शाही तबला नवा़ज की स्मृति में आयोजित एक संगीत संध्या

कला और साहित्य के संरक्षण में हैदराबाद अपनी स्थापना के दौर से ही देश-विदेश के कलाकारों के लिए आकर्षण का केन्द्र रहा है। चाहे वह हैदराबाद के संस्थापक कुतुब शाह हों या फिर उसको ऐतिहासिक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका रखने वाले ऩिजाम शाह या फिर स्वतंत्रता के बाद का कलाप्रेमी माहौल- शहर को कला जगत से जोड़ने में सभी अपना-अपना श्रेय रखते हैं।

पिछले दिनों इन्दिरा प्रियदर्शनी सभागार में एक संगीत समारोह का आयोजन हुआ- उस्ताद पापा खान स्मारक संगीत समारोह। अब ऐसे कितने लोग होंगे जो उस्ताद पापा खान को जानते होंगे या उनका नाम सुना होगा, लेकिन समारोह में संगीत से जुड़ी हस्तियों को देख कर ऐसा लगता था वे कि कहीं न कहीं उस्ताद पापा खान की स्मृतियों से जुड़े हैं। हालॉंकि यह नाम नयी पीढ़ी के लिए अजनबी-सा है, लेकिन उनकी शिष्य परंपरा ने उन्हें फिर से जीवित कर दिया है।

नगर के वरिष्ठ तबलावादक एवं पापा खान के पुत्र उस्तान नईम खान और उनके शिष्यों ने ऩिजाम के दरबार से जु़डे पापा खान की स्मृतियों को उस संगीत समारोह में फिर से ता़जा किया।

आन्ध्र-प्रदेश सांस्कृतिक विभाग एवं संगीत सेवालय अकादमी के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित उस संगीत संध्या का प्रारंभ बेबी संजना के सारंगी वादन एवं रंधना के सितार वादन के साथ हुआ। उस्तान नईम खान के शिष्य हरिशंकर शर्मा ने तबले पर संगत की।

इस सुमधुर शुरूआत के बाद नगर के विख्यात हवाइन गिटार वादक जयवंत नायुडू ने अपनी प्रतिभा से संगीत प्रमियों की सराहना प्राप्त की। उन्होंने राग मालकोंस में आलाप प्रस्तुत किया। मध्यालय में तीन ताल की बंदिश खूब रही। उनके साथ तबले पर पी. मुरली एवं मोहम्मद हुसैन खान मौजूद थे। उसके बाद पद्मभूषण उस्ताद साबरी खान के पोते सोहैल यूसुफ खान एवं असलम खान का सारंगी युगल समारोह के मुख्य आकर्षणों में से एक रहा। तबला वादक नजमुद्दीन खान उनके साथ थे।

लोगों को कार्याम का मुख्य आकर्षण समझे जाने वाले मंजू खान का इंत़जार था। अजराड़ा घराने से संबंध रखने वाले उस्ताद हबीबुद्दीन खान के पुत्र उस्ताद मंजू खान को एकल तबला वादन प्रस्तुत करना था। कार्याम शबाब पर था और उस्ताद मंजू खान का जादू सिर चढ़ कर बोला। उन्होंेने अपनी हथेलियों की थाप और उंगलियों का कमाल खूब पेश किया।

उल्लेखनीय है कि सहारनपुर के ध्रुपद घराने से संबंध रखने वाले उस्ताद हुसैन बक्श ने अपने दौर में पखावज वादन के कलाकार के रूप में खूब नाम कमाया था। हैदराबाद के ऩिजामों के कलाप्रेम की कहानियॉं सुन कर वे हैदराबाद आये और मीर महबूब अली खान के दरबार में शाही संगीतकार बन गये। हालॉंकि शाही दरबार में संगीतकार की जगह प्राप्त करना आसान काम नहीं था, क्योंकि मीर महबूब अली खान के साथ-साथ मीर उस्मान अली खान भी कला एवं साहित्य विशेषकर संगीत का उत्तम ज्ञान रखते थे। हुसैन बक्श खान के दोनों पुत्र- पापा खान एवं सिकंदर खान अंतिम ऩिजाम शासक के दरबार में अपनी जगह बनाने में सफल रहे।

उस्ताद पापा खान को ऩिजाम ने शाही तबला नवा़ज का खिताब प्रदान किया था। उनकी स्मृति में विगत कुछ वर्षों से प्रतिवर्ष संगीत समारोह का आयोजन किया जा रहा है, लेकिन इसको जिस ढ़ंग का प्रोत्साहन मिलना चाहिए, नहीं मिल पाया है। हैदराबाद में यूँ तो संगीत कार्यामों एवं महोत्सवों का आयोजन आये दिन होता रहता है, लेकिन हैदराबाद से जुड़ी संगीत-विभूतियों की यादों को ता़जा करने के लिए उनकी स्मृतियों में आयोजित होने वाले आयोजनों को सरकारी एवं गैरसरकारी, दोनों तरह के प्रोत्साहन की आवश्यकता है।

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