सरकार के प्रतिनिधि के रूप में परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष अनिल कौकोधर और केन्द्रीय कैबिनेट सचिव के. एम. चन्द्रशेखर मेघालय के दौरे पर आए थे। वे भी माहौल को अनुकूल बनाने में असफल रहे। दोनों ने शिलांग में मेघालय सरकार और गैरसरकारी संगठनों के प्रतिनिधियों से बातचीत की और यूसीआईएल को कीलिंग-पीनडेंग-सो हियोंग संयंत्र में यूरेनियम खनन कार्य शुरू करने की अनुमति देने के लिए कहा। उन्होंने राज्य की प्रभावशाली क्षेत्रीय पार्टियों-हिल स्टेट पीपुल्स डेमोोसी पार्टी (एचएसपीडीपी) और के एचएनएएम के अलावा खासी छात्र संघ (केएसयू) के नेताओं से भी बातचीत की। सभी संगठनों ने एक स्वर में खनन कार्य का विरोध जताया।

केएसयू ने केन्द्र सरकार के दोनों प्रतिनिधियों से मिलने के बाद कहा कि मेघालय की जनता की सुरक्षा की परवाह किए बिना केन्द्र सरकार जल्दबाजी में खनन का काम शुरू करना चाहती है। केएसयू ने कहा कि वह खनन की योजना का भविष्य में भी विरोध करता रहेगा और केन्द्र के लिए यही बेहतर होगा कि वह इस योजना को रद्द कर दे। पश्चिम खासी जिले के यूरेनियम भंडार वाले 15 गांवों में सिाय गैर-सरकारी संगठन लांग्रीन यूथ वेलफेयर एसोसिएशन (एलवाईडब्ल्यूए) ने भी केएसयू के सुर में सुर मिलाया।

इन संगठनों का मानना है कि खनन कार्य के दौरान रेडियोधर्मी पदार्थ आसपास के इलाकों में फैलेंगे जिसकी वजह से लोगों का स्वास्थ्य चौपट हो जाएगा। इसके साथ ही रेडियोधर्मी पदार्थ के प्रभाव से पर्यावरण भी नष्ट हो जाएगा। इन संगठनों का मानना है कि यूरेनियम खनन का दीर्घकालीन दुष्प्रभाव मेघालय की आबादी को झेलना पड़ सकता है। वे कई घटनाओं का उदाहरण देकर अपने तर्क को उचित ठहराते हैं। ज्ञातव्य है कि झारखंड के जादूगोडा में यूरेनियम खनन की वजह से स्थानीय ग्रामीणों को कई तरह की बीमारियों का सामना करना पड़ रहा है। अगर “असुरक्षित खनन’ का दुष्प्रभाव जादूगोडा की आबादी पर पड़ सकता है तो मेघालय की आबादी भी उससे अछूती नहीं रह सकती।

पश्र्चिम खासी जिले में 1992 में जब यूरेनियम का पता लगाने के लिए प्रयोग किया जा रहा था, उस समय भी कुछ गांवों में बच्चे बीमार हो गए थे। किनसी और रीलांग नदियों में खुदाई का काम किया गया था, जिसकी वजह से दोनों नदियों की मछलियां मर गई थीं।

हालांकि यूसीआईएल का तर्क है कि यूरेनियम खनन का काम सुरक्षित तरीके से चलाया जाएगा और इसका कोई विपरीत प्रभाव आबादी या पर्यावरण पर नहीं पड़ेगा। लेकिन स्थानीय जनसंगठन इस तर्क को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं। मेघालय में कोयला खनन का दुष्प्रभाव लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ा है और पर्यावरण को भी नुकसान पहुँचा है। कोयला खनन के अनुभव के आधार पर राज्य के जनसंगठन मानते हैं कि खनन कार्य के दौरान आम लोगों के हितों की परवाह नहीं की जाती और यूरेनियम खनन के दौरान भी लापरवाही बरती जाएगी जिसका खामियाजा मेघालय के लोगों को भुगतना पड़ेगा। जिन इलाकों में सरकार यूरेनियम खनन करना चाहती है उन इलाकों में आधारभूत ढांचे का विकास करने के लिए केन्द्र सरकार ने 800 करोड़ रुपये का आर्थिक पैकेज देने की घोषणा की है, लेकिन इस पैकेज के जरिए भी सरकार जनमत को खनन के पक्ष में मोड़ पाने में सफल नहीं हो पाई है।

– दिनकर कुमार

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