मैं अकेला हूँ

राजा ययाति ने ऋषि ध्रौव्य से पूछा, “”आपके चेहरे पर बहुत शांति है। इसका कारण क्या है?

ऋषि ने कहा, “”मैं एक नहीं अनेक गुरुओं का अनुयायी हूं। उन गुरुओं में एक गुरु एक कन्या है। उससे मुझे एक बोधपाठ मिला है, इसलिए मैंने उसे अपना गुरु बनाया।”

राजा ने कहा, “”कैसा बोधपाठ?”

ऋषि ने कहा, “”उस कन्या का वृद्घ पिता अस्वस्थ था। जब वह कन्या अनाज पीसने के लिए चक्की चलाती तो उसके हाथ की चूड़ियों की आवाज पिता की नींद में बाधा करती। उस कन्या ने हाथ की उन चूड़ियों को उतार दिया और मात्र एक-एक चूड़ी दोनों हाथों में रखी। जहॉं एक होता है, वहां आपसा की रगड़ समाप्त हो जाती है।”

यही बात जैन कथाओं में आती है। नमि राजर्षि को भीषण दाह ज्वर हो गया। वैद्यों ने उपचार बताया, महाराज की रानियॉं अपने हाथों से बावना चंदन घिस कर उसका लेप महाराज के शरीर पर करें तो ज्वर का प्रकोप शांत हो सकता है। चंदन घिसने का उपाम शुरू हुआ। रानियों ने चंदन घिसना शुरू किया। लेकिन दूसरी समस्या शुरू हो गयी। चंदन घिसते समय रानियों के हाथ में पहनी चूड़ियों की खनखनाहट राजा को असह्य हो गयी। उनको राजा ने आवाज बंद कराने का आदेश किया।

रानियों ने तत्काल अपने हाथ की चूड़ियां उतार दीं। सुहाग चिह्न के रूप में मात्र एक-एक चूड़ी हाथ में रखी। आवाज बंद हो गयी। राजा ने पूछा, क्या चंदन घिसना बंद कर दिया गया?”

जवाब मिला, “”नहीं महाराज, चंदन तो अब भी घिसा जा रहा है।”

“”रानियों ने अतिरिक्त चूड़ियॉं हाथों से निकाल दीं। केवल सुहाग की एक-एक चूड़ी उनके हाथों में हैं।” प्रस्तुति – बालकवि वैरागी

 

– आचार्य महाप्रज्ञ

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