एशिया के वनाच्छादित पर्वतों में कभी सैकड़ों कस्तूरी मृग हुआ करते थे। अफगानिस्तान, भूटान, बर्मा, चीन, भारत, कोरिया, पाकिस्तान, रूस एवं भारत में हिमालय पर्वत पर कस्तूरी मृगों की पॉंच प्रजातियॉं अब भी अस्तित्व में हैं। कस्तूरी मृग के बारे में शायद बहुत कम लोगों को जानकारी होगी कि वह वास्तव में हिरण परिवार का सदस्य नहीं है। अध्ययन से पता चलता है कि यह प्राणी दो करोड़ वर्ष पहले भी इस पृथ्वी पर विद्यमान था।
दोस्तों, क्या आप जानते हैं कि लगभग सौ से अधिक औषधियों के निर्माण में काम आने तथा अपनी बेमिसाल खुशबू से अमीरों की शान का अंग बन जाने के कारण सोने से महंगी कस्तूरी की मॉंग अन्तर्राष्टीय बाजार में बढ़ती ही जा रही है। अकेला जापान प्रतिवर्ष 295 किलोग्राम कस्तूरी का आयात करता है और चीन इसके निर्यात में 200 किलोग्राम की सालाना सर्वाधिक हिस्सेदारी करता है। अन्तर्राष्टीय बाजार में कस्तूरी की कीमत 46 हजार डॉलर प्रति किलोग्राम तक पहुँच गई है। कस्तूरी को दमा, मिर्गी, हिस्टीरिया, निमोनिया, टायफाइड एवं दिल की बीमारी आदि दर्जनों रोगों के लिए बनाई जाने वाली औषधियों में इस्तेमाल किया जाता है। चॉकलेटी रंग की कस्तूरी अडांकार थैली में कस्तूरी मृग में द्रव्य रूप में मिलती है, जिसे सुखाकर इस्तेमाल किया जाता है। इसी कस्तूरी के कारण शिकारियों के हाथों नर और मादा कस्तूरी मृग दोनों ही मारे जाते हैं, लेकिन कस्तूरी केवल नर से ही प्राप्त होती है और वह भी तब जब वह साल भर का हो जाए। एक मृग से सामान्यतः एक बार में 30 से 45 ग्राम तक कस्तूरी प्राप्त की जा सकती है, लेकिन मृग के आकार और स्वास्थ्य के आधार पर यह मात्रा घट या बढ़ भी सकती है। मादा मृग में कस्तूरी की थैली नहीं होती है।
कस्तूरी मृग के दुश्मनों की कमी नहीं है। यद्यपि जंगलों में कस्तूरी मृग के शेर, गुलदार, चीते एवं भालू आदि कई शत्रु होते हैं, लेकिन इनका असली शत्रु मनुष्य ही है। क्योंकि कस्तूरी निकालने के बाद भी वे मृग को छोड़ते नहीं हैं, मार डालते हैं। मनुष्य ही जाने और अनजाने में इस भोले प्राणी की नस्ल को समाप्त करने पर तुला हुआ है।
कस्तूरी मृगों के अस्तित्व के गंभीर खतरे को देखते हुए “इंटरनेशनल यूनियन फॉर कन्जरवेशन ऑफ नेचर एंड नेचुरल रिसोर्सेज’ ने इन्हें रेड डाटा बुक में शामिल किया है। भारत सरकार ने वन्य जंतु संरक्षण अधिनियम के तहत इनके शिकार पर 1972 में रोक लगाने के साथ ही देश में चार नेशनल पार्क तथा पॉंच कस्तूरी मृग विहारों की स्थापना की, जिसमें मुख्य हिमालय पर केदारनाथ कस्तूरी मृग विहार है।
– महर्षि डॉ. पं. सीताराम त्रिपाठी शास्त्री
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