सच ही है कि संगीत में भगवान का वास है। कहा जाता है कि अकबर के दरबार में जब तानसेन गाते थे तो दीपक खुद-ब-खुद जल उठते थे। संगीत की इसी शक्ति को अब विज्ञान ने भी माना है। आज जहां एक्यूपंचर थेरेपी, हर्बल थेरेपी, आयुर्वेद थेरेपी, ऑयल मसाज थेरेपी, मड थेरेपी, मैग्नेटिक थेरेपी जैसी चिकित्सा थेरेपियां हैं, वहीं म्युजिक थेरेपी में भी कई रोगों से लड़ने की क्षमता का पता चला है।
मानवता का इतिहास जितना पुराना है, उतना ही पुराना संगीत है। नदी की लहरों की आवाज और पक्षियों की चहचहाहट कुदरती है। शास्त्रीय संगीत और मंत्र उच्चारण की ध्वनियां भी पुरानी हैं। जब संगीत का इस्तेमाल तनाव और अवसाद कम करने में हुआ तो इसे म्युजिक थेरेपी कहा गया। म्युजिक थेरेपी से तनाव, अनिद्रा और डिप्रेशन की समस्या को दूर करने में मदद मिलती है। याद्दाश्त कम होने पर इसकी मदद ली जा सकती है। थेरेपी लेने वाले एग्जीक्यूटिव के अपने साथियों से रिश्ते बेहतर हुए हैं।
म्युजिक थेरेपी में प्रशिक्षित व्यवसायिकों द्वारा संगीत का इस्तेमाल चिकित्सा संबंधी लक्ष्यों को पूरा करने के लिए किया जाता है। इसमें संगीत की मदद से विभिन्न मर्जों को दूर किया जाता है। इस चिकित्सा पद्घति के लक्ष्यों की कोई सीमा नहीं है यानी बहुत से मर्ज के लिए इस पद्घति को प्रयोग में लाया जाता है। म्युजिक थेरेपी व्यक्ति में सामाजिक और अंतर्वैयक्तिक विकास, स्वचेतना, धार्मिकता या आत्मिकता का संचार करती है। म्युजिक थेरेपी भी अब किसी भी पेशेवर चिकित्सा पद्घति और शारीरिक शिक्षा पद्घति के समान स्वास्थ्य सेवा के रूप में स्थापित हो चुकी है।
म्युजिक चिकित्सक संगीत के प्रयोग से बिना संगीत की प्रकृति में सुगमता से बदलाव ला सकते हैं। संगीत का इस्तेमाल दर्द से राहत, चिंता, तनाव को कम करने के साथ-साथ मूड और भावनात्मक स्थिति में भी सकारात्मक बदलाव लाने में सहायक होता है। म्युजिक थेरेपिस्ट ने लगभग सभी प्रोफेशंस में इस पद्घति को मददगार बताया है। कारपोरेट कंपनियों में आजकल म्युजिक थेरेपी बहुत डिमांड में है। आर्थिक तरक्की की तेज रफ्तार से कंपनियां मालामाल हो रही हैं। ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाने की होड़ से कारपोरेट सेक्टर एग्जीक्यूटिव पर भी दबाव बढ़ रहा है। काम के घंटे पहले से ज्यादा हो गए हैं। इस तनाव को कम करने के लिए कारपोरेट एग्जीक्यूटिव के बीच म्युजिक थेरेपी का चलन बढ़ रहा है। म्युजिक थेरेपी से जहां तनाव कम हुआ है, वहीं कर्मचारियों की उत्पादकता में इजाफा हुआ है। अब निजी क्षेत्र में कंपनियां अपने एग्जीक्यूटिव्स के लिए म्युजिक थेरेपी के वर्कशॉप करवा रही हैं। लोग ऑफिस में काम करते वक्त या डाइविंग के वक्त म्युजिक थेरेपी की मदद लेते हैं, जिससे उन्हें तनाव कम करने में मदद मिलती है। म्युजिक सुनते समय अगर गाया भी जाए तो शरीर में खास हार्मोन का संचार होता है, जो तनाव और डिप्रेशन को खत्म कर देता है।
संगीत एक यूनिवर्सल भाषा है। ये मानवीय जीवन के सभी स्तरों को प्रभावित करता है। ये संचार का माध्यम है, जिसमें सुखद और आरामदायक एहसास मिलता है। आधुनिक विज्ञान और मेडिकल साइंस अब भी संगीत की हीलिंग पॉवर्स को खोज रहे हैं और म्युजिक थेरेपी, म्युजिक का विशेष प्रयोग करके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य की विशेष जरूरतों के अनुरूप इलाज किया जाता है। म्युजिक आयुर्वेद का बहुत पुराना भाग है, जो खुश और स्वस्थ जीवन-शैली को प्रमोट करता है। आदिकाल से संगीत भारतीय संस्कृति का भाग रहा है। वेदों में भी संगीत का विशेष महत्व है। “सामवेद’ तो पूर्णरूप से संगीत से भरपूर है। वात, पित्त और कफ जैसे दोषों को म्युजिक थेरेपी के जरिए काबू किया जा सकता है। भारतीय शास्त्रीय संगीत के महान संगीतकार भी कई वर्षों से म्युजिक थेरेपी का प्रयोग करते आ रहे हैं। शास्त्रीय संगीत के उस्ताद त्यागराज ने अपने संगीत से एक मृत व्यक्ति को जिंदगी बख्शी थी।
