कुछ दशकों पहले एक फिल्मी गीत बेहद लोकप्रिय हुआ था, ‘तेरी दो टकिए की नौकरी से मेरा लाखों का सावन जाए…।’ रोजी-रोटी कमाने के लिए हमारे यहां गांवों, कस्बों और छोटे शहरों से लोगों का बड़े शहरों की तरफ पलायन हमेशा से रहा है। यह पलायन रिश्तों पर हमेशा अपना प्रभाव भी छोड़ता रहा है। यह गीत उसी बात का बयान कर रहा है। मगर इसमें नौकरी की हैसियत के आकलन का भी एक पहलू है। नायिका, नायक से कह रही है कि तेरी दो टकिए की नौकरी है। इस छोटी-सी नौकरी के लिए लाखों का सावन क्यों बर्बाद कर रहा है। इससे यह लगता है कि शायद अगर नौकरी भारी-भरकम सैलरी और सुविधाओं वाली हो तो इस तरह की समस्या का सामना नहीं करना पड़ेगा यानी सारी समस्या नौकरी में मिलने वाली सैलरी और सुविधाओं के कारण है।
लेकिन आज के इस सैलरी बूम युग ने साबित किया है कि नौकरी चाहे जितनी शानदार हो, सैलरी चाहे जितनी आकर्षक हो, लेकिन नौकरी के कारण पत्नी और परिवार से दूर रहने पर वह रिश्तों पर भारी पड़ती ही है। दो टकिए की ही नहीं बल्कि लाखों की सैलरी पाने वालों का दांपत्य जीवन और पारिवारिक रिश्ते भी साथ-साथ न रह पाने के कारण खराब हो रहे हैं। रोजगार चाहे सस्ता हो या महंगा, वह रिश्तों पर भारी पड़ रहा है। …और यह समस्या सिर्फ गांवों या छोटे शहरों से आने वाले लोगों की ही नहीं है, बल्कि मेगा मैट्रोसिटीज में रहने वाले लोगों को भी यह समस्या अपनी गिरफ्त में ले रही है।
अब रश्मि और नवतेज को ही लें। दोनों दिल्ली में पैदा हुए हैं और यहीं पढ़ाई-लिखाई की है। दोनों की जॉब मल्टीनेशनल कंपनियों में जिम्मेदारी वाली पोस्ट में है और दोनों का सालाना पे-पैकेज 20 लाख रुपये से ऊपर का है। मगर नवतेज और रश्मि का दांपत्य जीवन पटरी से उतर चुका है। रिलेशनशिप के मामले में ये दोनों बेहद तनाव से गुजर रहे हैं। वजह दोनों के पास एक-दूसरे के साथ गुजारने के लिए वक्त नहीं है।
रश्मि मुंबई में पोस्टेड है, जबकि नवतेज अपनी कंपनी के सिंगापुर ऑफिस में फिलहाल पोस्टेड है। इसके पहले रश्मि जामनगर में थी और नवतेज दिल्ली में। पिछले 3 साल में उन्होंने पैसा तो खूब कमाया है, लेकिन एक महीना, एक साथ नहीं गुजार पाए। वजह है बेहद व्यस्त जीवनशैली। अब इस लगातार की दूरी और व्यस्तता के कारण ये दोनों न सिर्फ तनावग्रस्त रहते हैं, बल्कि इनके बीच रिश्तों की गर्माहट भी कम होने लगी है। दोनों में अक्सर लड़ाई होती है और आरोप-प्रत्यारोप भी होने लगे हैं। दोनों एक-दूसरे पर शक तक करने लगे हैं और इस शक के कारण रिश्तों में और भी कड़वाहट घुलने लगी है।
लेकिन सिर्फ रिश्तों की गर्माहट में कमी आना या एक-दूसरे पर शक करना ही अलग-अलग शहरों में नौकरी के चलते रहने का दुष्प्रभाव नहीं है। कई दूसरी तरह की समस्याएं भी पैदा हो रही हैं, जो रिश्तों पर भारी पड़ रही हैं। मसलन, पति-पत्नी एक-दूसरे को नैतिक और भौतिक रूप से सहयोग नहीं कर पाते। भारतीय परंपरा में शादी का आशय पति-पत्नी द्वारा मिलकर न सिर्फ परिवार बढ़ाना है, बल्कि साथ-साथ रहकर एक-दूसरे को भावनात्मक और नैतिक रूप से भी सहयोग प्रदान करना है। लेकिन जब नौकरी के चलते पति-पत्नी एक-दूसरे से दूर, अलग-अलग शहरों में रहते हैं तो न तो पति को पत्नी का और न ही पत्नी को पति का विभिन्न मामलों में नैतिक और भावनात्मक सहयोग मिल पाता है। इस कारण पति-पत्नी दोनों में ही तनाव बढ़ता है। पति तो फिर भी इस तरह की कमी को झेल लेते हैं, लेकिन महिलाएं ऐसी कमी को झेल नहीं पाती हैं। महिलाओं में तनाव ज्यादा बढ़ता है। घर में अकेले रहने के कारण सामाजिक और मानसिक तनाव उनके स्वास्थ्य पर भी ज्यादा बुरा असर डालता है।
