आंधी को जिसने थप्पड़ मारा
बुझते दीपक को दिया सहारा
उठो समय के पारखी यह परिचय बलवान का
यही लक्ष्य इंसान का
पीछे हटना जिसे न भाया
उसे विजय ने गले लगाया
बढ़े चलो रुको नहीं साकार स्वप्न अरमान का
यही लक्ष्य इंसान का
चाहे मस्तक कट गिर जाए
आन-बान पर आँच न आए
उठो मशालें थाम लो यह प्रश्र्न्न स्वाभिमान का
यही लक्ष्य इंसान का
अन्यायी इक दिन मरता है
अनुयायी हरदम हंसता है
जीयो और जीने दो यह मंत्र रहे जहान का
यही लक्ष्य इंसान का
कभी किसी को दिया न धो़खा
परहित जीवन जिसने झोंका
अर्चन-पूजन करो इसी का
यह रूप भगवान का
यही लक्ष्य इंसान का
– जगन्नाथ नीरव
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