अंधेरे की चादर में लिपटी बारिश की बूँदें अब रिमझिम फुहार में तब्दील हो चुकी थीं, मगर मोहल्ले में सन्नाटा पसरा हुआ था। चाय की प्याली में अब कुछ ही घूँट और बचे थे। मैं एकटक गली के नुक्कड़ पर देख रहा था, पिछले चालीस मिनट से। औंधे मुँह बेसुध सड़क पर पड़ा वह शराबी अब कुछ बड़बड़ाने लगा तो थोड़ा-सा सुकून मिला मेरे दिल को। शराबखाने वाली सड़क से आया नशे में चूर वह अधेड़ जब लड़खड़ा कर धड़ाम से गिरा था तो मैंने उसे मरा ही समझ लिया था, पर अब सब-कुछ ठीक था। दरअसल, पुलिस केस के डर से मैं उसकी मदद की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था, लेकिन इस घटना से लोगों के व्यक्तित्व की विविधता का अनमोल अनुभव मुझे हासिल हुआ। उस शराबी के गिरने के कुछ ही देर बाद कुछ युवक वहॉं से गु़जरे थे, जिन्होंने मानवता के नाते उसे सड़क के बीच से उठाकर किनारे लिटा दिया और आगे चल पड़े। फिर कुछ मिनट बाद एक बु़जुर्ग ने वहॉं से गु़जरते हुए उसे भिखारी समझकर कुछ रे़जगी (चंद सिक्के) वहॉं रख दी और बढ़ गये। यहॉं तक मैंने नि:स्सहाय की मदद का पाठ पढ़ा, परंतु बाद में जो देखा, वो पहले कभी सुना नहीं था। तब बारिश ते़ज हो चुकी थी, शराबखाने वाली सड़क से ही झूमते-लड़खड़ाते हुए एक युवक सड़क किनारे पड़े उस अधेड़ के पास आया तो मुझे लगा वह भी मदद के इरादे से ही वहॉं आया होगा, मगर ऐसा कुछ न था। उसने वहॉं रखी रे़जगी उठाकर अपनी जेब के हवाले की और उस बेसुध की जेबें टटोलने लगा। अचानक युवक के चेहरे पर एक अजब-सी चमक देखी मैंने। वह 10-10 रुपये के कुछ फटे-पुराने और भीगे हुए नोट पाकर उल्लासित हो उठा, फिर चोरों की भॉंति झट से उसने गर्दन इधर-उधर घुमाकर देखा और मुड़कर ते़जी से अपने कदम बढ़ा लिये शराबखाने की ओर!
-महावीर जैन “हितेश’
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