कुछ बच्चे धनुष-बाण लेकर खेल रहे थे। तभी वहॉं से एक बूढ़ा व्यक्ति कमर झुकाकर, ऩजरें झुकाकर गुजरा। बच्चों ने देखा उसकी गर्दन झुकी हुई है, कमर झुकी हुई है और ऩजरें भी झुकी हुई हैं, तो उन्होंने पूछा, “बाबा! तुम्हारा क्या कुछ खो गया है, जिसे तुम ढूंढ रहे हो और तुमने यह तीर-कमान कितने में खरीदा है?’ उस बूढ़े व्यक्ति की झुकी हुई कमर को बच्चों ने मजाक में “तीर-कमान’ की उपमा दी। उस बूढ़े इंसान का बच्चों ने अच्छा-खासा मजाक बनाया, पर वह बूढ़ा व्यक्ति एकदम शांत रहा। उसने कहा, “हॉं बेटा! मेरी कुछ चीज खो गई है और मैं उसे ही झुक-झुककर ढूँढ़ता फिरता हूँ कि वह कहॉं खो गई?’
बच्चों ने पूछा, “बाबा! वो क्या चीज है, जो खो गई?’ बुजुर्ग ने कहा, “बेटा! वह जवानी है। मेरी जवानी खो गई है। मैं उसे ही ढूँढ़ता फिरता हूँ और इसीलिए मैं हमेशा झुक-झुककर चलता हूँ और बेटा, मैं तुमसे भी कहता हूँ कि यह चीज थोड़े दिनों बाद तुम्हें भी मिलेगी, इसे जरा संभालकर रखना। बड़ी नाजुक है। जरा-सी ठोकर लगते ही बिखर जाती है। बड़ी अल्पजीवी है, पलक झपकते ही खो जाती है। बड़ी मनमोहक है, लेकिन इसकी गफलत में कभी मत आना, वरना पछताना पड़ेगा। और तुमने पूछा था न कि ये तीर-कमान कितने में खरीदा है! बेटा! ये तो मुफ्त में ही मिलता है। मुझे भी मिला है और तुम चिन्ता मत करना, थोड़े दिनों बाद तुम्हें भी मिलेगा। और फिर तुम परेशान हो जाओगे कि मुझे ये तीर-कमान क्यों मिला? और जब तुमसे कोई पूछेगा कि बाबा! तुमने ये तीर-कमान कितने में खरीदा, तो तुम्हें मेरी बाते जरूर याद आएँगी। किसी की हंसी उड़ाने की भूल कभी मत करना।’
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