राजनीति की बिल्ली, आदिकाल से बड़ी चिबल्ली रही है। उसके गले में घण्टी बांधे तो कौन और कैसे? सदा से वह ऊँचे सिंहासन पर बैठती जो रही है। पहले राजा स्वेच्छाचारी होता था। चापलूसों से घिरा रहता था। सुरा-सुन्दरी में डूबा रहता था। वह निरंकुश शासक था।
मंत्री, आज राजा कहलाता है। वह कुर्सी रूपी सिंहासन पर बैठता है। चमचों से घिरा रहता है। ये चमचे उसकी पार्टी के ही लोग रहते हैं, जो उसको मक्खन लगाते रहते हैं। वह सुरा-सुंदरी को तो अपनाता ही है, परंतु कांडों, घोटालों, हवालों और गबनों व गोलमालों में भी आकण्ठ डूबा रहता है। ठीक उसी प्रकार, जिस प्रकार “गुलाब जामुन’ चाशनी में डूबे रहते हैं। ये आधुनिक राजा की विशेषताएँ हैं, जो उसे पुराने राजा से दस गुना तथा दस कदम आगे ले जाती हैं व उसे स्वेच्छाचारी सिंहासन पर बैठाती हैं। एक बात और, कोई कायदे-कानून उस पर लागू नहीं होते। उसे दस खून तथा सैकड़ों कानून तोड़ना माफ रहता है। एक विशेषता और, पुराना राजा “पल में हाथी पॉंव दे, पल में हाथी माथ’ की नीति अपनाता था। आज का राजा पल में नीति बदल देता है। अपने कथन को ही झूठा करार कर देता है। उसका नया अर्थ बतला देता है, जैसे- “”मैंने जो कहा था, उसका अर्थ यह था। आप लोग समझे नहीं तो मैं क्या करूँ?” वह हर पल झूठे आश्र्वासन देता है। वोट बैंक की ओर घूरता है। वादा करके घोटालों में लिप्त हो जाता है।
“मिल बॉंटकर खाना भारतीय संस्कृति है।’ नेता अफसर एक साथ मिल बॉंटकर खाता है। भ्रष्टाचार ही उसका जीवनाधार है। इस पर बैठ कर वह चुनाव रूपी वैतरणी पार कर लेता है। आप उसके किस-किस काण्ड के नाम से रोएँगे? पर हम वह नहीं जो चादर तानकर सोएँगे। हम जागरूक हैं, जागरूक रहेंगे, क्योंकि हम नेता की नहीं देश की पहले सोचते रहे हैं। जब तक “बुद्घिजीवी’ जीवित हैं, ये नग्न होते रहेंगे। हम इन्हें इनकी असलियत बताते रहेंगे।
– ललित नारायण उपाध्याय
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