हाल में देश के विभिन्न हिस्सों में जन-आंदोलनों में जुटी ताकतें अब संसदीय राजनीति में दखल देने जा रही हैं। एक लंबी प्रिाया और बहस के बाद जन-आंदोलनों ने साझा मंच का गठन जुलाई के दूसरे हफ्ते में जयपुर में किया। लोक राजनीति मंच के गठन के बाद राष्टीय राजनीति में फिर नई पहल की तैयारी है।
गौरतलब है कि लोक राजनीति मंच पर राष्टीय कार्य समिति की तीन अगस्त को देश की राजधानी दिल्ली में बैठक हुई। इस बैठक में कुलदीप नैयर, बनवारी लाल शर्मा, मेधा पाटकर, अरुणा राय और योगेन्द्र यादव आदि शामिल हुए। यह मंच मुख्य रूप से गांधीवादी, सर्वोदयी, समाजवादी, पर्यावरण आंदोलन व अन्य आंदोलनों से जुड़ी ताकतों का मंच बनकर उभर रहा है।
इस मंच का स्थापना सम्मेलन 12 व 13 जुलाई को राजस्थान की राजधानी जयपुर में हुआ। इस स्थापना सम्मेलन में समूचे देश के 16 राज्यों के जन-आंदोलनों के नुमाइंदे शामिल हुए थे। इनमें आजादी बचाओ आंदोलन, बंधुआ मुक्ति मोर्चा, आशा परिवार व युवा भारत जैसे संगठन शामिल थे।
लोक राजनीति मंच की स्थापना का मुख्य उद्देश्य है भारतीय राजनीति में आई गिरावट को दूर करना। इस मंच के द्वारा देश में एक नई राजनीतिक पहल करने की कोशिश की जा रही है जिससे एक साफ-सुथरा राजनीतिक पटल युवाओं को मिल सके और जनता के मुद्दों की बात हो सके।
हाल में यूपीए सरकार को बचाने के लिए जिस तरह माननीय सांसदों ने सौदेबाजी की और भारतीय संसद में नोटों का बंडल लहराया, इस घटना से चिन्तित होकर जन आंदोलनकारियों ने माना कि ऐसे मुद्दों को लेकर जनता के बीच जाना अब जरूरी हो गया है। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए पूरे देशभर के जनांदोलनकारियों ने लोक राजनीति मंच की स्थापना की है।
सांसदों की सौदेबाजी हमारे लोकतंत्र के लिए धब्बा है और मुख्यधारा के राजनीतिक दल सत्ता और संपत्ति के ऐसे केन्द्र बन गए हैं जो किसी मर्यादा से बंधे हुए नहीं हैं। जनता के नाम पर चल रहे इस तंत्र में जनता बेबस है। यदि भूले-भटके कोई दल जनता के मुद्दों की बात करते हैं तो वे भी सत्ता में आने के बाद जनता विरोधी नीतियों को अपनाने से चूकते नहीं हैं।
अब सवाल यह उठता है कि इस विकट परिस्थिति में जनता को यह फैसला लेना है कि क्या वास्तव में लोक राजनीति मंच के माध्यम से इस देश का भला हो सकता है। जिन लोगों ने आज तक समाज में व्याप्त बुराईयों को दूर भगाने के लिए संघर्ष किए हैं वे लोग इस देश में आशा की किरण जलाकर जनता के मुद्दों की बात कर सकते हैं। ऐसे लोग आम लोगों को मूलभूत सुविधाएँ प्रदान करने में कोताही नहीं बरत सकते। ऐसा मेरा मानना है।
– अविनाश कुमार
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