परमाणु ऊर्जा करार का दो वर्ष तक संसद में और संसद के बाहर तीव्र विरोध करने पर भी समाजवादी पार्टी अचानक उसकी हिमायती बन गई। अलबत्ता उससे पहले उसने भारत सरकार के राष्टीय सुरक्षा सलाहकार नारायणन और पूर्व राष्टपति अब्दुल कलाम से सलाह ले ली थी। परन्तु कई राजनीतिक टिप्पणीकार कहते हैं कि एक ओर बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती की बढ़ती लोकप्रियता और दूसरी ओर गलत तरीकों से विपुल संपत्ति के आरोप में सीबीआई की कार्रवाई से घबरा कर ही समाजवादी पार्टी के राष्टीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने अपना पैंतरा बदला है।
संसदीय आम चुनाव में समाजवादी पार्टी को जितने क्षेत्रों में जीत मिलेगी उनमें लगभग सभी उत्तर प्रदेश से होंगे। बहुजन समाज पार्टी और मायावती की विशाल रैलियों के बावजूद जो कि भारत के हर महानगरों में हो चुकी हैं, उनके ज्यादातर सांसद भी इसी राज्य से लोकसभा में पहुँचेंगे। विगत संसदीय आम चुनाव के अवसर पर मुलायम सिंह यादव का यह आकलन था कि कांग्रेस नीत मोर्चे व भाजपा नीत मोर्चे में से कोई भी सांसदों की उतनी बड़ी संख्या नहीं पा सकेगा जिससे सरकार बन सके और उस स्थिति में वे समाजवादी पार्टी के चालीस सांसदों के बूते पर प्रधानमंत्री बन जायेंेगे। तब वैसा न हो सका। इस बार वे ही नहीं मायावती भी इसी आकलन को लेकर चल रही हैं।
मायावती को तो लोकसभा में विश्र्वासमत के दौरान यह आश्र्वासन मिल गया था कि वह प्रधानमंत्री के पद पर पहुँच सकती हैं। मुलायम सिंह ने अब राष्टीय जनता दल (राजद) के अध्यक्ष व रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव और लोक जन शक्ति के अध्यक्ष रामविलास पासवान के साथ विशेष गठबंधन किया है। हालॉंकि वे तीनों संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन के भागीदार हैं। अमरसिंह के पक्ष में संयुक्त वक्तव्य जारी करके इन तीनों ने अपनी इस नई एकता को ़जाहिर कर दिया है।
हाल में ही सपा उपाध्यक्ष और सांसद जनेश्र्वर मिश्र के जन्मदिन पर बधाई देने वालों में लालू प्रसाद यादव भी थे और रामविलास पासवान भी। उस जन्मदिन समारोह को पूरे उत्तर प्रदेश के सभी जिलों में बहुत जोश-खरोश के साथ मनाया गया। शायद बसपा के ब्राह्मण कार्ड के मुकाबले में सपा ने भी अपना कार्ड खेला है। जनेश्र्वर मिश्र खांटी प्रतिबद्घ समाजवादी हैं जो तीन बार लोकसभा सदस्य रहने के बाद सन् 1992 से राज्यसभा में हैं और दो बार 1979 और 1989 में राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) रहे हैं किन्तु जब जातियां ही प्रमुख समझी जा रही हैं, तो अमर सिंह के बाद जनेश्र्वर मिश्र का नाम भी प्रचारित किया जा रहा है। राम विलास पासवान सपा के साथ रहे तो संसदीय आम चुनाव में मुलायम सिंह अपने मुस्लिम-यादव गठबंधन में ठाकुरों, ब्राह्मणों और दलितों को जोड़ने में सफल होने की आशा करेंगे।
मायावती को वामपंथी दलों का समर्थन मिलेगा। लखनऊ में विशाल रैली के अवसर पर जो पोस्टर दीवारों पर चिपकाए गए हैं, उनमें उन्हें संसद भवन और लाल किले के सामने दिखाकर भावी प्रधानमंत्री के तौर पर पेश किया गया है। दलित वोट बैंक को पूरी तरह गरमाने, महिलाओं को प्रभावित करने और धार्मिक अल्पसंख्यकों में नया संदेश देने के उद्देश्य से ही यह प्रचार सामग्री तैयार की गई है। जातियों संबंधी गठजोड़ में भी वैसे ही प्रयास जारी हैं, जैसे राज्य विधानसभा के आम चुनाव से पहले किये गये थे।
