हंगामा है क्यों बरपा….

सांसद करोड़ों में क्या बिके, कुछ लोगों के पेट में दर्द हो गया। लगे शोर मचाने कि सांसदों की खरीद-फरोख्त हुई। अब भला यह भी कहने की कोई बात है, लोकतंत्र के मंदिर को मंडी बना दिया तो मंडी में खरीद-बिाी नहीं होगी तो क्या पूजा-पाठ होंगे? हमें तो मातम मनाने के बजाय खुश होना चाहिए कि सांसदों के भाव बढ़े। मौनी बाबा राव के जमाने में सांसद लाखों में बिके थे और आज करोड़ों में। परसों खरबों में बिकेंगे। लोकतंत्र से नोटतंत्र की ओर बढ़ रहे हैं। यह क्या कम बड़ी उपलब्धि है?

और फिर सांसदों के बिकने पर इतना बवाल क्यों? अरे भाई, जब िाकेट खिलाड़ियों की बोली लग सकती है और वे खुलेआम बिक सकते हैं तो सांसद क्यों नहीं बिक सकते? बिके खिलाड़ियों को गर्व से गले लगाते हैं और बिके हुए सांसद का गला दबाते हैं- भला यह कहां का न्याय है।

मैं तो कहता हूँ इस अन्याय के खिलाफ सांसदों को आवाज उठानी चाहिए। अब और अन्याय बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। खिलाड़ियों की तरह सांसदों की भी खुलेआम बोली लगनी चाहिए। जिस पार्टी को ़जरूरत होगी वही खरीदेगी। न बिकने वाले सांसद को शर्मिंदगी उठानी पड़ेगी और न खरीदने वालों को भी। बिकना सांसदों का मौलिक अधिकार होना चाहिए।

सांसदों के रुतबे के अनुसार उनकी कीमत तय कर दी जानी चाहिए ताकि खरीद-बिाी में दिक्कत न हो। वरिष्ठ सांसदों की कीमत इतने करोड़, कनिष्ठ सांसद की इतने करोड़…।

“पार्टी विद ए डिफरेंस’ के तो कहने ही क्या। न रिश्र्वत लेने का शऊर है न बिकने का। पार्टी अध्यक्ष रिश्र्वत लेते धर लिए गए थे तो पार्टी सांसद बिाी की पेशगी संसद में ले आए (अब हकीकत क्या है अपुन को पता भी नहीं)। पार्टी ने दो कदम आगे बढ़ कर ाॉस वोटिंग करने और अऩुपस्थित रहने वालों को निष्कासित कर दिया। न जाने कौन से युग में रहते हैं।

जो बिक गए उनके मन में लड्डू फूट रहे हैं। पांचों उंगली घी में और सिर कढ़ाई में है। जो बिक न पाए उन्हें यह दर्द साल रहा है कि हाय, हम क्यों न बिके। घर बैठे-बैठे 25-30 करोड़ की कमाई हो जाती। औलाद दुआएं देती और सात पीढ़ियों का इंतजाम हो जाता। सरकार के बचे ही कितने दिन हैं। चार दिन की ही तो बात थी, पर क्या करें, मति जो मारी गयी थी। करोड़ों हाथ से गए, औलादें कोसेंगी सो अलग।

वक्त की नजाकत को देखते हुए यही कहा जा सकता है-

बिकते हैं होशियार ही बाजार-ए-संसद में

वह घोंचू क्या बिके जो पार्टी के खूंटे से बंधे।

 

– टीकाराम साहू “आजाद’

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