किसी जमाने में टू व्हील युवाओं की डीम सवारी होती थी। ऐसा नहीं है कि टू व्हील अब युवाओं के पैशन से बाहर हो गया है। टू व्हील का अभी भी युवाओं में ोज है, लेकिन वह स्टेटस सिंबल नहीं रहा। आजकल स्टेटस सिंबल फोर व्हील है, खासकर ऑफिस गोइंग युवाओं में। टू व्हील युवाओं को रेस और मस्ती के लिए पसंद है। जबकि ऑफिस गोइंग युवाओं को फोर व्हील्स भाती हैं। कम उम्र में अच्छी तनख्वाहें, ई़जी फाइनेंस की सुविधा और कार्यस्थलों में आया ग्लोबल टच। इन सब बातों ने उनके दिल, दिमाग को फोर व्हील के लिए ो़जी बना दिया है।
कहने का मतलब यह है कि पहले जहां अधेड़ उम्र का सपना कार हुआ करती थी, वहीं अब कार का सपना कॅरियर के शुरू से ही सताने लगा है। यही कारण है कि सन् 2005 में जहां कुल बिकने वाली कारों के महज 20 से 22 फीसदी खरीदारों की उम्र 21 से 26 साल के बीच थी। वहीं 2007 में इस उम्र के खरीदारों का ग्राफ चढ़कर 33 फीसदी पहुंच गया है। कहने का मतलब है कि जितनी भी कारें बिकती हैं, उनमें से एक-तिहाई के ग्राहक ऐसे हैं जिन्होंने अभी-अभी अपना कॅरियर बस शुरू ही किया है या शुरू करने वाले हैं।
लेकिन कार का सपना सिर्फ वही नहीं पाल रहे हैं, जिनकी कमाई और जिनका कॅरियर कार के लायक है, बल्कि कार उन युवाओं के भी सपने में हर रोज आती है जिनका बजट भले इसके लायक न हो, लेकिन दिल की हूक उससे कहीं बड़ी है। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि ज्यादातर युवाओं का सपना कार होती है। यह अकारण नहीं है कि चाहे नयी कारें हों या पुरानी, सभी तरह की कारों के ग्राहकों में युवाओं के अच्छे-खासे रूझान को देखा जा सकता है। इसलिए अगर आप भी आजकल अपने भोर के सपनों में अपनी डीम कार का सपना देखते हों, तो इसमें न तो कुछ बुराई है और न ही कोई आश्र्चर्य।
बाजार में तमाम दूसरी उपभोक्ता वस्तुओं की तरह आजकल कार के लिए भी ढेरों विकल्प मौजूद हैं। किसी जमाने में भले कार सालों पहले बुक करानी पड़ती रही हो, लेकिन आजकल इसे भी मोबाइल फोन की तरह जाकर शोरूम से लेकर आ सकते हैं। एक और बात भी है, मार्केट में आज हर रेंज और हर स्टाइल की कार मौजूद है। आपका बजट क्या है, आपकी पसंद क्या है? बस असली सवाल यही रह गया है। ईंधन की खपत, बजट, स्टाइलिश लुक, सैकिंड हैंड या फिर री सेल वैल्यू। कार खरीदने के पहले दिमाग में बस यही सवाल रहते हैं। आइए देखें कि इन तमाम सवालों के बीच आपकी डीम कार कहां खड़ी है?
सबसे पहला सवाल है कि आप नयी कार खरीदना चाहते हैं या पुरानी? लेकिन इस सवाल के पहले एक स्पष्टीकरण जरूरी है। अगर आपने नयी कार खरीदी है तो इसका मतलब यह कतई नहीं है कि आपने बिल्कुल परफैक्ट कार खरीद ली जो कि आपको चाहिए और न ही पुरानी कार खरीदने का मतलब यह है कि आपका बजट बहुत ही कम है। नयी कार में भी खराब डिजाइन और मैन्युफैक्चरिंग डिफेक्ट आपके पल्ले पड़ सकता है और पुरानी कार में भी आपको परफैक्ट खरीदारी का खिताब मिल सकता है। बस असली बात यह पता लगाना होता है कि आप जो कार खरीद रहे हैं, उसके बारे में कितना जानते हैं? कहीं यह खरीद एक जुआ तो नहीं है?
गलती से बचने के लिए जब पुरानी कार खरीदें तो कुछ बातें ध्यान रखें-
- अब तक वह कितने लोगों के पास रह चुकी है यानी कितने लोग उसे डाइव कर चुके हैं। कार के ज्यादा हाथों में रहने का मतलब है, ज्यादा खराब होना।
- पुरानी कार खरीदने के लिए सबसे अच्छी स्थिति यह है कि कार कम से कम हाथों में रही हो। अगर अभी तक सिर्फ एक व्यक्ति के हाथ में रही है तो इससे अच्छी कोई बात ही नहीं है। बशर्ते वह बहुत बुरा डाइवर न रहा हो।
- गाड़ी में ओरिजनल पेंट है या पेंट के ऊपर पेंट हुआ है?
