सर्वसिद्घिदायक एकाक्षरी मंत्र ॐ

ॐकार को प्रणव मंत्र कहा जाता है। यह सर्वमंत्रों का मूल है और सभी मंत्रों में संयुक्त होता है अर्थात् यदि अन्य मंत्राक्षर रेलगाड़ी के डिब्बे हैं तो यह उनका इंजन है, शक्ति संचारक है, इसके बिना मंत्र अपना प्रभाव नहीं दिखाता, अतः इस मंत्र की अपूर्व महिमा है।

वैदिक परम्परा में “ॐ’ ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों शक्तियों का प्रतीक है। ब्रह्मा का अ, विष्णु का उ, महेश का म। और जैन आचार्यों की व्याख्यानुसार “ॐ’ में पंच-परमेष्ठी के प्रथम अक्षरों का सान्नियोजन किया गया है।

अरिहंता असरीरा आयरिय उवज्झाय मुणिणा।

पंचक्खर निघ्न्नों ओंकारो पंच परमिट्ठी।।

अरिहंत का आदि अक्षर- अ

(अशरीरी) सिद्घ का आदि अक्षर- अ

आचार्य का आदि अक्षर – आ

उपाध्याय का आदि अक्षर – उ

मुनि का आदि अक्षर – म्

अ में अ जोड़ने पर आ बना। इसमें आचार्य का आ मिला तो भी “आ’ बना रहा। फिर “आ’ में “उ’ जोड़ने पर “ओ’ बन गया। इसमें मुनि का “म्’ जोड़ने पर “ओम्’ बना। इस प्रकार “ॐ’ पंच-परमेष्ठी का वाचक सर्वश्रेष्ठ एकाक्षरी मंत्र है। इस मंत्र की स्तुति में कहा गया है –

कामदं मोक्षदं चैवं ॐ काराय नमो नमः।

मोक्ष एवं काम – धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों पुरुषार्थ का दायक यह मंत्र है। ॐ के उच्चारण से शरीर की प्राण-शक्तियां चैतन्य हो जाती हैं। सम्पूर्ण शरीर में “ॐ’ का नाद गूंजता है तो ज्ञान तंतु सिाय हो जाते हैं तथा आराध्य की शक्ति भी उसमें अनुभव होने लगती है। ॐ का स्वतंत्र जप भी होता है तथा ॐ नमः कहकर माला फेरी जाती है। इसकी माला से सर्वकार्य सिद्घ होते हैं। एक श्र्वास में कम से कम 27 बार ॐ जपना चाहिए।

ॐ ह्रीं नमः – यह मंत्र सर्वप्रकार की ऋद्घि-सिद्घि का दाता है। एक दीर्घश्र्वास में इसका जाप करने से यह शीघ्र फल देता है।

ह्रीं नमः – यह मंत्र भी पांच परमेष्ठी का वाचक माना गया है। वैसे यह स्त्री शक्ति बीज मंत्र है। किसी भी मंत्र के साथ जुड़कर उसकी शक्ति में वृद्घि करता है और स्वतंत्र मंत्र भी है, जो मानसिक शक्तियों को जगाता है।

ॐ ह्रीं अर्हं नमः – यह अहं मंत्र है। एक पूरा मंत्र एक श्र्वास में जपना चाहिए। प्रतिदिन एक माला फेरने से सर्व मनवांछित कार्य सिद्घ होते हैं।

ॐ अ सि आ उ सा – हेमचन्द्राचार्य के अनुसार यह पंचाक्षरी मंत्र सर्व कल्याणकारी है। यह सर्वकार्य साधक मंत्र है।

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