हम रथवान, ब्याहली रथ में,
रोको मत पथ में
हमें तुम, रोको मत पथ में।
माना, हम साथी जीवन के,
पर तुम तन के हो, हम मन के।
हरि समरथ में नहीं, तुम्हारी गति है मन्मथ में।
हमें तुम, रोको मत पथ में।
हम हरि की धनि के रथ-वाहक,
तुम तस्कर, पर-धन के वाहक
हम हैं, परमारथ-पथगामी, तुम रत स्वास्थ में।
हमें तुम, रोको मत पथ में।
दूर पिया, अति आतुर दुल्हन,
हमसे मत उलझो तुम इस क्षण।
अरथ न कुछ भी हाथ लगेगा, ऐसे अनरथ में।
हमें तुम, रोको मत पथ में।
अनधिकार कर जतन थके तुम,
छाया भी पर छू न सके तुम!
सदा-स्वरूप एक सदृश वह पथ के इति-अथ में!
हमें तुम, रोको मत पथ में।
शशिमुख पर घूंघट पट झीना
चितवन दिव्य-स्वप्न-लवलीना,
दरस-आस में बिंधा हुआ मन-मोती है नथ में।
हमें तुम रोको मत पथ में।
हम रथवान ब्याहली रथ में,
हमें तुम, रोको मत पथ में।
– नरेन्द्र शर्मा
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