- गाड़ी से एक्सीडेंट हुआ था या नहीं?
- माइलेज क्या है?
- कार चलने में कैसी है?
हालांकि एक बात का और ध्यान रखें, टेस्ट डाइव करने के बाद भी जरूरी नहीं है कि आपको कार के इंजिन और उसके दूसरे कलपुर्जों व क्षमताओं के बारे में सब कुछ सही-सही पता चल गया हो। इसलिए जब पुरानी कार खरीदनी हो तो किसी योग्य कार मैकेनिक से उसका मुआयना जरूर करवा लें और इसकी उसे फीस दे दें। सैकिंड हैंड कार की खरीदारी के लिए या तो बहुत ही नजदीकी किसी दोस्त या जानकार पर यकीन करें या फिर रियल वैल्यू, फर्स्ट च्वॉइस, एडवांटेज और बॉस इंजीनियरिंग जैसी कंपनियों की सहायता लें, जो पुरानी कारों को गारंटी और कुशलता के साथ बेचती हैं। पुरानी गाड़ी को खरीदने के लिए आजकल फाइनेंस की सुविधा भी उपलब्ध है। अगर किसी कंपनी के इंजीनियर ने गाड़ी की क्षमता का प्रमाण-पत्र जारी किया है तो उसका फाइनेंस आसानी से हो जाता है।
खरीदारी के लिए जहां तक विकल्पों की बात है तो बाजार में इन दिनों पुरानी कार में ढेरों मनमोहक विकल्प मौजूद हैं। टोयटा कोरोला, होंडा सिविक, मर्सिडीज बेंज और बीएमडब्ल्यू जैसी लक्जरियस कारों से लेकर मारूति जेन डी, इंडिका, पेलियो जैसी स्मॉल कारें डीजल सेगमेंट्स में खूब पसंद की जाती हैं। लेकिन अगर पेटोल की स्मॉल कार की डाइविंग सीट पर बैठना है तो मारूति-800, सेंटो, जेन, आल्टो, वेग्नार, पेलियो, कोरसा, शेवर्ले एवियो, स्पार्क और मारूति स्विफ्ट का विकल्प मौजूद है। स्मॉल कारों के सेगमेंट में यही सारी कारें नयी के रूप में भी शानदार विकल्प बन सकती हैं।
अब सवाल बचता है कि कार आपको कैसी चाहिए? आटोमेटिक या मैन्युअल टंासमिशन वाली। मैन्युअल टंासमिशन की कारें शक्तिशाली और भरोसेमंद होती हैं, क्योंकि उनकी इंजीनियरिंग काफी उच्च गुणवत्ता की होती है जबकि आटोमेटिक टंासमिशन की कारें भीड़भाड़ वाले शहरों के लिए उपयोगी तो होती हैं, लेकिन ये मैन्युअल के मुकाबले 1.3 गुना अधिक ईंधन की खपत करती हैं। आटोमेटिक टांसमिशन की रिपेयरिंग मुश्किल भरी और महंगी होती है।
अब आपने कार खरीद ली, तो सवाल बचता है सुरक्षा का। क्योंकि कारों की चोरी एक बहुत ही तेजी से बढ़ता अपराध बन गया है। इसलिए खरीदी गई कार की सुरक्षा जरूरी है। व्हील लॉकिंग, टैंक्शन कंटोल, ब्रेक असिस्ट और इलेक्टॉनिक स्टेबिलिटी कंटोल जैसे उपाय कार की सुरक्षा के लिए जरूरी होते हैं। अगर आप पहाड़ी इलाके में रहते हैं जहां बर्फ गिरती है और कई बार आपके कार के फिसलने का खतरा बना रहता है, ऐसी स्थिति के लिए एवीएस खरीदें। कार खरीदते समय यह भी जान लें कि आपकी पसंदीदा कार खरीदने के लिए इंश्योरेंस पर कितना पैसा खर्च करना पड़ेगा। क्योंकि अलग-अलग कारों के लिए अलग-अलग इंश्योरेंस होता है। अगर आपके शहर में सीएनजी या एलपीजी फिलिंग स्टेशन हैं तो ये गैस ईंधन वाली कारें भी खरीदी जा सकती हैं, जो ईंधन खर्च को लेकर बजट के अनुकूल होती हैं।
– साशा
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