देश में जैसे-जैसे संचार क्रांति आई, आम उपभोक्ता की पसंद मोबाइल बन गया। आज हर हाथ में मोबाइल देखा जा सकता है। सब्जी बेचने वाले से लेकर कचरा उठाने वाले तक का हाथ मोबाइल से जुड़ा हुआ है। आज की जिंदगी मोबाइल के संग इस प्रकार जुड़ चली है जिसके बिना सब कुछ अधूरा-सा लगने लगा है। इस चाहत ने इस क्षेत्र में फैले उद्योग को सर्वोपरि लाभांश पर लाकर इस तरह खड़ा कर दिया है जहॉं आम उपभोक्ता इसकी चकाचौंध में क्षण-प्रतिक्षण लूटा जा रहा है।
इसका प्रतिकूल प्रभाव आज आम उपभोक्ता की जेब पर पड़ता साफ-साफ दिखाई दे रहा है। शाम की रोटी, नन्हें शिशु के लिए दूध, बच्चों को किताब नसीब भले ही न हो, पर मोबाइल में बैलेंस होना बहुत ज़रूरी है। उपभोक्ता की इस कमजोरी का फायदा आज मोबाइल उद्योग से जुड़ी हर कम्पनियां उठाती नजर आ रही हैं। इस दिशा में आम उपभोक्ताओं को अपनी ओर आकर्षित करने के नये-नये तौर-तरीके भी इन कम्पनियों के द्वारा समय-समय पर जारी विज्ञापनों के माध्यम से देखा जा सकता है। जिसके जाल में आम उपभोक्ता दिन पर दिन फंसकर आर्थिक संकट को गले लगाता जा रहा है।
आम उपभोक्ताओं को अपनी ओर आकर्षित करने की एक कम्पनी द्वारा जारी अनलिमिटेड कॉल की योजना ने सामाजिक तौर पर अनेक लोगों को विकलांग बना दिया है। संचार क्षेत्र में समाचार प्रेषण दिशा में इस योजना को बेहतर तो माना जा सकता है परन्तु इस तरह के प्रयोग से युवा पीढ़ी पर पड़ते प्रतिकूल प्रभाव को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। जहॉं इस अनलिमिटेड कॉल की सुविधा ने युवा पीढ़ी को अपने वास्तविक दायित्व से दूर कर अनर्गल बहस की ओर ढकेल दिया है। इस तरह की सेवायें उनको वास्तविक दायित्व से दूर करती दिखाई देती हैं। इस तरह के मोबाइल अवैध रूप से जारी गतिविधियों में भी लिप्त देखे जा सकते हैं।
आम उपभोक्ताओं को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए मोबाइल की अन्य कम्पनियां भी किसी न किसी रूप में अग्रसर दिखाई दे रही हैं। जिसका अंततः सामाजिक परिवेश पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है। सामाजिक पर्यावरण को दूषित होने से बचाने के लिए संचार क्षेत्र में समाचार प्रयोग को छोड़ कर इस तरह की अनलिमिटेड सेवा पर प्रतिबंध होना बहुत ज़रूरी है।
मोबाइल के क्षेत्र में आम उपभोक्ताओं से प्रयोग के अनुरूप प्रभार लेना तो उचित माना जा सकता है परन्तु बिना प्रयोग का प्रभार लेना कदापि उचित नहीं माना जा सकता। इस दशा में उपभोक्ता द्वारा जितनी देर बात की जाये, उतनी ही देर का शुल्क लिया जाना प्रासंगिक पृष्ठभूमि उभार सकता है। अधिकांशतः बातचीत करते वक्त समय सीमा की जानकारी नहीं होने से, कॉल का समय एक मिनट एक सेकण्ड होते ही दो कॉल के पैसे उपभोक्ताओं को देने पड़ जाते हैं जो उसके लिए असहनीय पीड़ा बनकर रह जाती है।
कभी-कभी संचार माध्यम में त्रुटि होने के कारण उपभोक्ताओं की बातचीत बिल्कुल नहीं हो पाती, फिर भी उसके पैसे लग जाते हैं। इस तरह के हालात का निदान किसी भी मोबाइल कम्पनी के पास नहीं है या है भी तो उसे प्रयोग के रूप में देखा नहीं जा सकता, जहॉं तकनीकी खराबी के कारण अधूरे प्रयोग का प्रभार आम उपभोक्ता के मोबाइल पर न पड़े। इस दिशा में कॉल पल्स की दर मिनट के बजाय सेकण्ड में तय की जानी चाहिए। जिससे आम उपभोक्ता बेहिचक इसका प्रयोग कर सके एवं उसके मोबाइल पर प्रभार अनावश्यक रूप से न पड़ सके। वह जितना प्रयोग करे, उतना ही उसके प्रभार का भार उसके कंधों पर पड़े।
मोबाइल प्रयोग करने वाले उपभोक्ता को एक राज्य से दूसरे राज्य में जाकर रिचार्ज करने की सुविधा नहीं होने से काफी परेशानी होती है। आज संचार युग की क्रांति में इतने बड़े संचार तंत्र का संकुचित सिद्धान्त होना अप्रासंगिक पृष्ठभूमि को उजागर करता है। आम उपभोक्ता के लिए मोबाइल की रोमिंग कॉल की भी स्थिति सबसे ज्यादा कष्टदायक प्रतीत होती है। जबकि इस दिशा में धीरे-धीरे यह दर कम होती दिखाई तो दे रही है। जहॉं तक रोमिंग की बात है, आज के परिवेश में इसका औचित्य नजर नहीं आता जहॉं हर उपभोक्ता के हाथ मोबाइल हो चला हो। इस तरह रोमिंग का होना आम उपभोक्ताओं को सबसे ज्यादा अखरता है।
मोबाइल कम्पनियों द्वारा रोमिंग प्रिाया से हर उपभोक्ता को निजात दिलाकर बेहिचक इसके प्रयोग को पहले से भी ज्यादा सकारात्मक बनाया जा सकता है। आज मोबाइल जब हमसफर बन हर हाथ के साथ हो चला है तो मोबाइल कम्पनियों द्वारा भी इसके प्रयोग सिस्टम को सरल एवं बेहतर बनाया जाना ज्यादा प्रासंगिक बना सकता है। जहॉं आम उपभोक्ता अपने-आपको ठगा सा महूसस नहीं करते हुए जीवन के सकारात्मक पहलू को उजागर कर सके। मोबाइल का प्रयोग सकारात्मक दिशा में हो सके, सामाजिक स्तर पर इसका कहीं प्रतिकूल प्रभाव न पड़े, इस तरह की व्यवस्था का सकारात्मक स्वरूप निर्धारण करना मोबाइल कम्पनियों का दायित्व ही नहीं, सामाजिक सरोकार भी है।
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