ये अंगोछा-छाप नेता!

जनस्वास्थ्य के लिए खतरा हैं झोला छाप डॉक्टर और प्रजातंत्र के लिए खतरा बने हैं अंगोछा छाप नेता। जिस तरह न डिग्री, न डिप्लोमा, जड़ी-बूटी और दवाइयों से भरे झोले लटका लिए कांधे पर और बन गये डॉक्टर। ठीक उसी तरह न नैतिकता, न सिद्घांत, न जनसेवा की भावना, न देश के प्रति प्रेम लेकिन गले में लपेट लिया रंग-बिरंगा अंगोछा और बन गये नेता। जिस तरह झोला-छाप डॉक्टर ने अगर किसी रोगी का उपचार किया तो उस रोगी का राम ही भरोसा होता है, ठीक उसी तरह अंगोछा-छाप नेताओं ने जहॉं भी अपनी कारस्तानी शुरू की तो समझ लेना चाहिए उस पार्टी का सत्यानाश ही होकर रहता है। जैसे गॉंव-गॉंव में, शहर-शहर में खूब फैल गये हैं नीम हकीम डॉक्टर वैसे ही फैल गये हैं हुड़दंगबाज अंगोछा-छाप नेता। आम सभाओं में, जलसों में, जुलूसों में, उत्सवों में, पर्वों में, सड़कों पर, बाजारों में, रेलों में, बसों में हर जगह दिख जायेंगे ये अंगोछा-छाप नेता। न ये मंत्री हैं, न विधायक हैं, न पंच हैं, न सरपंच, न सहकारिता के चुनाव लड़े, न मुहल्ला-कमेटी के। फिर भी ये नेता हैं, ये नेता क्यों हैं, किसने बनाया, काहे के लिए बनाया, यह मामला अब गोपनीय नहीं रहा। सब कुछ खुलकर मैदान में आ गया है। हकीकत सामने आ गई है। जिनके पास कल तक पायजामा-कमीज की सिलाई के पैसे नहीं थे, सिलाई का पैसा वसूलने के लिए दर्जी इनके घर के चक्कर लगाया करते थे, वे आज गले में अंगोछा डालकर जन-जन के भाग्य विधाता बनने की दौड़ में शामिल हो गये हैं।

किसको ़जरूरत है इन अंगोछा छाप नेताओं की? क्या देश को, क्या समाज को, क्या सरकार को या खुद उनको? नहीं, इनमें से किसी को इनकी ़जरूरत नहीं है। इनकी तो ़जरूरत पड़ती है कतिपय बड़ी-बड़ी राजनैतिक पार्टियों के उन खूंखार इरादों वाले राजनेताओं को, जो धनबल और बाहुबल के दम पर सत्ता, संगठन और समाज में अपना वर्चस्व बनाये रखना चाहते हैं। इनकी जरूरत है उन रहनुमाओं को जिनमें न तो क्षमता होती है सत्ता-संचालन की और न ही होती है भावना समाजसेवा की। इन अंगोछा छाप नेताओं का उपयोग तो होता है बर्र के छत्ते की तरह। मधुमक्खी पालने के व्यवसाय की तरह। कतिपय राजनेताओं और राजनैतिक पार्टियों द्वारा मधुमक्खी की तरह इनको पाला जाता है और समय-समय पर उन्हें उड़ा दिया जाता है- जलसों, समारोहों और भीड़ में भगदड़ मचाने के लिए। जिस तरह मधुमक्खियॉं नहीं जानतीं कि वे क्या कर रही हैं, किसके बदन से लिपट रही हैं, किस-किस को काट रही हैं या फिर किस तरह के आयोजन में घुस रही हैं? उसी प्रकार मधुमक्खियॉं उड़ाकर हुड़दंग मचवाना ही है तो फिर यह नहीं देखा जाता कि इसमें कौन प्रवाहित हो रहा है और उसे कितना नुकसान पहुँच रहा है? अंगोछा-छाप नेताओं का उपयोग अपनी राजनीति की धाक जमाने के लिए अति उत्तम सिद्घ हो रहा है। जिस किसी राजनैतिक पार्टी ने इन्हें अंगोछे वितरित किए हैं, उनके लिए ये नेता जमीन तैयार करने में खाद और बीज का काम करते हैं। जितना ज्यादा ये खाद-बीज का उपयोग करेंगे उसी के अनुसार ये लहलहाती फसलों का ख्वाब देखने लगते हैं।

