हाल-बेहाल पाकिस्तान

अमेरिका की अगुआई में नाटो सेना पाकिस्तान की सीमा में घुस कर आतंकवादी ठिकानों पर लगातार हमला किये जा रही है। इसका सबसे खतरनाक पहलू पाकिस्तान के लिए यह है कि वह अपने लोगों के विरोध को एक हद तक दबाये रखने के लिए सिर्फ भर्त्सना-प्रस्ताव पारित कर रहा है। नाटो सेनायें उसकी चीख-पुकार को तनिक भी तवज्जो देने के मूड में नहीं हैं। पाकिस्तान की सेना, उसकी सरकार और उसकी संसद नाटो सेनाओं के हर आामण के बाद अमेरिका को धमकी देती नजर आती है कि पाकिस्तानी सीमा का अतिामण उस पर किये गये हमले के समान है, जिसे पाकिस्तान किसी कीमत पर बर्दाश्त नहीं करेगा। लेकिन बार-बार उसे बर्दाश्त करने को मजबूर होना पड़ रहा है। उसकी सच्चाई बस इतनी-सी रह गई है कि वह सिर्फ धमकियां देता रहेगा और अमेरिका इन धमकियों से बेपरवाह लगातार उसे रौंदता रहेगा।

अभी तक पाकिस्तानी सीमा का अतिामण कर नाटो सेनाओं ने 40 से अधिक लोगों की हत्यायें की हैं। पिछले सोमवार को एक चालक रहित विमान से मिसाइल दाग कर वजीरिस्तान के सीमांत प्रांत में इन सेनाओं ने 6 लोगों की हत्या की है। हमला एक मदरसे पर हुआ जिसके बारे में अमेरिकी सेना का कहना है कि वहां आतंकवादी पनाह लिए हुए थे। इसके पहले एक बड़े सीएच-47 चिनूक परिवहन हेलीकॉप्टर में सवार होकर अमेरिकी सैनिकों ने अंगोर अड्डा क्षेत्र में घुस कर जमीनी हमलों में बीस लोगों की हत्या कर दी जिसमें बड़ी संख्या में महिलायें और बच्चे भी शामिल थे। गऱज यह कि अमेरिकी नेतृत्व वाली सेना अब अपने तालिबानी और अलकायदा जैसे दुश्मनों का शिकार करने बेरोक-टोक पाकिस्तानी सीमा में घुस रही है और पाकिस्तान उसका प्रतिरोध कर पाने में अपने को अक्षम पा रहा है।

राष्टीय असेंबली में विदेश-मंत्री शाह मुहम्मद कुरेशी और सदन के नेता रजा रब्बानी ने इस हमले को शर्मनाक और अनुचित बताया। पाकिस्तान मुस्लिम लीग (एन) के सांसद जफर अली शाह ने तो यहॉं तक कह दिया कि आतंक के ़िखलाफ अमेरिका की लड़ाई अब पाकिस्तान के ़िखलाफ जंग की शक्ल अख्तियार कर रही है। इन तमाम बहसों के बावजूद दोनों सदनों में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पास किया गया कि अगर आगे भी इस तरह के हमले जारी रहते हैं तो पाकिस्तान सरकार को अपनी संप्रभुता की रक्षा करते हुए इसका मुँहतोड़ जवाब देना चाहिए। अमेरिका अब इस सच्चाई से करीब-करीब अवगत हो गया है कि उसके सारे दुश्मन पाकिस्तान में पनाह पा रहे हैं और पाक सेना तथा उसकी गुप्तचर इकाई उनकी मददगार बनी हुई है। अमेरिका को अब यह भी समझ आ गई है कि लाखों डॉलर की मदद के बावजूद आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में पाकिस्तान की वफादारी अमेरिका की जगह इन आतंकवादियों के प्रति है। इस समझ के साथ अमेरिका अब अपनी लड़ाई ़खुद लड़ने का मन बना चुका है। अगर उसके रास्ते में पाकिस्तान रुकावट बनने की कोशिश करेगा तो वह मुशर्रफ को बहुत पहले दी गई धमकी को बेहिचक अमल में ला सकता है। ़गौरतलब है कि 9/11 की घटना के बाद बुश ने मुशर्रफ को कहा था कि साथ न देने की अवस्था में अमेरिका पाकिस्तान को “पाषाण युग’ में भी भेज सकता है।

मराठी अस्मिता फिर जागी

इधर कुछ दिनों से मराठी अस्मिता सो गई थी। लेकिन उसे समय-समय पर जगाये रखना भी ़जरूरी है, क्योंकि शिवसेना और मनसे के चाचा-भतीजा की राजनीति उसी पर जिन्दा है। इस बार जया बच्चन की एक बड़ी मासूम-सी टिप्पणी ने आपस में प्रतिद्वन्द्विता रखने वाली इन दोनों पार्टियों के सिपहसालारों को मराठी अस्मिता की रक्षा के लिए एक ही ग्रह-कक्षा में ला दिया है। बात बस इतनी-सी है कि एक फिल्म के प्रीमियम के मौके पर मराठी-भाषी लोगों से माफी मांगते हुए सपा नेत्री और संसद सदस्य जया बच्चन ने कहा कि हम यू.पी. के हैं इसलिए हमें हिन्दी में बोलना चाहिए और हिन्दी में ही बोलूंगी। इतनी सीधी-सपाट बात में पता नहीं कहॉं से मनसे अध्यक्ष राज ठाकरे को ऐसा इलहाम हो गया कि जया ने मराठी अस्मिता का अपमान किया है। फिर क्या, एक फतवानुमा फरमान जारी करते हुए उन्होंने बच्चन परिवार की सभी फिल्मों और उनके द्वारा विज्ञापित उत्पादों के बहिष्कार की घोषणा कर दी। साथ में यह भी कह दिया कि जब तक जया बच्चन मराठी-मानुषों से क्षमा नहीं मांगतीं तब तक यह जारी रहेगा। खूबी यह कि उनका समर्थन शिवसेना की ओर से भी हो गया।

इस तरह की अस्मितायें अब तक कई क्षेत्रों में उभरी या उभारी गई हैं और उनका पक्ष जब भी उभरा है, राष्टीय अस्मिता के लिए खतरा बन कर ही उभरा है। अब इस अस्मिता को भाषा क्षेत्र में भी उभारने की कोशिश की जा रही है। इसका खतरा सिर्फ भाषा तक ही सीमित रहने वाला नहीं। भाषा का सांस्कृतिक पक्ष ही हमारी राष्टीयता का बोधक होता है। इसी यथार्थ को समझते हुए आजादी के संघर्ष के दौरान गांधी के नेतृत्व में हिन्दी को राष्टभाषा स्वीकार किया गया था। इस अर्थ में हिन्दी का विरोध राष्टद्रोह की सीमा में आता है। हिन्दी सबकी है, पूरे देश की है और अगर जया बच्चन की है तो वह राज ठाकरे और उद्घव ठाकरे की भी है। हिन्दी में भाषण कर जया ने मराठी का अपमान कत्तई नहीं किया है, उल्टे राज ठाकरे राष्टभाषा हिन्दी का अपमान कर रहे हैं। माफी जया को नहीं उन्हें मांगनी चाहिए।

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