सुदामा

एक निर्धन ब्राह्मण थे सुदामा, जो कृष्ण के सहपाठी थे। दोनों ने एक साथ सांदीपनि के आश्रम में अध्ययन किया था। एक बार पत्नी के आग्रह पर सुदामा द्वारकाधीश श्रीकृष्ण से मिलने गये। कृष्ण ने उनका भव्य स्वागत किया। ब्राह्मण पत्नी द्वारा भेजा तंदुल खा लिया। दो मुष्टि-भर खाते ही भगवान् कृष्ण ने उन्हें सारी सुविधाएँ प्रदान कीं। तीसरी मुष्टि खाने से रुक्मिणी ने रोका। कृष्ण ने सुदामा के लिए स्वर्ण-नगरी दी थी, जो जनश्रुति के अनुसार पोरबंदर ही थी। श्रीकृष्ण-सुदामा की आदर्श मित्रता प्रसिद्ध है।

दशार्ण देश का एक राजा था सुदामा। इसकी बड़ी बेटी का विवाह विदर्भराज भीम के साथ तथा छोटी बेटी का विवाह चेदिराज वीरबाहु से हुआ था।

कंस का एक भाई भी था सुदामा, जो उसे प्रतिदिन मालाएं लाकर देता था।

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