मैं ग्वालो रखवालो मैय्या, माखन नाहीं चुरायो।
माखन नाही चुराये॥ टेर ॥
कौन कमि माखन की अपने, जो मैं पर घर जाऊँ।
राम में तेरे चाहूँ जितनो, खाऊँ और खिलाऊँ॥
वो मुर्ख अज्ञानी जिसने, मुझको चोर बतायो॥ 1 ॥
बृज को माखन मेरो माखन, नाहीं ये बरजोरी।
है अधिकार जन्म को मेरो, कौन कहे ये चोरी॥
चोर ना होवे लाल तिहारों, काहे मन भरमाया॥ 2 ॥
तुँ मैय्या, मेरे प्रेम की ज्योति, हम सब तेरी किरणें।
तेरे आँचल की छाया के, बहते सुख के झरनें॥
तेरे चरणों की रज में मैय्या, सारो स्वर्ग समायो॥ 3 ॥
You must be logged in to post a comment Login