मेडिकल टूरिज्म की आय से गरीबों का भला हो

एशियाई देशों में, खासकर भारत में “मेडिकल’ टूरिज्म’ ते़जी से फल-फूल रहा है। इसका प्रमुख कारण यह है कि पश्र्चिम के देशों में खासकर अमेरिका, कनाडा और ब्रिटेन में चिकित्सा का खर्च दिनोंदिन आसमान छूता जा रहा है। अमेरिका, कनाडा और ब्रिटेन के लोगों ने अनुभव से पाया कि एशियाई देशों में खासकर भारत, थाईलैंड और सिंगापुर में मरीजों का उपचार ठीक उसी स्तर का होता है जितना उनके देशों में होता है और इस उपचार में खर्च इन देशों पर होने वाले चिकित्सा के खर्च की तुलना में 15 प्रतिशत है। कभी-कभी तो उससे भी कम खर्च पर भारत जैसे देशों में जहॉं के कुछ अस्पताल संसार के सर्वश्रेष्ठ अस्पतालों की बराबरी के हैं, मरीजों का इलाज हो जाता है।

अमेरिका जैसे देश में “मेडिकल इंश्योरेंस’ का खर्च बहुत अधिक है। अतः वहॉं पर कई लाख ऐसे नागरिक हैं जिन्होंने अपना मेडिकल इंश्योरेंस नहीं कराया हुआ है। लाखों ऐसे मरीज हैं जिनका मेडिकल इंश्योरेंस नाममात्र का है और किसी बड़े ऑपरेशन में अमेरिका जैसे देश में इतना अधिक खर्च होता है कि इंश्योरेंस की रकम से वह पूरा नहीं हो पाता है। करीब-करीब यही स्थिति ब्रिटेन में रहने वाले नागरिकों की भी है। सबसे सुखद बात तो यह है कि अमेरिका, कनाडा और ब्रिटेन में यदि किसी मरीज के हृदय का “बाईपास’ ऑपरेशन होना हो तो उसे महीनों इंतजार करना पड़ता है। सरकारी या प्राइवेट अस्पतालों में सब काम कतार में लगकर होता है। वहॉं कोई पैरवी नहीं चलती है और जब तक मरीज के ऑपरेशन का समय आता है तब तक देर हो चुकी होती है और अधिकतर मरीजों का देहान्त हो जाता है। यही बात कैंसर के रोगियों में भी देखी गयी है। इसी कारण अमेरिका जैसे देश से गंभीर बीमारी के इलाज के लिये गत वर्ष 7 लाख 50 ह़जार मरीज एशियाई देशों में आए। उम्मीद की जाती है कि सन् 2010 तक इनकी संख्या 60 लाख हो जाएगी। इन मरीजों में से अधिकतर मरीज भारत आए थे। क्योंकि भारत की चिकित्सा पद्घति पर उन्हें पूरा विश्र्वास है और दिल्ली और मुम्बई जैसे शहरों के बड़े अस्पताल मामूली फीस पर इन विदेशियों का संतोषजनक उपचार कर देते हैं। एक प्रामाणिक सर्वे के अनुसार मेडिकल टूरिज्म की बढ़ती हुई प्रवृत्ति के कारण अमेरिका, कनाडा और ब्रिटेन से प्रति वर्ष 21 बिलियन डॉलर की आमदनी एशियाई देशों को होती है जिसमें भारत का स्थान प्रमुख है। ब्रिटेन सहित यूरोप के अधिकतर देशों में नागरिकों की चिकित्सा का भार सरकार पर है। क्योंकि ये सारे देश “वेलफेयर स्टेट्स’ कहलाते हैं। परन्तु अनुभव से पाया गया है कि ब्रिटेन सहित यूरोप के सभी देशों में अस्पतालों का बुरा हाल है। मरीजों का समय पर इलाज नहीं हो सकता है जिसके कारण लाखों मरीज असमय ही मौत के मुंह में समा जाते हैं। अतः यूरोपीय देशों के नागरिकों में भी “मेडिकल टूरिज्म’ की प्रवृत्ति बढ़ रही है।

