सतही राजनीति का बाजारीकरण

आज राजनेताओं की ऐसी भीड़ बढ़ गयी है जिनमें चारित्रिक निर्लज्जता खुलकर सामने आ रही है। इसका मूल कारण है क्षणिक फायदे की राजनीति, जो सतही राजनीति के बाजारीकरण की व्यवस्था लादती है। फलस्वरूप, हम हमेशा असुरक्षित तथा लाचारीपन का एहसास करते हैं। आज हर काम वोटों से लाभ-हानि का गणित बिठाकर करना राजनीति का सीमित उद्देश्य रह गया है। आज हर राजनैतिक दल को एक अदृश्य भय सताता है कि सच बोलने से कहीं कोई वर्ग नाराज न हो जाये। हमेशा ढुलमुल व सुविधाजनक भाषा का प्रयोग करते हैं ताकि समयोचित तोड़-मोड़कर अपनी बात रख सकें, कह सकें। स्वयं को प्रबुद्घ कहलाने हेतु प्रतिद्वंदी की कमजोरी को आकर्षक तरीके से पेश करना और हर आतंकवादी हमले के बाद केवल सांत्वना व खेद जताना, विरोधियों को दुष्ट बताना, अपराधियों में धर्माधारति भेदभाव करना, नारों की खेती से जनता को भ्रमित करना, अवैध नहीं परंतु अनैतिक कार्यों में लिप्त होना, दुर्भावनापूर्ण प्रयोजन से भीड़तंत्र को स्वार्थगत अपनाना और सदाशयता की कमी व स्वार्थीपन से अराजकता फैलाना। ऐसे सतही राजनीति के नुस्खे अपनाते रहने से ही आज राजनेताओं की साख दिन ब दिन घटती जा रही है। आज राजनीति व राजनेताओं को सम्मानित दृष्टि से इसीलिए नहीं देखा जाता।

– पूनम जोधपुरी (हैदराबाद)

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