ऐसा विश्र्वास है कि संगीत ग्रंथियों में उत्तेजना पैदा करता है, जो नर्वस सिस्टम और रक्त प्रवाह को प्रभावित करता है। ऐसा मानना है कि शरीर की कोशिकाओं में स्पंदन की आवश्यकता होती है, जो संगीत के साथ आराम करने से मिलती है। ये स्पंदन बीमार व्यक्ति की चेतना में अच्छे स्वास्थ्य के लिए प्रभावकारी बदलाव कर सकता है। सही प्रकार का संगीत व्यक्ति को रिलैक्स करता है और तरोताजा रखता है। काम के दौरान हल्का संगीत उत्पादकता में सुधार लाता है। संगीत सुनने से चिंता, गुस्सा और पक्षपात जैसे नकारात्मक पहलू भी हमसे दूर रहते हैं। संगीत सिरदर्द, पेट संबंधी विकार और चिंता को भी दूर करता है। म्युजिक थेरेपी भावनाओं, ब्लड प्रेशर पर काबू रखने का और लीवर के कार्यों को सुचारु रूप से चलाने का सबसे प्रभावशाली तरीका है।
चेन्नई के राग रिसर्च सेंटर ने हाल ही में भारतीय रागों का अध्ययन किया और संगीतकारों, चिकित्सकों और मनोवैज्ञानिकों की मदद से इनकी चिकित्सीय क्षमता की जांच की। ऐसा मानना है कि भारतीय शास्त्रीय राग से इंसोमेनिया, हाई व लो ब्लड प्रेशर और सीजोफ्रेनिया जैसी अनेक बीमारियों में मदद मिलती है। कुछ राग दर्द से लड़ने में भी मदद करते हैं।
संगीत में खुशी, शांति, स्वास्थ्य और एकाग्रता बढ़ाने की भी क्षमता होती है। यह जानना भी बहुत आवश्यक है कि म्युजिक थेरेपी का कौन-सा तरीका, कितने समय तक इसे इस्तेमाल करना चाहिए। यह जानकारी निरंतर प्रयोग और अनुभव से मिलती है। म्युजिक थेरेपी को प्रयोग करते समय पहले बीमारी की पहचान की जाती है और फिर उसके बाद मददगार राग का चुनाव किया जाता है। कार्यवाही, अनुशासन और उचित तरीके से लक्ष्य को पाया जा सकता है। एक ही प्रकार का संगीत सभी के लिए अच्छा नहीं होता। सभी की पसंद अलग-अलग होती है। यह बहुत जरूरी है कि जो संगीत चल रहा हो, वो आपको पसंद हो।
संगीत मस्तिष्क के विभिन्न हिस्सों पर असर डालता है। संगीत का भावनाओं और सामाजिक इंटरेक्शन पर प्रभाव डालना थेरेपी का ही एक भाग है। म्युजिक थेरेपी से तनाव कम होता है, मूड अच्छा होता है और चिंता की स्थिति में कमी आती है। विवरणात्मक और प्रयोगात्मक दोनों प्रकार के अध्ययन से यह जानकारी मिलती है कि संगीत जीवन को गुणवत्ता प्रदान करता है, पर्यावरण में समाहित है, भावनाओं को व्यक्त करने का माध्यम है, जागृति और जिम्मेदारी का भाव दिलाता है, सकारात्मक संस्था का निर्माण करता है और समाजीकरण लाता है। हाल ही के कुछ सर्वेक्षणों से पता चला है कि संगीत मरीज में मोटीवेशन और सकारात्मक भावनाओं को बढ़ाता है। अगर म्युजिक थेरेपी का प्रयोग पारंपरिक थेरेपी के साथ किया जाए तो सफलता की दर बढ़ जाती है। इसलिए स्टोक पेशेंट्स के लिए म्युजिक थेरेपी मददगार साबित होती है और मरीज को जल्दी रिकवर करने में सहायता करती है।
अल्झाइमर, पेरिंकसन, अन्य मूवमेंट डिसऑर्डर, टॉमेटिक चोट, स्टोक, एक्यूट एंड ाॉनिक पेन, डिप्रेशन जैसी बीमारियों में म्युजिक थेरेपी बहुत मददगार साबित होती है।
मरीज की जरूरतों के अनुसार विभिन्न प्रकार की म्युजिक थेरेपी हैं। म्युजिक थेरेपी निश्र्चित नहीं है। सभी मरीज अलग हैं और सभी की अपनी बुनियाद है और सभी अलग तरह के संगीत को समझते हैं। म्युजिक थेरेपी को अलग-अलग पसंद और जरूरतों के अनुसार अलग-अलग श्रेणियों में बांटा गया है।
– जिल्ले रहमान
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