जैसा कि ऊपर कहा गया है, मेडिकल टूरिज्म में अधिकतर पश्र्चिमी देशों के मरीज भारत, थाईलैंड और सिंगापुर आते हैं। सारे संसार में भारत के डॉक्टरों की प्रसिद्घि है। अमेरिका, कनाडा और ब्रिटेन में यदि कोई मरीज बीमार होता है और उसका ऑपरेशन कोई भारतीय डॉक्टर करता है तो उसकी आधी बीमारी पहले ही दूर हो जाती है, क्योंकि वह समझता है कि भारतीय डॉक्टर के हाथों वह सुरक्षित है। एशियाई देशों में थाईलैंड के निजी अस्पतालों की बहुत अधिक प्रसिद्घि है। यहॉं एक दिलचस्प तथ्य जो भारत में कम लोगों को पता है वह यह कि थाईलैंड के सभी बड़े सरकारी और निजी अस्पतालों में प्रमुख स्थान भारतीय डॉक्टरों का है। उन्हें मोटी तनख्वाह मिलती है और उनकी क्षमता के बारे में लोगों को पूरा विश्र्वास है। बैंकाक का “बूम रंग रेड’ अस्पताल संसार के शीर्षस्थ अस्पतालों में से एक है जहॉं पर 50 प्रतिशत से अधिक डॉक्टर भारतीय हैं। इन डॉक्टरों की एक विशेषता यह भी है कि ये आसानी से थाई भाषा सीख लेते हैं और मरीजों की समस्याओं को समझने में उन्हें कोई परेशानी नहीं होती है। उसी तरह सिंगापुर के अधिकतर अस्पतालों में या तो भारतीय डॉक्टर हैं या भारतीय मूल के डॉक्टर हैं, जिनके पूर्वज प्रायः 100 वर्ष पहले अंग्रेजों के द्वारा रबर के बागानों में काम करने के लिये लाये गये थे। “हार्ट बाईपास सर्जरी’ और घुटनों की सर्जरी में सिंगापुर के अस्पतालों की बड़ी प्रसिद्घि है।

“मेडिकल टूरिज्म’ की सबसे बड़ी विशेषता है कि एशियाई देश, खासकर भारत जैसे देश में मरीजों का एक तो तुरन्त इलाज हो जाता है और दूसरे, एक्सरे सहित सारे मेडिकल टेस्ट भी तुरन्त हो जाते हैं। यही नहीं, बाईपास सर्जरी जैसे ऑपरेशन के बाद दिन में कम से कम 4 बार डॉक्टर और नर्सें उन्हें देखने और उनका हालचाल पूछने के लिए आते रहते हैं। पश्र्चिम के देशों में यह संभव नहीं है। किसी भी मरीज को हार्दिक प्रसन्नता होती है यदि थोड़ी-थोड़ी देर के बाद उसका हालचाल पूछा जाता है। और यदि उसके इलाज के दौरान कोई कठिनाई पैदा हो जाती है तो सारे अस्पताल के बड़े डॉक्टर उसे सुलझाते हैं और ़जरूरत पड़ने पर फिर से ऑपरेशन कर देते हैं। ऑपरेशन के बाद भी पूर्णतः स्वस्थ हो जाने तक मरीज को पूरे आदर और सम्मान के साथ अस्पताल में रखा जाता है। यही नहीं, भला-चंगा होने के बाद भी उस विदेशी मेहमान को भारत के मुख्य पर्यटन स्थलों पर घूमने की सुविधा दी जाती है और उन्हें घुमाने के लिए योग्य “गाइड’ उपलब्ध कराये जाते हैं। अमेरिका, कनाडा और ब्रिटेन में कोई मरीज इस तरह के वीआईपी आवभगत और देखभाल की उम्मीद भी नहीं कर सकता है। यही नहीं, पूरी तरह स्वस्थ और चंगा हो जाने के बाद जब ये मरीज अपने देशों को लौट जाते हैं तो इंटरनेट या कम्प्यूटर के द्वारा कोई कठिनाई होने पर उस भारतीय अस्पताल के डॉक्टरों से संपर्क करते हैं जहॉं उनका इलाज हुआ था। पश्र्चिम के देशों में इस तरह की देखभाल संभव नहीं है। इस कारण भी पश्र्चिम के अधिक से अधिक लोग “मेडिकल टूरिज्म’ के लिए एशियाई देश खासकर भारत आ रहे हैं। फिलीपीन्स की नर्सें बड़ी दक्ष होती हैं। अतः अधिकतर एशियाई देशों में या तो फिलीपीन्स या केरल की नर्सें बहाल की जाती हैं, जो फर्राटे से अंग्रेजी बोल लेती हैं और मरीजों की पूरी देखभाल करती हैं।

