विश्र्वास-मत में सरकार की जीत के बाद अपनी हार से बौखलायी माकपा ने अपने ही एक वरिष्ठ सांसद एवं लोकसभा स्पीकर सोमनाथ चटर्जी पर अपना नजला गिराते हुए, उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया। करीब दो सप्ताह तक चली खींचतान के बाद श्री चटर्जी को माकपा के शीर्ष संगठन पोलित ब्यूरो ने सर्वसम्मति से निर्णय लेकर पार्टी से निकाल दिया। यह देश के लोकतंत्र में पहला अवसर है, जब किसी लोकसभा अध्यक्ष को किसी पार्टी ने निकाला हो। हालॉंकि दूसरी ओर कांग्रेस पार्टी ने यह साफ कर दिया है कि पार्टी से निष्कासन के बाद भी सोमनाथ दा अपने पद पर बने रह सकते हैं। पिछले दो-तीन हफ्तों में उपजे राजनीतिक संकट और पूरे घटनााम के दौरान दुनिया और देशवासियों ने संसद की मर्यादा का ़जना़जा निकलते देखा है। संसद की गरिमा, प्रतिष्ठा और सम्मान को तार-तार होते देखा है। मगर इस सबके दौरान भी सोमनाथ चटर्जी ने अपने पद की गरिमा और प्रतिष्ठा बढ़ायी है।
सोमनाथ दा के नाम से पुकारे जाने वाले माकपा के इस वयोवृद्घ सांसद ने सन् 2004 में जबसे सर्वसम्मति से स्पीकर का पद संभाला, तब से लेकर अब तक उन्होंने कई बोल्ड फैसले लिये और अपने दामन पर कोई दाग नहीं लगने दिया। दलगत राजनीति से ऊपर उठकर दादा ने अपनी पार्टी के कर्ताधर्ताओं के समक्ष झुकने से एकदम इनकार करते हुए साफतौर पर कह दिया कि वे दबाव में आकर स्पीकर की कुर्सी नहीं छोड़ेंगे।
लोकसभा स्पीकर बनने के बाद सोमनाथ दा ने माकपा से इस्तीफा दे दिया और पार्टी के कायदे-कानून तथा नियम-बंधनों से ऊपर उठ गये। स्वच्छ छवि, हाजिर जवाबी और व्यंग्य कसने की शैली ने सोम दा को एक अलग पहचान दी है। उन्होंने अपनी चुटीली शैली के कारण सदन और देश का दिल जीता है। सोम दा एक निर्भीक और दबंग किस्म के इन्सान हैं, अपने कामकाज में किसी भी प्रकार की दखलंदाजी या अनपेक्षित हस्तक्षेप उन्हें कतई मंजूर नहीं है। किसी दबाव के आगे झुकना तो जैसे उनकी फितरत में है ही नहीं। अपनी पूर्ण निष्ठा व ईमानदारी से पद का निर्वाह करने में सोम दा का कोई सानी नहीं है। पार्टी के भीतर या बाहर से किसी भी प्रकार के दबाव को वे बर्दाश्त करने के लिए वे तैयार नहीं। यही कारण है कि माकपा महासचिव प्रकाश करात और पार्टी प्रवक्ता सीताराम येचुरी की सलाह अथवा निर्देश का उन पर कोई असर नहीं पड़ा। उन्होंने दो टूक कहा कि चूंकि वे पोलित ब्यूरो के सदस्य नहीं हैं, लिहाजा माकपा उन्हें कोई नोटिस नहीं दे सकती। उन्होंने स्पीकर पद से इस्तीफे के बारे में दी गई सलाह पर कहा, “”मैं फैसला करूँगा कि मुझे इस्तीफा कब देना है, देना भी है या नहीं।” सोम दा इस बात से बेहद खफा हैं कि माकपा ने समर्थन वापसी की सूची में उनसे पूछे बगैर ही उनका नाम भी शामिल कर लिया। उन्होंने साफ कर दिया था कि अगर उन पर स्पीकर पद छोड़ने का ज्यादा दबाव बनाया गया तो वे लोकसभा की सदस्यता से भी इस्तीफा दे देंगे।
25 जुलाई,1929 को असम के तेजपुर में जन्मे सोमनाथ दा ने कभी पार्टी लाइन का अनुसरण आँखें मूंद कर नहीं किया है। 1996 में जब माकपा की केंद्रीय कमेटी ने ज्योति बसु को प्रधानमंत्री न बनने देने की “ऐतिहासिक भूल’ की थी, तब भी सोमनाथ दा खुलकर पश्र्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्योति बसु के समर्थन में आ गये थे। और पार्टी के इस अड़ियल रवैये से खफा होकर उन्होंने 1998 का चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया था और बड़ी मुश्किल से ज्योति बाबू ने उन्हें चुनाव लड़ने के लिए रा़जी किया था। पार्टी के भीतर हावी करात लॉबी ने उनके उदारवादी रवैये की वजह से उन्हें उपराष्टपति पद के लिए मैदान में उतरने की इजाजत नहीं दी। अपने इसी उदारवादी रवैये की वजह से सोम दा ज्योति बसु के निकट समझे जाते हैं। ज्योति बसु सरकार में सोम दा पश्र्चिम बंगाल उद्योग विकास निगम के चेयरमैन भी रहे।