आज का युग बाजारवाद का युग है। बाजार का भी खूब दिमाग चलता है। जहॉं उसे जरा-सी गुंजाइश दिखती है, बाजार फट से बीच में कूद पड़ता है। राजनीति के इस “मधुमक्खी-युद्घ’ में भी बाजार की पौ बारह हो रही है। दुकानों में खूब अंगोछे बिक रहे हैं। बाजार कुर्ता-पायजामा के कपड़ों के थान के थान बेचने में व्यस्त है और दर्जी की सिलाई मशीन की 12 बजे रात तक भी आवाज बंद नहीं होती है। खूब नाप लिए जा रहे हैं। कपड़ा बाजार की चांदी हो रही है। पहले भी थी, अब भी है। पहले टोपियों के कपड़े बिकते थे, टोपियां सिलती थीं, अब अंगोछे के कपड़े बिक रहे हैं, अंगोछों के किनारे प्रिंट हो रहे हैं।

अंगोछा-छाप नेताओं की आई बाढ़ को देख कर पहले आम जनता आश्र्चर्य करती थी। उसे वहम था कि आज देश में हर आदमी नेता बन रहा है, सेवा के क्षेत्र में उतर रहा है, देश सचमुच आगे बढ़ रहा है, फलतः देश का विकास होगा और खूब जमकर होगा। नेताओं में देशप्रेम की भावना का ज्वार उमड़ पड़ा है। लेकिन अब इन अंगोछाधारी नेताओं की बढ़ती फौज की हकीकत छुपी नहीं है। जनता समझ गई है। यह अंगोछाधारी फौज न जाने कब और कहां एकदम से हमला बोल दे। पर्व, उत्सव, त्योहार और यहॉं तक कि निजी-पारिवारिक और शादी-ब्याह के समारोह भी सुरक्षित नहीं रहे। कभी भी अंगोछाधारियों की फौज कहीं भी घुसकर किसी का भी खाना खराब करने में देर नहीं लगाती है।

लोग नववर्ष की पार्टियां मनाते हैं। दुनियादारी से दूर रहकर नाचते हैं, गाते हैं, मौज-मस्ती करते हैं। युवा प्रेमीजन वेलेन्टाइन डे मनाते हैं, फिल्मी नाइटें होती हैं, होटलों में व्यंजन समारोह होते हैं। ऐसे आयोजनों में ये अंगोछाधारी नेता भी घुस-घुस कर अपनी ही तरह का जश्र्न्न मनाते हैं। पर इनके जश्न मनाने का तरीका वो नहीं होता जो सबका होता है। इन अवसरों पर वे भी खूब धींगामस्ती करते हैं, हुड़दंग मचाते हैं और आयोजनों में विघ्न डालते हैं। उत्साहपूर्वक जश्र्न्नों और जलसों में शामिल होकर अपनी वह भूमिका निभाते हैं, जो उन्हें अपनी राजनैतिक पार्टी के रिंग मास्टरों द्वारा दी जाती है। जब आम चुनाव आने लगते हैं, अंगोछाधारियों की पूछ-परख बढ़ने लगती है। मतदान केन्द्र बनते हैं उनकी देख-रेख के लिए, राजनैतिक पार्टियां इनको जवाबदारियां सौंपती हैं। टेनिंग देती हैं कि कैसे मतदाता को मतदान केन्द्र तक लाया जाय और किस बटन को दबाने के लिए मतदाता को कैसे भयग्रस्त कर दिया जाय। सभी मतदाता साहसी, पराामी और चतुर नहीं होते। बेचारे दब जाते हैं। जो नहीं दब पाते उनसे कोई फर्क नहीं पड़ता। इलेक्टॉनिक वोटिंग मशीन को उठाकर ले जाना भी इन्हें आता है। भले ही आपके काम के, समाज के काम के और देश के काम के लिए इन अंगोछा छाप नेताओं की ़जरूरत न हो, उनकी बला से। उनकी तो ़जरूरत है उन राजनैतिक दलों को जो भीड़ में भगदड़ मचवाकर, धधक रही नैतिकता की आंच में तवा चढ़ा कर अपनी रोटी सेंकने में सिद्घहस्त हो गये हैं। बढ़ती बेरोजगारी की अब किसी को कत्तई चिंता नहीं करनी चाहिए। भले ही नौकरियां न हों सरकारों में, भले ही वैकेंसी न हो टाटा, बिड़ला, अंबानी, मित्तल की कंपनियों में, राजनीति के बाजार में आज भी ़जरूरत है हुड़दंग मचाने के लिए सब तरफ से धकियाये गये जवानों की। कुछ नहीं करना है आपको, डिग्री या डिप्लोमा हो न हो आपके पास, आपको तो सामने जाकर खड़ा हो जाना है। अंगोछा तो डाल ही देंगे कांधे पर अपनी राजनीति कराने वाले।

 

– राजेन्द्र जोशी

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