जब पति और पत्नी अपने कॅरियर संबंधी मजबूरियों के कारण अलग-अलग शहरों में रहते हैं तो ज्यादातर मौकों में लगभग 99.99 प्रतिशत मौकों में बच्चे मां के साथ रहते हैं। तब महिला की जिम्मेदारियां काफी ज्यादा बढ़ जाती हैं। अगर महिला कामकाजी नहीं है, लेकिन उसे बच्चों की जिम्मेदारियां अकेले उठानी पड़ रही हैं तो भी वह मानसिक रूप से तनावग्रस्त रहती है। हालांकि अकेले परिवार की जिम्मेदारी उठाने पर महिलाओं की कार्यकुशलता और क्षमता तो बढ़ जाती है, लेकिन काम बढ़ जाने के कारण वह लगातार तनावग्रस्त रहती हैं, जिस कारण कई बार ऐसे परिवारों में विघटन और वैमनस्य की स्थिति पैदा हो जाती है। मनोविदों ने एक और चीज नोट की है कि अकेली मां के साथ पलकर बड़े होने वाले बच्चे अक्सर चिड़चिड़े और तनावग्रस्त रहते हैं। अवचेतन में वह पिता की कमी महसूस करते हैं, इस कारण कई दफा उनमें निर्णय लेने की क्षमता का वाजिब विकास नहीं हो पाता और कई बार ये उद्दंड हो जाते हैं।
एक और चीज बुरी तरह से प्रभावित होती है, जब पति-पत्नी एक-दूसरे से अलग रहते हैं तो बच्चे ही नहीं बुजुर्गों की जिम्मेदारी भी आमतौर पर पत्नी के ही जिम्मे आती है। लेकिन वह उसे सही ढंग से उठा नहीं पाती। क्योंकि बुजुर्गों की अपनी समस्याएं और सीमाएं होती हैं, जो खुद बहू से ज्यादा आत्मीय रिश्ता नहीं बना पाते। फिर यह बात भी होती है कि महिलाओं के लिए अपने बच्चों के साथ घर का ही इतना ज्यादा काम होता है कि वे बुजुर्गों को जरूरी वक्त नहीं दे पातीं। कुल मिलाकर नौकरी के कारण घर से दूर रहने वाले परिवारों में बुजुर्गों की देखभाल प्रभावित होती है। …और हां, सामाजिक संबंध भी प्रभावित होते हैं, क्योंकि घर में पति-पत्नी के न होने के कारण न तो पत्नी सही से सामाजिक संबंधों को निभा पाती है और न ही जहां अकेले पुरुष रह रहा होता है, वहां उसे ऐसे सामाजिक संबंधों में शामिल किया जाता है। इस कारण कामकाजी जीवन के चलते दूर-दूर रहने के कारण सामाजिक संबंध भी प्रभावित होते हैं।
पहले यह बहस महज मुट्ठीभर मनोविदों ने शुरू की थी कि पैसा ज्यादा जरूरी है या रिश्ते? मगर अब बड़े पैमाने पर रिलेशनशिप काउंसलरों के साथ-साथ उन लोगों के बीच भी यह बहस तेज हो गई है, जो लोग इस स्थिति से गुजर रहे हैं खासकर युवा दंपति। निःसंदेह पैसा और कॅरियर बहुत महत्वपूर्ण हैं। लेकिन अब यह बात मजबूत तरीके से अपनी पक्षधरता हासिल कर रही है कि रिश्तों की कीमत पर पैसा या कामयाबी नहीं चाहिए। दूर-दूर रहने के कारण पति-पत्नी के संबंधों में वह अंतरंगता भी नहीं आ पाती, जो साथ रहने वाले जोड़ों में देखी जाती है। मनोविदों ने कुछ ऐसे लक्षण चिह्नित किए हैं, जो अलग-अलग शहरों में या एक-दूसरे से दूर रहने वाले पति-पत्नी के बीच रिश्तों में देखे जाते हैं। आमतौर पर ऐसे पति-पत्नी के बीच बातचीत कम होती है, एक-दूसरे से वे अपनी भावनाएं खुलकर व्यक्त नहीं कर पाते। साथ रहने वाले पति-पत्नी बिना कहे एक-दूसरे की तमाम भावनाओं को जानते होते हैं जबकि दूर रहने वाले पति-पत्नी ऐसी जानकारियां नहीं रखते। दूर रहने वाले पति-पत्नी अपनी चिंताएं और समस्याओं को खुलकर साझा नहीं करते। ये जब आपस में मिलते भी हैं तो बड़े औपचारिक ढंग से रहते हैं। खुलापन या मस्ती वाला मूड इनके बीच नहीं देखा जाता। ये कंप्यूटर और नेट में ज्यादा रुचि लेने लगते हैं तथा एक-दूसरे को गिफ्ट देने के बारे में या खिलखिलाकर हंसा देने वाले लतीफे नहीं सुनाते।
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