सोमनाथ चटर्जी ने दलगत राजनीति से ऊपर उठकर सदन की कार्यवाही को सुचारू ढंग से चलाने का हरसंभव प्रयास किया। सदस्यों के शोरगुल मचाने पर वे तल्ख टिप्पणियां करने और उन्हें नसीहत देने से भी नहीं चूके। सांसदों के व्यवहार से खफा होकर कई बार तो उन्होंने स्पीकर पद से इस्तीफे की धमकी भी दे डाली। विश्र्वास-मत के दौरान कांग्रेस सांसद राहुल गांधी के वक्तव्य के दौरान सदस्यों की टोकाटाकी से तंग आकर स्पीकर महोदय को कहना पड़ा, “”भारत की संसद अपनी बदत्तर स्थिति में पहुँच रही है। अब समय आ गया है कि संसद सदस्य चुनाव का सामना करें ताकि देश अपना फैसला दे सके।”
1996 में “सर्वश्रेष्ठ सांसद’ के खिताब से नवा़जे गये सोमनाथ दा एक रूढ़िवादी परिवार में पैदा हुए। उनके पिता एन.सी. चटर्जी हिंदू महासभा के वरिष्ठ नेता थे और पहली, तीसरी और चौथी लोकसभा के लिए चुनकर आये थे। बाद में वे वाम राजनीति में आ गये और कम्युनिस्टों की मदद से चुनकर संसद पहुँचे। सोमनाथ दा ने मित्रा इंस्टीट्यूशन स्कूल, प्रेजीडेंसी कॉलेज और यूनिवर्सिटी ऑफ कलकत्ता से शिक्षा ग्रहण की। कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी और जीजस कॉलेज से भी शिक्षा ग्रहण की। बाद में उन्होंने कलकत्ता हाईकोर्ट में वकालत से अपना कॅरियर शुरू किया और 1968 में वे कम्युनिस्ट पार्टी के कार्ड होल्डर बन गये।
सिाय राजनीति में आने के बाद वे 1971में पहली बार सांसद चुने गये और तब से लेकर आज तक लगातार दस बार सांसद चुने गये हैं। हॉं, 1984 में जाधवपुर से वे ममता बनर्जी से हार गये थे। इसके बाद से उन्होंने अपना चुनाव क्षेत्र जाधवपुर छोड़ दिया और बोलपुर संसदीय क्षेत्र को अपना कार्यक्षेत्र बना लिया, तब से वहॉं से ही चुन कर संसद पहुँच रहे हैं।
एक बेटे और दो बेटियों के पिता सोमनाथ दा केवल एक राजनेता ही नहीं हैं, एक प्रख्यात एडवोकेट, टेड यूनियनिस्ट और समाज सेवी के रूप में भी जाने जाते हैं। वे बंगाल टेबल टेनिस एसोसिएशन के अध्यक्ष भी हैं, लाइफ सेविंग सोसायटी, कलकत्ता के चेयरमैन भी हैं। वे कई पेशेवर, सांस्कृतिक और शैक्षणिक संस्थानों से भी जुड़े हैं।
कड़क स्वभाव और तल्ख टिप्पणी करने वाले सोम दा ने स्पीकर के पद पर रहते हुए लोकसभा की विश्र्वसनीयता और पद की गरिमा तो बढ़ायी ही, संसदीय लोकतंत्र की पूरी व्यवस्था भी बनाये रखी। इस दौरान कई कड़े फैसले भी लिये। उन्होंने कई अहम फैसलों को विशेषाधिकार समितियों के पास भेजा, जो सांसदों के दुराचरण से जुड़े थे।
सोमनाथ दा तब बहुत दुःखी हुए जब “लाभ के पद’ मामले पर भाजपा और तृणमूल कांग्रेस ने उनसे इस्तीफे की मॉंग भी कर डाली थी। मगर वे झुके नहीं।
अपना 79वां जन्मदिन मना चुके सोमनाथ दा सन् 2005 में अपने एक फैसले की वजह से एकाएक सुर्खियों में आ गये थे, जब उन्होंने झारखंड विधानसभा में विश्र्वास- मत के संबंध में सुप्रीम कोट के आदेशों पर यह बयान दिया कि सुप्रीम कोर्ट ऐसे आदेश देकर विधायिका के अधिकारों का अतिामण कर रहा है। उन्होंने इस बारे में संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत राष्टपति से भी इस बारे में उनकी राय मांगी थी। यह सोमनाथ ही थे, जिन्होंने संसद की कार्यवाही का सीधा प्रसारण करने की व्यवस्था करायी ताकि पूरा देश अपने सांसदों के आचरण और उनकी बहस को सीधे देख व सुन सके।
– डॉ. जोगिंदर सिंह
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