सांस की बदबू एक ऐसी स्वास्थ्यजनित समस्या है जिसके नुकसान महज स्वास्थ्य संबंधी नहीं होते बल्कि इससे आर्थिक, सामाजिक, मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक नुकसान भी होते हैं। आमतौर पर सांस की बदबू चार प्रकार की होती है-
- फिजियोलॉजिक बैड ब्रेथ
- पैथोलॉजिक बैड ब्रेथ
- हैलिटोफोबिया
- जेरास्टोमिया
फिजियोलॉजिक बैड ब्रेथ का कारण शारीरिक होता है। आमतौर पर यह अधेड़ उम्र के बाद के लोगों को होती है, लेकिन खानपान और जीवनशैली में भारी तनाव और बेतरतीबी के कारण आजकल यह बड़े पैमाने पर नौजवानों में भी देखी जाती है। यह समस्या दरअसल जीभ में जरूरत से ज्यादा बैक्टीरिया पैदा हो जाने के कारण होती है।
पैथोलॉजिक बैड ब्रेथ के पीछे कारण कोई न कोई शारीरिक बीमारी होती है। जब कोई बीमारी काफी देर तक शरीर को अपना शिकार बनाती है तो धीरे-धीरे उसके जीवाणु पूरे शरीर को रोगग्रस्त कर देते हैं और शरीर की प्रतिरोधक क्षमता का ह्रास हो जाता है। इससे सांसों से बदबू आने लगती है।
हैलिटोफोबिया सांस की दुर्गंध का वह कारण है जो शारीरिक से ज्यादा मनोवैज्ञानिक और तनाव से संबंधित होता है। हैलिटोफोबिया के पीछे कारण होता है एक ऐसा भय- जो दिल-दिमाग में बैठ चुका होता है कि मेरे मुँह से बदबू आती है और यह दूर नहीं होगी। आमतौर पर इस तरह का मनोवैज्ञानिक भय उन लोगों में सबसे ज्यादा होता है जो सांस की बदबू का इलाज करा चुके होते हैं।
जेरास्टोमिया का मतलब होता है- मुँह का जरूरत से ज्यादा सूख जाना। गौरतलब है कि मुँह में बनने वाली लार भोजन को पचाने में सहायक होती है। साथ ही साथ यह मुँह के अम्लीय वातावरण को कम करती है तथा मुँह में ऑक्सीजन के स्तर को बढ़ाए रखती है ताकि मुँह के ऊतक स्वस्थ व ताजा बने रहें। लेकिन जब मुँह के सूखने के कारण लार कम हो जाती है तो जीवाणु तेजी से बढ़ते हैं और वे वाष्पशील सल्फर कंपाउंड में तब्दील होने लगते हैं। इससे मुँह का स्वाद खराब हो जाता है, जीभ में पपड़ी जमने लगती है, होंठ सूखकर फटने लगते हैं और मुँह से दुर्गंध आने लगती है।
इसके अलावा कभी-कभी कोई खाद्य सामग्री कच्ची रह गई हो, या तीखी गंध वाली सब्जियॉं- जैसे प्याज, लहसुन आदि का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल कर लिया जाए, तो भी मुँह से बदबू आने लगती है और यह बदबू 24 से 72 घंटे तक बनी रहती है।
उपाय:- सबसे पहले तो यह जानें कि मुँह से बदबू आने के कारण क्या हैं? दरअसल, मुँह की दुर्गंध के लिए एनारोबिक जीवाणु जिम्मेदार होते हैं। किसी भी वजह से जब इस बैक्टीरिया को मुँह में एक ऐसा वातावरण मिलता है जिसके संपर्क में आने के बाद यह वाष्पशील सल्फर कंपाउंड उत्पन्न करने लगता है तो यह तेजी से अपना विस्तार करता है। विस्तारित होकर यह जब हाइड्रोजन सल्फर ऑक्साइड और मिथाइल के संपर्क में आता है तो मुँह में कई तरह के रसायन उत्पन्न करता है। यह वाष्पशील सल्फर मिश्रण ही वास्तव में मुँह की दुर्गंध होते हैं।
इसके अतिरिक्त, अगर लगातार मसूढ़ों की बीमारियॉं बनी हुई हैं, मुँह में बैक्टीरिया का संक्रमण है, मुँह का कैंसर है या मुँह बहुत सूख रहा है तो इससे भी मुँह से दुर्गंध आएगी। कई बार मुँह की दुर्गंध का कारण लगातार खांसी-जुकाम का बना रहना भी होता है। जिन्हें साइनस का संक्रमण रहता है, एलर्जी या मधुमेह की समस्या होती है, उन्हें भी मुँह की बदबू की परेशानी बनी रहती है। कई बार मासिक धर्म के दौरान ली गई दवाएँ भी मुँह की बदबू का कारण बनती हैं। इसके अलावा लगातार तनाव में रहना, कुछ ऐसे भोजन करना जिनमें दुर्गंध युक्त मसालों और सब्जियों का इस्तेमाल किया गया हो, प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थ जैसे दूध, पनीर, दही, मांस, मछली आदि खाने के बाद दांतों को साफ न करना और काफी देर तक अगर मुँह में ये चीजें बनी रहती हैं तो एयरोबिक बैक्टीरिया बड़ी मात्रा में वाष्पशील सल्फर कंपाउंड पैदा करने लगते हैं, नतीजतन मुँह से बदबू आने लगती है।
मुँह की बदबू को रोका जाना संभव है। ध्यान रखने वाली कुछ बातें इस प्रकार हैं-
- नियमित रूप से हर खाने के बाद दांतों की सफाई करें।
- अगर दांतों में किसी तरह की बीमारी है तो हर 3 महीने बाद डॉक्टर के पास जाकर चैकअप कराएँ।
- मसूढ़ों की बीमारी होने पर तुरंत डॉक्टरी इलाज लें, जरा भी देर परेशानी का बायस बन सकती है।
- अगर मुँह लगातार सूख रहा है तो डॉक्टर को दिखायें।
- अगर दवा खाने पर मुँह से बदबू आती है तो पानी पीने की मात्रा दोगुना कर दें।
- हर दिन रेशेयुक्त फल व सब्जियॉं खाएँ।
- किसी भी सूखे खाने को खाने के बाद मुँह को अच्छी तरह पानी से जरूर साफ करें।
- टंग क्लिनिंग और डेंटल फ्लॉसिंग जरूर करें।
- जीभ की ऊपरी सतह को हमेशा साफ रखें क्योंकि दुर्गंध का सबसे बड़ा कारण यही होती है।
– मधु सिंह
2 Responses to "सांसों की बदबू – एक स्वास्थ्यजनित समस्या"
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