मैं आज तक यह नहीं समझ पाया कि वह मेरी ज़िन्दगी का सबसे सौभाग्यशाली दिन था या मनहूस। शाम के पॉंच बजने वाले थे। लगभग सभी लड़कियॉं ट्यूशन पढ़ने के लिए आ चुकी थीं। मैंने बोर्ड पर कुछ लिखने के लिए व्हाइट बोर्ड मार्कर उठाया ही था कि मेरे कानों में एक अपरिचित, लेकिन मधुर आवाज गूंजी। बरबस ही मैं घूम गया और उस लड़की का चेहरा देखा तो न जाने क्यों मेरा दिल अनजानी खुशी से भर गया। यह मेरे लिए एक नयी बात थी। पिछले कई सालों से मैं ट्यूशन पढ़ा रहा था। अब तक न जाने कितनी लड़कियॉं मेरे पास ट्यूशन पढ़ चुकी थीं, लेकिन उस मोहिनी सूरत को देखकर मन में जो अहसास उत्पन्न हुआ, वह इससे पहले कभी नहीं हुआ था।
“”नमस्ते! सर” ये शब्द मेरे तन-मन में एक सिहरन-सी उत्पन्न कर गए। पहले दिन से मेरी रुचि उसमें बढ़ने लगी। अध्यापन को प्रभावी व मनोरंजक बनाने के लिए दैनिक जीवन से जुड़ा कोई जोक सुना देता तो सभी लड़कियॉं खिलखिला उठतीं, लेकिन न जाने क्यों इतनी लड़कियों की खिलखिलाहट में भी मुझे उसकी हल्की-सी मुस्कान ही दिखाई देती। कभी-कभार जब वह उन्मुक्त रूप से खिलखिला उठती तो उसके बिजली के समान चमकते दांत मुझे चकाचौंध कर देते, जैसे- किसी शीशे से टकरा कर सूरज की किरणें आंखों को चकाचौंध कर देती हैं। मेरी उम्र उस समय 25-26 वर्ष के करीब थी, लेकिन आज तक मैंने इस प्रकार की स्थिति का सामना नहीं किया था।
धीरे-धीरे मैं अन्य छात्रों की तुलना में उसकी ओर कुछ खास ध्यान देने लगा। लगभग एक महीना दिन-रात करके मैंने उसके लिए स्पेशल नोट्स बनाए और उसे अकेले में देने का अवसर मुझे मिल गया। उस दिन वह दूसरी लड़कियों से कुछ मिनट पहले आयी थी। मैंने जैसे ही उसे नोट्स देने चाहे, उसने साफ इनकार कर दिया। मैं मन मसोस कर रह गया। वह मुझे गलत समझने लगी थी। मजबूरन मुझे कहना पड़ा कि “”ये नोट्स सबके लिए हैं, केवल आपके लिए नहीं हैं” और फिर मुझे वे नोट्स सभी छात्रों में बांटने पड़े।
उस दिन के बाद से वह मुझसे कुछ कटी-कटी-सी लगने लगी थी। धीरे-धीरे उसका कटाव नफरत में बदलने लगा। मैं अजीब दुविधा में फॅंस गया था। एक तरफ मेरा मन उसकी नफरत से टूटता जा रहा था। मैं निराशा और उदासी के भंवर में डूबता जा रहा था, तो दूसरी ओर मेरे अंदर का टीचर मुझे कचोट रहा था।
बीच-बीच में वह मुझ पर शब्दों के ऐसे तीर छोड़ती कि मेरा दिल छलनी हो जाता। एक दिन तो उसने मुझ पर मानो शब्दों का जहर ही उगल दिया, “”इसके जितना बेशर्म और बुरा आदमी मैंने आज तक नहीं देखा। ऐसे इंसान से मैं बात तक करना पसंद नहीं करती।”
मैंने आज तक किसी इंसान के मन में अपने लिए इतनी नफरत नहीं देखी थी, जितनी उस दिन उसके चेहरे से झलक रही थी। उसकी बात सुनकर मेरी आँखें भर आईर्ं। अकेला होता तो शायद जीभर कर रोता, लेकिन उस समय मैं रो भी न सका। दिन-रात मैं उसी घटना को याद करता रहा।
मैं एक साधारण लड़का नहीं (काश मैं साधारण लड़का होता) बल्कि एक टीचर था। इतना कुछ होने पर भी मैं अपने दिल को पक्का कर अपनी ड्यूटी पर लग गया। अब मैं उसके सामने पहले से कहीं अधिक प्यार से पेश आने लगा। किसी भी तरह मैं उससे दूसरी लड़कियों के बराबर काम करवा ही लेता था। हालांकि उसकी जली-कटी बातें सुन-सुन कर मैं छलनी हो चुका था, लेकिन न जाने क्यों मैं उसे एक भी कड़वा शब्द नहीं बोल पाता था। मेरे व्यक्तित्व के दोनों रूप (मेरे हृदय के किसी कोने में छिपा भावुक इन्सान और हमेशा ड्यूटी और आदर्शों को पसंद करने वाला टीचर) मुझे यह ़जहर पीने के लिए मजबूर कर रहे थे। यह जानते हुए कि वह लड़की जिसे मैं दिल-ओ-जान से चाहता हूँ, मुझसे नफरत करती है, मेरी शक्ल तक देखना पसंद नहीं करती, उस लड़की को हर रोज दो घंटे तक पढ़ाना मेरे लिए किसी तपस्या से कम न था। आखिर जैसे-तैसे परीक्षा का समय भी आ ही गया और देखते ही देखते उसकी परीक्षाएं खत्म हो गईं। मैं समझ नहीं पा रहा था कि यह मेरे लिए खुशी का अवसर है या गम का। वह सदा के लिए मुझसे दूर जा रही थी, लेकिन मुझे खुशी थी कि मैं अपने कर्तव्य को निभाने में सफल रहा।
मैं बेसब्री से उसके रिजल्ट का इंतजार करने लगा। मेरी आशा के अनुरूप वह बहुत अच्छे अंकों से पास हुई थी। उस दिन वह बहुत खुश थी। मेरे पास मिठाई लेकर आई तो मैंने देखा, उसके चेहरे पर मुस्कान के साथ-साथ आदर का भाव भी झलक रहा था। मेरे अंदर का टीचर जीत गया था, लेकिन न जाने क्यों मैं उसे भूला नहीं पाया। मैं आज भी जब उसकी झलक देखता हूँ तो न जाने क्यों मन मचल उठता है, जिंदगी बड़ी बोझिल-सी लगने लगती है। ऐसा लगता है, मैं इस दुनिया का सबसे बदनसीब इन्सान हूँ।
– भारत कुमार मिट्ठू
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