सूरज का उतरा बुखार

बंद हुआ अब धूल गुब्बार,

सूरज का उतरा बुखार।

इंद्रदेव की उतरी सेना,

छा गया नभ का कोना-कोना।

उमड़-घुमड़ बादल आए।

ढेरों सारा पानी लाए।

धरती मॉं की शान निराली,

चहुं ओर फैली हरियाली।

झिंगुर मेंढक गीत सुनाते,

दादा-दादी नहीं नहाते।

पंखा-कूलर पाए आराम,

लस्सी-कोला के घट गए दाम।

भली लगे ठण्डी पुरवाई,

बड़े शान से वर्षा आई।

–     रंजन कुमार शर्मा

You must be logged in to post a comment Login