राजनीति में शुचिता

चुनावों का समय निकट है। अभी देश के चार बड़े राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। उसके तत्काल बाद ही लोकसभा के चुनाव आ जाएंगे। इन चुनावों के जरिये जनप्रतिनिधि बनने के लिये हर वर्ग बेकरार है। सांसद व विधायक पद के टिकट के लिये दावेदारियॉं बढ़ती जा रही हैं। इन दावेदारों में से कोई एक विधानसभा और लोकसभा से चुनकर विधायिका व संसद में पहुँचेगा, फिर प्रदेश तथा देश का भविष्य निर्धारित करेगा। परन्तु पिछले कुछ वर्षों से हमने अपने जनप्रतिनिधियों का नैतिक पतन देखा है। हमारे जनप्रतिनिधि अपने पथ से भटके-से प्रतीत होते हैं। वो येन-केन-प्रकारेण सत्ता में बने रहना चाहते हैं। इनकी सत्ता-लिप्सा से त्रस्त जनता अब इनके विकल्प की तलाश में है। इसी मनःस्थिति में आज जन-मानस की नजरें युवा शक्ति की ओर आशावान है। क्योंकि हम सभी मानते हैं कि युवा का मतलब भविष्योन्मुखी होता है। युवा होने का अर्थ लीक से हटकर कुछ करने वाला होता है। युवा पूर्वाग्रह से मुक्त होता है, बेपरवाह और ाांतिकारी होता है। कहीं न कहीं इस तरह की छवि युवाओं को राजनीति में आमंत्रित करने का मानस बनाती है। आज युवाशक्ति शब्द एक मुहावरा बन चुका है। आज जनमानस असरहीन होते पुरानी पीढ़ी के नेतृत्वकर्ताओं को दरकिनार कर युवाशक्ति और युवाओं को नेतृत्वकर्ता के रूप में देखना चाहता है। वास्तव में हमारी राजनीतिक व्यवस्था दूषित हो चुकी है और सरकारें सिर्फ अवसरवादी गठजोड़ बन गई हैं। आज एक-दूसरे को कोसने वाले नेता कल सरकार में साथ बैठेंगे। राजनीतिक आस्था और विचार रातों-रात बदल रहे हैं। आज ठेकेदार, हिस्टीशीटर और बेईमान तत्व राजनैतिक व्यवस्था के केन्द्र बन गए हैं, सारी व्यवस्था भी इनके हित साधने में लगी हुई प्रतीत होती है। ऐसे समय में युवाओं का राजनीति में आगमन ताजगी की आशा जगाता है। लीक से हटकर कुछ कर दिखाने की संभावना पैदा करता है। चूँकि हमारा जनमानस अब युवाओं को सत्ता के केन्द्र में देखने को उत्सुक है और व्यवस्था संचालन भी उन्हीं के हाथों सौंपना चाहता है जो वास्तव में इस डिजिटल शताब्दी की ़जरूरत है। ऐसे में इस बात पर भी मनन करना ़जरूरी हो जाता है कि क्या हमारे देश की युवा पीढ़ी राजनीति की बागडोर संभालने के योग्य है? क्या हमारे देश की युवा पीढ़ी वास्तव में पूर्वाग्रह से मुक्त और ाांतिकारी है? जहॉं तक आ़जादी के साठ वर्षों की बात है तो हमने आर्थिक प्रगति तो की है परंतु हमारे नैतिक मूल्य गिरे हैं। अंधविश्र्वास और धर्मान्धता अब भी हावी है। निरक्षरता और गरीबी के पंजे अब भी बड़ी आबादी को अपने कब्जें में जकड़े हुए हैं। ऐसे में हम नए विचारवान युवाओं को नेतृत्वकर्ता के रूप में देखना तो चाहते हैं परंतु हमारा मन शंकित हो जाता है कि हमारी युवी पीढ़ी नैतिकता के प्रति कितनी वचनबद्घ है? पर्यावरण के मुद्दे पर कितनी संवेदनशील है? हम देखते हैं कि सवाल अंधविश्र्वास का हो या फिर दहेज या अंतर्जातीय विवाह का, या फिर आर्थिक नीति का, हमारे देश में युवाओं और बुजुर्गों की राय में इन सबमें कोई खास फर्क नहीं है। दूसरी तरफ हमारे युवा अब भी जाति और धर्म की परिधि से बाहर नहीं निकल पाए हैं। ऐसे में हम पूर्वाग्रह से मुक्त और ाांतिकारी का मायना युवाओं में कैसे खोजेंगे।

आज हम युवा के नाम पर सिर्फ महानगरीय युवाओं की बात करते हैं, परन्तु हमारी युवा सोच में दलित आदिवासी युवा भी होना चाहिए तथा शहरी झोंपड़पट्टी का युवा और गांव की लड़की भी होनी चाहिए। वास्तव में पिछले पन्द्रह- बीस वर्षों में नई आर्थिक नीतियों की आड़ में कदम बढ़ाता नवधनाढ्य वर्ग अब राजनीति के केन्द्र में आना चाहता है जो आम युवाओं को अपना हमकदम बनाना चाहता है। हालांकि राजनीति की बागडोर युवाओं के हाथों में सौंपनी चाहिए, इसमें कोई दो राय नहीं है तथा यह सत्य है कि आगामी लोकसभा और विधानसभा के चुनावों में जो दल युवाओं को वरीयता देगा वही सत्ता के केन्द्र में होगा। लेकिन इस प्रिाया में उन युवाओं को शामिल करना होगा जिनके मन में ग्रामीण भारत की छवि है, जो अंधविश्र्वास और रूढ़ियों का विरोध करने का हौसला रखते हैं। जो साम्प्रदायिकता को सत्ता की सीढ़ी नहीं मानते तथा पर्यावरण सुरक्षा के प्रति स्पष्ट छवि जिनके दिमाग में हो और जो विज्ञानसम्मत समाज के निर्माण के पक्षधर हों। वास्तव में ऐसे युवाओं की देश में कमी नहीं है और ये वे युवा हैं जिन्हें देश की बागडोर सौंपी जा सकती है। इस दिशा में वर्तमान में केन्द्र की यूपीए सरकार ने अच्छा प्रयास किया है। अपने मंत्रिमंडल में कई युवाओं को अहम् जिम्मेदारी सौंप कर देश में युवा नेतृत्व के विकास का प्रयास किया है। उल्लेखनीय है कि कांग्रेस पार्टी के युवा महासचिव श्री राहुल गांधी भी देश की तरुणाई को एकत्र करने का प्रयास कर रहे हैं। इनके द्वारा देश भर में अच्छे व विचारवान युवाओं की खोज के काफी प्रयास किये जा रहे हैं। उनकी हौसलाआफजाई की जा रही है। वर्तमान की राजनीति से जनमानस में जो भय बैठ गया है उसे इन युवाओं की भागीदारी से दूर करने का प्रयास किया जा रहा है। श्री राहुल गांधी राजनीति में शुचिता का पूरा प्रयास कर रहे हैं। उनके ये कदम निश्र्चित रूप से देश की राजनीति में युवाओं की भागीदारी को बढ़ायेंगे। वास्तव में देश को ऐसे ही प्रयास और नेतृत्व की ़जरूरत है।

– डॉ. सुनील शर्मा

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