सावन के अंधे

सावन चला गया, लेकिन हमारे सामने सावन के अंधों को छोड़ गया। यह अंधों की वो प्रजाति है जिसे बीहड़ रेगिस्तान में भी हरियाली ही हरियाली दिखती है। इसी नस्ल के एक शख्स से हमारी मुलाकात हुई जो एक विपक्षी पार्टी से ताल्लुक रखता है और जिसने नंगी आँखों से संसद में नोटों की गड्डियॉं उछलते देखी थीं। गड्डियों की चकाचौंध में उसकी आँखों की रोशनी जाती रही। तब से उसे हर काम में रिश्र्वत की बू आने लगी है। हमने उससे कहा, “बधाई हो सेवक जी! क्या झमाझम सावन बरसा है। हर तरफ फील गुड है। काफी सालों के बाद सावन ने इतनी बढ़िया फरफार्मेंस दी है। किसानों के चेहरों पर रौनक लौट आयी है। सूखे और अकाल की मार से तपती धरती ने हरी चुनरिया ओढ़ ली है।’ इतना सुनना था कि वो उखड़ गये, “क्या कहते हैं प्रेमजी, ई सब उस ससुरे इन्दर की कारस्तानी है जो मुद्दत से वर्षा विभाग का चीफ बना हुआ है। उसके करेक्टरवा के बारे में कौन नहीं जानता। एकदम लंपट और अप्सराओं का रसिया है। ऋषि पत्नी अहिल्या भी उसकी कामुक नजरों से बच न सकी। इस बार चुनावी साल है, सो सरकार जनता को रिझाने का हर हथकंडा आजमा रही है, यह सोचकर कि मानसून फुल फार्म में होगा तो पैदावार अच्छी होगी। इससे महंगाई की रफ्तार कम होगी और खुशगवार माहौल में जनता के वोट उसकी झोली में गिरेंगे। सरकार ने इन्द्र को प्रलोभन दिया है कि अगर इस बार वाटर सप्लाई अच्छी होगी तो वो इन्द्रसभा में राखी सावंत का आइटम करवा देगी। सिर्फ यही नहीं, हजार-हजार के नोटों से भरे कई सूटकेस सरकार ने वाया नारद, इन्द्र को भिजवाये हैं। हम यह मामला संसद के मानसून सत्र में उठाऊँगा और इस सारे घोटाले की जांच के लिये जेपीसी के गठन की मॉंग करूँगा।’

नयी पीढ़ी के एक युवा अंधे से हमने पूछा कि “क्या आपको पता है ओलंपिक में बरसों की तपस्या के बाद हमें सोना नसीब हुआ है। क्या आप उस खिलाड़ी का नाम जानते हैं?’ युवक बोला, “सुनो जी, हम तो सचिन को जानते हैं, धोनी को जानते हैं, सहवाग को जानते हैं और इन सब खिलाड़ियों के भी खिलाड़ी अक्षय कुमार को जानते हैं जो सिंह होने के साथ-साथ इस जंगल का किंग भी है।’ “कमाल है, जिसने देश को उसका खोया सम्मान वापस दिलाया, आप उस खिलाड़ी को नहीं जानते। मैं बताता हूँ। उनका नाम है अभिनव।’ “यही तो हम कह रहे थे, अपना सचिन अभिनव है, अनूठा है, अद्वितीय है, बेमिसाल है।’

“ओफ्फो! मैं िाकेट की बात नहीं कर रहा। मैं तो शूटिंग की बात कर रहा हूँ जिसमें हमें स्वर्ण पदक मिला है। क्या आप शूटिंग नहीं समझते?’

“क्यों नहीं समझते। यह वही शूटिंग है न जिसमें कैमरे होते हैं, सचिन होता है, सुन्दरियॉं होती हैं, पेप्सी होती है।’

“अरे भइया, मैं उस शूटिंग की नहीं, उस खेल की बात कर रहा हूँ, जिसमें निशाना साधा जाता है।’ राजनीति और खेल के अंधों के बाद हमारी मुलाकात एक मानवाधिकारी अंधे से हुई। हमने कहा, “ये क्या बात हुई जी, कि जो लोग निर्दोषों पर गोलियां बरसायें, आप उन्हीं के साथ खड़े दिखाई देते हो?’ वे बोले, “क्या कह रहे हैं आप। हमारे देश में आतंकवादी जैसी कोई चीज नहीं। वे तो खुदा के नेक बन्दे हैं। जन्नत में जाना उनका मौलिक अधिकार है, सो वे यही कर रहे हैं।’

“मगर जम्मू जल रहा है, कश्मीर में आग लगी है, सैकड़ों लोग मारे जा रहे हैं, धरती खून से लाल हो रही है और आप हैं कि मुस्कुरा रहे हैं?’ “अरे आप तो खामख्वाह घबरा रहे हैं। जितने वोट कम हो रहे हैं, उतने नई मतदाता सूची में बढ़ा दिये जायेंगे। चिन्ता की कोई बात नहीं है क्योंकि हमारे यहॉं वोटों का उत्पादन सभी प्रकार के बाउंडेशन से मुक्त है। अरे भाई, आप बड़े भोले हैं। जब सरकार कुछ नहीं करती, तब आप लोग सरकार को कोसते हैं कि वो कुछ करती नहीं और जब कुछ करे तो उसी को कठघरे में खड़ा करते हैं। अगर सरकार जमीन देती नहीं तो फिर वापस क्या लेती? और अगर वापस नहीं लेती तो करती क्या? कुछ न करने से तो कुछ करना ही अच्छा है।’ “अच्छा, यह बताइये कि कुरुक्षेत्र के मैदान में कौरव-पांडवों के बीच क्या हुआ था?’ “कुरुक्षेत्र में दोनों पार्टियों के बीच विश्र्वास मत पर अठारह दिनों तक बहस चली थी कि राम ने पुल बनाया था या तोड़ा था? पुल बनाने का तो कोई ठोस सबूत नहीं है क्योंकि किसी पुरातात्विक अभिलेख में रामचन्द्र सेतु निर्माण निगम का जिा नहीं मिलता, मगर तोड़ने का प्रमाण है। बन्दर, भालू तोड़-फोड़ के अलावा और क्या कर सकते हैं? वैसे भी पुल बनाना उतना उल्लेखनीय नहीं जितना पुल का टूटना है।’ हमारा देश ऐसे ही सावन के अंधों के हवाले है।

– प्रेमस्वरूप गंगवार

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