राम प्रत्येक भारतवासियों से उसी प्रकार जुड़े हुए हैं, जैसे – सुई से धागा जुड़ा रहता है। राम प्रत्येक व्यक्ति के जन्म से मृत्यु तक साथ रहते हैं। भारतवासी के जीवन का प्रारम्भ जय श्रीराम, जय सियाराम, राम-राम-सा से होता है और अंत राम नाम सत्य से होता है। राम का जन्म हजारों वर्ष पूर्व हुआ था, किन्तु उनके प्रभाव में आज भी किंचित कमी नहीं हुई है। अपितु उत्तरोत्तर वृद्घि ही हो रही है। राम भारतीय उप-महाद्वीप के पहले तथा अंतिम चावर्ती सम्राट थे, जिन्होंने पूरे महाद्वीप को सांस्कृतिक एकता की एक डोर में बांधा था। वैदिक संस्कृति को देश की सीमाओं से परे स्थापित कर उसे वैदिक सभ्यता का रूप दिया था।
उन्होंने पूरे उप-महाद्वीप में विवाह-संस्कार की पद्घति के रूप में एक समान नागरिक संहिता की स्थापना की थी। आज पूरे विश्र्व में यह पद्घति स्थापित है। किसी भी जाति, धर्म, समुदाय में बिना विवाह किये वयस्क स्त्री-पुरुष का पति-पत्नी के रूप में रहना अनैतिक समझा जाता है। विश्र्व मानव समाज में विवाह योग्य अपनी कन्या का विवाह करना रोटी, कपड़ा, आवास की भांति ही सबसे महत्वपूर्ण कार्य माना जाता है। श्रीराम के समय में देश के अधिकांश भागों में असुर संस्कृति का बोलबाला था, जिसमें विवाह संस्कार पद्घति का अभाव था। स्त्री-पुरुष सहगोत्रीय तथा अन्य लोगों से मन चाहे संबंध बनाने को स्वतंत्र थे।
स्त्रियों में बहुपति प्रथा तथा पुरुषों में बिना विवाह किए अनेक स्त्रियों को पत्नी रूप में रखने की परम्परा थी। नारी को वस्तु माना जाता था। वनवास काल में श्रीराम ने ऐसी सभी संस्कृतियों की इस कुरीति को समाप्त कर उनमें भी विवाह-संस्कार पद्घति को लागू किया। उनके प्रयत्नों से पूरे देश में यह परम्परा प्रचलित हो गई, जो आज पूरे विश्र्व में मौजूद है। अपना कार्य समाप्त कर श्रीराम भौतिक रूप से तो अन्तर्ध्यान हो गये थे, किन्तु उनका अमूर्त रूप राम का नाम भारतवासियों में स्थापित हो गया है। वही नाम तब से ही पीढ़ी दर पीढ़ी हर भारतवासी में हस्तांतरित होता चला आ रहा है।
किसी भी पीढ़ी के लोगों को श्रीराम के बारे में जानने तथा पढ़ने की जरूरत ही नहीं पड़ती। राम तो उनकी रक्त कोशिकाओं में पहले से ही विद्यमान हैं। वर्तमान पीढ़ी तो आचार-विचार, रहन-सहन, खान-पान, भाषा-बोली हर तरह से पश्र्चिमी सभ्यता की अनुगामी है। उसने तो राम के बारे में विधिपूर्वक पढ़ा भी नहीं है, किन्तु राम तथा उनके नाम से सम्बन्धित किसी भी घटना विशेष के घटित होने पर उद्वेलित होने वालों में सबसे आगे यही पीढ़ी रहती है।
इसका प्रत्यक्ष प्रमाण हमें रामसेतु विवाद में दिखाई दिया। जब सारे धर्म समुदायों के विद्वानों, इतिहासकारों, धर्मगुरुओं, वैज्ञानिकों, इंजीनियरों ने अपने सारे व्यक्तिगत एवं सामाजिक मतभेद भुलाकर केन्द्र सरकार तथा तमिलनाडु की द्रमुक सरकार के विरोध में विभिन्न राजनीतिक दलों तथा आम जनता के साथ विरोध में, जिसमें सर्वाधिक संख्या उस युवा वर्ग की रही, जिसके जीवन में राम का कभी दखल नहीं रहा। वैसे भी हमारे देश के विभिन्न धर्म समुदायों में मतभेद केवल राजनीतिक स्तर पर ही हुए हैं। व्यक्तिगत, सामाजिक तथा सांस्कृतिक स्तर पर आज भी कोई मतभेद नजर नहीं आते हैं। सब धर्मों के तीर्थ-स्थान प्रत्येक धर्मानुयायी के लिए खुले रहते हैं। हर जाति-धर्म विचारधारा के लोग विशेष अवसरों पर एक-दूसरे समुदाय की तन-मन-धन से सहायता तथा सहयोग करते हैं। यह सब श्रीराम द्वारा स्थापित की गई सांस्कृतिक एकता का ही चमत्कार है। “जय श्रीराम’।
– मुरली मनोहर गोयल
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