विन्नी एक बेहद मेहनती और प्यारा भालू था। वह चंदनवन में अपने गुणों के कारण सबका चहेता बन गया था। वह स्वयं अपने खेत में गाजर उगाता और उन्हें बेचकर अपना जीवनयापन करता था।
उसी वन में एक खरगोश भी रहता था, जो बड़ी ही चालाक बुद्धि का था। उसकी नज़र हमेशा विन्नी के गाजरों की फसल पर रहती। इसलिए उसने विन्नी से दोस्ती भी कर ली थी। विन्नी मेहनत करके गाजर लगाता, खेत की सिंचाई और निराई करता। लेकिन गाजरों को उखाड़ने का जब वक्त आता तो खरगोश अपनी बेचारगी का बहाना बनाकर उससे कुछ हिस्सा खाने को मॉंग लेता। वहीं विन्नी भी भोलेपन में कुछ गाजरें खाने को उसे दे देता था। इस तरह मांग-मांग कर खाते-खाते खरगोश ढीठ हो गया। तब उसने सोचा कि मैं कब तक इससे मॉंग कर खाता रहूँगा। अब वह हर दिन कुछ गाजरें चुराने लगा। हर दिन गायब होती गाजरों को देखकर विन्नी का माथा ठनका। उसे पता चल गया कि गाजरों की चोरी हो रही है। गाजरों की चोरी पकड़ने के लिए विन्नी को एक तरकीब सूझी।
विन्नी ने अपने सभी दोस्तों से कहा कि मेरी दादी बहुत बीमार हो गई हैं। इसलिए मैं उनसे मिलने के लिए गॉंव जा रहा हूँ, दो दिन में आ जाऊँगा। उसने खरगोश के पास जाकर कहा, दोस्त प्लीज़! तुम मेरे खेतों का ख्याल रखना। ये सुनकर खरगोश मन ही मन खुश हो गया और उसे भरोसा दिलाया कि वह जी-जान से उसके गाजरों की रखवाली करेगा। विन्नी ने अपना सामान लिया और गांव की ओर चला गया।
एक दिन बीता, विन्नी नहीं आया। खरगोश ने सोचा कि विन्नी के आने से पहले ही क्यों न वह कुछ गाजरें चुरा कर बेच आए। फिर क्या था। अगले ही दिन खरगोश ट्रॉली लेकर खेत पर गया और गाजरें उखाड़कर उसमें डालनी शुरू कर दीं। दूर छुपकर खड़े विन्नी के होश ये सब देखकर उड़ गए। विन्नी ने खरगोश के पास जाकर कहा, भालू काका के कहने पर भी मैं नहीं माना कि मेरा दोस्त ही मेरी गाजरें चुरा रहा है। इसलिए मैंने ये सारा खेल रचा। मैं तो गॉंव गया ही नहीं था। यहीं अपने घर के पीछे, भालू काका के घर के पास छिपकर तुम पर नज़र रख रहा था। तुम तो बड़े चोर निकले। दोस्त बनकर चोरी करते तुम्हें शर्म नहीं आई? खरगोश बहुत शर्मिन्दा हुआ। उसने अपनी गलती मान ली और विन्नी से माफी मॉंगने लगा। विन्नी ने उसे माफ कर दिया और खरगोश चंदनवन से दूर चला गया। इस कहानी से हमें ये शिक्षा मिलती है कि हमें हमेशा अपनी मेहनत की कमाई खानी चाहिए, चोरी की नहीं। क्योंकि ऐसा करने पर हम अपनी ही नज़र में गिर जाते हैं और दूसरों का विश्र्वास भी हमारे ऊपर से हमेशा के लिए उठ जाता है।
– संदीप सिंह परमार
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