वाराणसी, गंगा किनारे का ऐसा शहर है जिसका इतिहास बहुत प्राचीन है, जिसकी संस्कृति बहुत समृद्घ है, और जो करोड़ों लोगों की श्रद्घा का केंद्र है। यहॉं गंगा नदी के घाट लगभग 7 कि.मी. तक फैले हुए हैं जहॉं किसी भी सामान्य दिन लगभग साठ ह़जार लोग श्रद्घा से स्नान करते हैं। विशेष त्यौहार-पर्व में तो इनकी संख्या बहुत बढ़ जाती है। इनमें से अनेक लोग गंगाजल का आचमन भी करते हैं व अपने साथ दूर-दूर तक ले भी जाते हैं। लेकिन आज यह गंगा मैली, प्रदूषित हो चुकी है।
गंगा एक्शन प्लान बहुत अच्छे उद्देश्यों को लेकर शुरू हुआ था। कायदे से इसके प्रथम चरण में ही वाराणसी में गंगा के प्रदूषण की संभावना न्यूनतम हो जानी चाहिए थी। पर हकीकत यह है कि यहॉं के पानी के नमूनों की जॉंच से पता चला है कि प्रदूषण खतरनाक स्थिति तक बना हुआ है। यह जॉंच संकटमोचन फाउण्डेशन की प्रयोगशाला में की गई थी, जिसे इस तरह की जॉंच में विशेषज्ञता हासिल है। वर्ष 1982 में स्थापना के बाद से संकटमोचन फाउण्डेशन व इसके अध्यक्ष प्रो. वीरभद्र मिश्र ने निरंतर इस ओर ध्यान दिलाया है कि गंगा एक्शन प्लान के सराहनीय व महत्वपूर्ण उद्देश्य पूरे क्यों नहीं हो रहे हैं व इसके लिए कौन-से कारण ़िजम्मेदार हैं। अनेक नाले अपनी गंदगी बिना उपचार के ही गंगा में फेंकते रहे हैं। उपचार का स्तर भी ठीक नहीं था। पूरी प्रिाया को बिजली पर बहुत अधिक निर्भर बना दिया गया था व बिजली प्रायः उपलब्ध नहीं होती थी। बिजली न मिलने पर या बाढ़ की स्थिति में पंप चलते नहीं थे व गंदगी को ऐसे ही गंगा में बहा दिया जाता था।
संकटमोचन फाउण्डेशन ने इन गंभीर समस्याओं की ओर ध्यान दिलाने के अलावा एक वैकल्पिक योजना भी प्रस्तुत की थी। इस वैकल्पिक योजना में उन गलतियों व समस्याओं को दूर रखा गया है जिनके कारण पहले सफलता नहीं मिल सकी थी। इस वैकल्पिक योजना को वाराणसी नगर निगम ने तो पहले ही मंजूर कर लिया था, अब भारत सरकार ने भी मंजूर कर लिया है। अतः उम्मीद है कि गंगा में प्रदूषण कम करने में सफलता निकट भविष्य में मिल सकेगी।
इस वैकल्पिक योजना की पहली विशेषता तो यह है कि मल-जल व गंदा पानी गंगा की ओर ले जाने वाले सारे नालों का गंगा में प्रवेश पूरी तरह रोक दिया जाएगा। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि मल-जल व गंदे पानी को पंप द्वारा लिफ्ट करके उपचार संयंत्र की ओर ले जाने की बजाय इसे गुरुत्व बल से एक पाइप लाइन में एकत्र कर शहर व घाटों से दूर बने उपचार संयंत्र तक ले जाया जाएगा। उपचार संयंत्र के लिए ऐसी ़जमीन चुनी गई है जहॉं कोई खेती नहीं होती है, न ही कोई रहता है। उपचार में प्राकृतिक प्रिायाओं से सफाई को अधिक महत्व दिया जाएगा। इस तकनीक में गंदे पानी को चार तालाबों से गुजारा जाएगा जिससे उसकी सिलसिलेवार सफाई होगी व अंत में वह इस स्थिति में आ जाएगा कि उसका उपयोग सिंचाई के लिए हो सके। इस तकनीक में अवशेष स्लज की मात्रा भी न्यूनतम रह जाती है। हालांकि यह तकनीक अमेरिका में विकसित की गई है मगर इसे वाराणसी की स्थितियों के अऩुकूल ढालने का विशेष प्रयास किया गया है।
यह सच है कि सभी स्थानों को अपनी स्थिति के अऩुकूल तकनीक चुननी होगी, पर वाराणसी के लिए तैयार की गई इस योजना की कुछ विशेषताएं ऐसी हैं कि अन्य स्थानों पर भी नदी प्रदूषण कम करने लिए भी इससे बहुत कुछ सीख सकते हैं।
– भारत डोगरा
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