संगीत मेरा धर्म और वायलिन मेरी जान है

मशहूर संगीतकार इस्माइल दरबार के बारे में कुछ भी कहने से पहले एक बार सोचना जरूरी है। इसकी वजह है कि वे किसी भी बात के लिए घुमाव-फिराव पसंद नहीं करते और अपनी साफगोई के चलते वे कई बार लोगों की नाराजगी के शिकार भी होते हैं। लेकिन संजय लीला भंसाली के प्रिय संगीतकारों में शामिल रहने के बावजूद जब उन्हें फिल्म सांवरिया में नहीं दोहराया गया तो भी उन्होंने कोई शिकायत नहीं की। हॉं, जी के सारेगामा पर वे कुछ भी पसंद न आने या गलत होने पर अपनी नाराजगी और शिकायत जरूर दर्ज करवाते रहे और इस बार वे अपना मंच बदलकर स्टार प्लस के संगीत शो वॉयस ऑफ इंडिया टू में बतौर जज हैं और वह भी अपने सांवरिया का संगीत देने वाले सहायक मोंटी शर्मा के साथ।

यह सही लगता है कि गुरु और शिष्य एक साथ किसी शो में जज हों?

वह शिष्य कहॉं है? वह तो मेरा सहयोगी था। मोंटी के पिता रामप्रसाद शर्मा जी मेरे गुरु रहे हैं। मैं तो मोंटी का शुागुजार हूँ कि उसकी वजह से मुझे संगीत जगत में पहचान मिली।

कैसे?

मैं उनके घर सीखने जाता था और मोंटी को स्कूल छोड़ने भी। तब मैं कुछ भी नहीं था और मोंटी की तरफ देखता था कि काश वह मेरे लिए अपने पिता से सिफारिश कर दे। मोंटी से मुझे कोई शिकायत नहीं। वह बहुत काबिल संगीतकार है।

आपने संजय लीला भंसाली से सांवरिया के लिए शिकायत नहीं की?

इसमें ऐसी क्या बात है? मैंने उनके साथ इतनी बेहतर फिल्मों में काम किया। सो इस बार उन्होंने मोंटी को ले लिया। (हंसते हैं)

आप किसी के बारे में कुछ भी क्यों कह देते हैं?

ऐसी बात नहीं है। मैं सिर्फ संगीत के बारे में बात करता हूँ, लोगों के बारे में नहीं। मेरे पिता ने मुझे यही सिखाया कि संगीत हमारी जिंदगी और धर्म है। वह लोगों तक सही पहुँचना चाहिए।

तो सारेगामा और वॉयस ऑफ इंडिया जैसे टेलेंट हंट के बाजारों में आप क्या कर रहे हैं?

(हंसते हैं) यह सवाल ऐसा है जैसे कोई पूछ रहा हो कि कोई भूखा आदमी खाना क्यों खा रहा है? ये ऐसे मंच हैं, जो नए लोगों को मौका दे रहे हैं। ऐसे शोज में शामिल शान, सोनू निगम, श्रेया घोषाल और विशाल शेखर भी इन्हीं की देन हैं। बतौर एक संगीतकार यदि मुझे कुछ बेहतर नजर आता है तो मैं वह करता हूँ।

आपने संजीव कुमार की “कत्ल’ में वायलिन बजाना शुरू किया था और आज भी आपका वायलिन आपके हाथ में है?

मेरे पिता सेक्सोफोन के चमत्कारी कलाकार थे। वे चाहते थे कि मैं इसके साथ संगीत कंपोज भी करूं, लेकिन तब लोग मुझे केवल इस्माइल के नाम से जानते थे और मेरा संघर्ष मेरे पिता से भी बड़ा था। हम “दिल दे चुके’ ने मेरा समय बदल दिया और मैं इस्माइल दरबार हो गया। मेरा वायलिन मेरी जान है।

मगर “देवदास’ और “किसना’ के बाद आप खो गए?

नहीं। लोगों का मानना है कि मैं केवल कुछ खास किस्म की फिल्मों और पटकथाओं के साथ ही काम कर सकता हूँ, पर मैं हर तरह का काम कर सकता हूँ। मैंनै जिन कंपनियों के लिए अलबमों पर काम किया है, वे मुझे दोहराना चाहते हैं। कोई अगर यह समझता है कि मेरे यहॉं उसे सब कुछ बना बनाया मिल जाएगा तो ऐसा मैं नहीं कर सकता।

आपको आज का रेडीमेड संगीत पसंद नहीं?

(हंसते हैं) मैं जानता हूँ कि आपका इशारा किस तरफ है? मैं ऐसा नहीं कह रहा हूँ। मैं किसी के बारे में कोई राय या कमेंट नहीं दे सकता। यह अधिकार मेरा नहीं है। यदि किसी निर्देशक को किसी का काम पसंद आता है तो वह उसकी मर्जी है। मेरी चार पीढ़ियों से संगीत का संघर्ष चला आ रहा था। आखिर संजय लीला जी ने भी मुझे मौका दिया ही ना।

आपके संघर्ष के दिनों की कितनी याद है आपको?

(हंसते हैं) लोग आज मेरे बारे में बात करते हैं, पर हमेशा ऐसा नहीं था। मुझे अपने परिवार के लिए जिंदगी से लड़ना पड़ा। मैंने करीब-करीब हर बड़े संगीतकार के लिए वायलिन बजाया। जब संजय ने मुझे मौका दिया तो मेरे गुरु पंडित राम प्रसाद शर्मा और श्रीगणेश जी की सिखाई संगीत की सारी शिक्षा काम आ गई। संजय मेरे लिए गॉडफादर सरीखे हैं।

फिर भी नए चुने गए लोगों में वह माद्दा नहीं जो हमारे पुराने गायकों में है?

लताजी और किशोर जी जैसे लोग बार-बार पैदा नहीं होते, पर हर आदमी अपने लिए नई जगह बना लेता है।

आप अपने बारे में क्या कहते हैं?

(हंसते हैं) कुछ नहीं। मेरे बारे में पूछना हो तो मेरी बीवी और बच्चे से पूछिए। वे कहते हैं हम ब्रेड खा लेंगे पर संगीत में आपको सब जैसा नहीं देख सकते। मैं संगीत के लिए ही जीता हूँ।

अब तक आपने अपनी नयी फिल्मों के बारे में किसी को नहीं बताया?

हैं नहीं तो नहीं बताया, जब होंगी तो बता दूंगा। (हंसते हैं)

– इस्माइल दरबार

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