चिकित्सा के क्षेत्र में सबसे अधिक प्रसिद्घ विश्र्वविद्यालय अमेरिका का “जॉन्स हॉपकिन्स’ विश्र्वविद्यालय’ है। वहॉं पर सैकड़ों भारतीय डॉक्टर कार्यरत थे। हाल के वर्षों में अधिकतर डॉक्टरों ने नौकरी छोड़ दी और वे भारत के बड़े अस्पतालों में आ गये। विश्र्वविद्यालय ने भारत में ही कई मेडिकल सेंटर खोल दिये जिससे विदेशी मरीजों का जो “मेडिकल टूरिज्म’ के नाम पर भारत आते हैं, अच्छी तरह इलाज हो सके।

“मेडिकल टूरिज्म’ के मामले में वैश्र्वीकरण का पूरा उपयोग किया जा रहा है। “आउटसोर्सिंग’ के द्वारा चिकित्सा की कई रिपोर्टों का “विश्र्लेषण’ या एक्सरे का “एनालिसिस’ अब भारत में ही किया जा रहा है। अमेरिकी अस्पतालों के लिए ऐसा करना बहुत ही किफायती और फायदेमंद है। उन्हें यह भी पता है कि उलझे हुए मामलों में भारत के डॉक्टर जो “एनालिसिस’ करेंगे वह शत- प्रतिशत सही होगा। कम्प्यूटर के द्वारा किसी भी मरीज की बीमारी का पूरा विवरण “आउटसोर्सिंग’ के माध्यम से भारत के अस्पतालों को भेज दिया जाता है। भारतीय डॉक्टर उसका विश्र्लेषण कर अपनी राय अमेरिकी अस्पतालों को भेज देते हैं। इस पद्घति से एशियाई देशों में सबसे अधिक फायदा भारत को हुआ है। भारत में अमेरिका, कनाडा और ब्रिटेन के मरीज तो आते ही हैं, खाड़ी के देशों के मरीज भी भारी संख्या में आते हैं। उनके पास तेल के कारण अकूत धन है। अतः सारे अस्पताल के डॉक्टर और नर्स उनकी पूरी देखभाल करते हैं। निःसंदेह मेडिकल टूरिज्म के कारण इन अस्पतालों को अप्रत्याशित आमदनी हो रही है। परन्तु यह अत्यंत दुःख की बात है कि ये सारे अस्पताल गरीब मरीजों की अनदेखी कर रहे हैं। पहले इन सभी अस्पतालों में कम से कम 10 प्रतिशत गरीब मरीजों का निःशुल्क इलाज होता था। अब एक प्रतिशत मरीज का भी निःशुल्क इलाज नहीं होता है। यदि कोई गरीब मरीज इन अस्पतालों में इलाज के लिए जाता है तो उसे यह कह कर दुत्कार दिया जाता है कि कोई बेड खाली नहीं है। यह एक अत्यंत ही गंभीर समस्या है और सरकार को एक कानून बनाकर देश के बड़े अस्पतालों को बाध्य करना चाहिए कि वह कम से कम 10 प्रतिशत गरीब मरीजों का निःशुल्क इलाज इन अस्पतालों में करें। यही नहीं, “मेडिकल टूरिज्म’ जिस तरह लोकप्रिय हो रहा है, भारत के छोटे शहरों जैसे लखनऊ, पटना,चंडीगढ़, पुणे आदि में भी अस्पतालों को मजबूत किया जाए। वहां आधुनिकतम चिकित्सा की मशीनें लगाई जाएं जिससे धीरे-धीरे इन अस्पतालों में भी मेडिकल टूरिज्म आ सकें। कुल मिलाकर मेडिकल टूरिज्म का भविष्य भारत में अत्यंत ही उज्ज्वल है। आवश्यकता यह है कि पैसा कमाने की होड़ में ये अस्पताल कहीं गरीब मरीजों के प्रति बेरुखी अपनाना नहीं शुरू कर दें।

– डॉ. गौरीशंकर राजहंस

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