भाजपा राज्य विधानसभा के आम चुनाव में पिट गई थी क्योंकि उसने पूरा भरोसा एक ही दांव पर किया था। वह था मुलायम सिंह का विरोध। उसकी साख नहीं जमी क्योंकि उसके दो नेताओं कल्याण सिंह और टंडन को मुलायम सिंह का हिमायती माना जाता था। अलबत्ता, अब अमरनाथ यात्रियों के लिए अस्थायी तौर पर ़जमीन देकर वापस लेने के फैसले के चलते भाजपा ने न केवल जम्मू को गरमाया है बल्कि पूरे भारत में वह उसे रामजन्म भूमि आंदोलन जैसी दृढ़ता के साथ चलाने का प्रयत्न कर रही है। उधर, दक्षिण में रामसेतु मुद्दा भी उसने उठा रखा है। यदि विगत संसदीय आम चुनाव उसने “भारत उदय’ पर लड़ा था, अगला चुनाव वह हिंदुत्व संबंधी मुद्दों पर ही लड़ेगी। उसका यह कारण भी है कि परमाणु ऊर्जा संधि, जिसे कांग्रेस आम चुनाव का प्रमुख मुद्दा बनाना चाहती है, पर भाजपा की नीति कांग्रेस से अलग नहीं है।
कांग्रेस और उसके सहयोगी दल अर्थव्यवस्था के असंगठित क्षेत्र के मजदूरों की सामाजिक सुरक्षा और समाज कल्याण संबंधी विधेयक को इसी वर्ष संसद में स्वीकृत कराना चाहते हैं। वे महिला आरक्षण विधेयक को भी स्वीकृत कराना चाहेंेगे। महंगाई, उनके विचार से, अक्तूबर में नई फसल आने के बाद और अमेरिका की आर्थिक शिथिलता खत्म होने के बाद घटती जाएगी। अगले वार्षिक बजट में वित्तमंत्री कुछ अन्य लुभावने प्रस्ताव ला सकते हैं ताकि जनता के मत प्राप्त करने में आसानी हो। उनका महंगाई संबंधी आकलन सही सिद्घ होगा या नहीं, इस पर अर्थशास्त्रियों में मतभेद हैं। पश्र्चिम एशिया में कूटनीतिक तनाव बढ़ता है तो पेटोल, डीजल, गैस व कैरोसिन के दाम बढ़ेंगे और महंगाई के घटने की संभावना खत्म हो जाएगी। यह स्थिति संप्रग के लिए मुश्किलें बढ़ायेगी।
वामपंथी दलों को आगामी संसदीय आम चुनाव में आज की अपेक्षा कम सीटें मिलेंगी। केरल में एक तो हर पॉंच वर्ष में सत्ता बदलाव होता ही है और संसद में भी वैसा ही उतार-चढ़ाव होता है। पश्र्चिम बंगाल के पंचायती चुनावों में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी को सबसे निचले स्तर पर 50 प्रतिशत मत मिले थे। इसके चलते वहॉं भी वह लोकसभा में पहले से कम स्थान हासिल करे तो हैरानी नहीं होगी। इन हालात में वामपंथी दलों व संयुक्त राष्टवादी प्रगतिशील गठबंधन की ताकत घटेगी, हालांकि तेलुगू देशम् पार्टी, हरियाणा लोकदल और असम गण परिषद को कुल मिलाकर वर्तमान सात की तुलना में सैंतीस स्थान मिल सकते हैं क्योंकि आंध्र प्रदेश में सत्ता विरोधी लहर से कांग्रेस को भारी नुकसान संभव है। बसपा और इन दोनों गठबंधनों को 110-115 स्थान प्राप्त हो सकते हैं। यदि संप्रग और राजग में कोई भी बहुमत हासिल नहीं कर पाया तो फिर इस तीसरे मोर्चे के हाथ में पहल आ सकती है और मायावती और चंद्रबाबू नायुडू सत्ता की बागडोर संभालने में भागीदार बन सकते हैं।
– सुरेंद्र मोहन
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