रिमझिम – सुमन पाटिल

रिमझिम आयी बरखा

नभ में

कड़ाकड़-कड़

बिजली चमकी

काले-काले बादल छाये रे

रिमझिम-रिमझिम

आयी बरखा

ठंडी चली पुरवाई रे

बीत गये अब

दिन गर्मी के

नहीं रहे गर्म

लू के झोंके

ताप मिटा धरती का

जन-जीवन में खुशहाली रे

कब से आंगन में

रिमझिम बरखा बरस रही

कानों में रस घोल रही

झरझर-झरझर जैसे

लयतालबद्ध संगीत रे

धीरे-धीरे हौले-हौले

खोल पिसारा नाच

मुग्ध मन-मयूर नाच

नाच छमछनन नाच रे।

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