पाकिस्तान के राष्टपति आसिफ अली जरदारी ने विश्र्व के एक प्रमुख मीडिया चैनल “वाल स्टीट जर्नल’ के साथ साक्षात्कार में कुछ बहुत अच्छी और सकारात्मक बातें कही हैं। उनकी कही बातों पर अगर सचमुच अमल हो तो न सिर्फ कश्मीर में शांति और सामान्य स्थिति बहाल करने में मदद मिलेगी, बल्कि भारत-पाक के बीच भी दशकों से व्याप्त तनावों को दूर कर शांति स्थापित की जा सकती है। उनके इस बयान की बाबत अभी यह स्पष्ट नहीं है कि उन्होंने ये बातें अन्तर्राष्टीय दबावों के चलते कही हैं अथवा यह एक देश के राष्टाध्यक्ष का परिस्थितियों का यथार्थवादी आकलन है। सवाल यह भी उठता है कि खुद उनके इस बयान को पाकिस्तान में कितनी अहमियत दी जाएगी। पाकिस्तान में हमेशा से सेना और उसकी खुफिया एजेंसी आईएसआई का शीर्ष सत्ता पर वर्चस्व रहा है। सवाल यह भी है कि क्या जरदारी साहब अपनी इन दोनों एजेंसियों को इस बाबत राजी कर सकेंगे? मुख्य विपक्षी दल पीएमएल (एन) ने उनके इस बयान के खिलाफ न सिर्फ आवा़ज उठाई है अपितु इसे संसद में भी पुरजोर तरीके से उठाने का संकल्प व्यक्त किया है। इसके अलावा अपने उस अवाम को भी, जिसे कई दशकों से भारत-विरोध की घुट्टी पिलाई जाती रही है, जरदारी के लिए अपने विचारों से सहमत करा पाना ़खासा कठिन होगा। ले-देकर उनका यह बयान किसी को खुशी से तब तक नवाज नहीं सकता जब तक इसको पाकिस्तान में व्यापक स्वीकृति हासिल नहीं होती।
बावजूद इन सब दिक्कतों और नकारात्मकताओं के, जरदारी का बयान एक बहुत बड़ी पहल है और उन्होंने जो हिम्मत दिखाई है, वह अब तक पाकिस्तान के किसी राष्टाध्यक्ष ने नहीं दिखाई। जरदारी ने पहली बार यह स्वीकार किया है कि कश्मीर में आतंकवादियों की मौजूदगी है। उनकी यह स्वीकृति पाकिस्तान की ओर से वास्तविकता की पहली स्वीकृति है, क्योंकि अब तक पाकिस्तान आतंकियों को “मुजाहदीन’ करार देता आया है और उनकी मौत को शहादत मानता रहा है। अन्तर्राष्टीय स्तर पर अब तक पाकिस्तान यही दुहराता आया है कि भारत कश्मीर की आजादी को सेना के बल पर कुचल रहा है। वह यह भी कहता रहा है कि वह कश्मीर के अवाम की आजादी को हर तरह का नैतिक और सिाय समर्थन देता रहेगा। अब जब जरदारी ने इस संघर्ष को आतंकवाद का एक नया आयाम दिया है तो निश्र्चित रूप से अब तक की निर्मित धारणाओं से उसे बाहर आना होगा। जरदारी ने भारत और पाकिस्तान के बीच सर्वाधिक तनाव पैदा करने वाली कश्मीर समस्या के बाबत कहा है कि इसका समाधान आगामी पीढ़ियों के लिए भी छोड़ा जा सकता है। उन्होंने बड़ी स्पष्टता के साथ कहा है कि इस समस्या को आपसी संबंधों के विकास में बाधक नहीं बनने देना चाहिए। उनके अनुसार भारत-पाकिस्तान इसे दरकिनार कर अपने सामाजिक, सांस्कृतिक और व्यापारिक रिश्ते प्रगाढ़ और मजबूत बना सकते हैं। अब तक की सारी प्रतिबद्घताओं से बाहर आकर पाक राष्टाध्यक्ष ने भारत को पाकिस्तान के लिए कोई खतरा मानने से इन्कार कर दिया है। भारत-अमेरिकी असैन्य परमाणु समझौते के बारे में भी उनका कहना है कि पाकिस्तान को इस पर कोई एतराज नहीं है, बशर्ते इसके चलते अंतर्राष्टीय स्तर पर पाकिस्तान को भी बराबरी का दर्जा देकर उसके खिलाफ कोई भेदभावपूर्ण नीति न अपनाई जाये। भारत और पाकिस्तान के बीच उन्होंने भारतीय प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की ओर से प्रस्तावित मुक्त व्यापार की संभावनाओं के प्रति अपनी सकारात्मक प्रतिक्रिया प्रकट की है। उनका कहना है कि यह कदम उठाना दोनों देशों के हित में होगा और इस कोशिश को ऐतिहासिक माना जाएगा क्योंकि इससे सिर्फ व्यापारिक संबंध ही नहीं विकसित होंगे बल्कि अन्य क्षेत्रों में भी नजदीकियॉं बढ़ेंगी।
अभी यह कहना बहुत जल्दबाजी होगी कि पाकिस्तान की भारत के प्रति अब तक की स्थापित नीतियों में व्यापक बदलाव आएगा। लेकिन अन्तर्राष्टीय स्तर पर राजनीतिक विश्र्लेषक जरदारी के इस वक्तव्य को पिछले दिनों उनकी भारतीय प्रधानमंत्री से मुलाकात और वार्ता का नतीजा मान रहे हैं। इसके पीछे अमेरिकी दबाव भी एक कारण माना जा रहा है। लेकिन वह किस स्तर तक है अथवा है भी या नहीं, इसका कोई खुलासा नहीं हुआ है। जो भी हो, जरदारी का यह बयान भारत-पाक संबंधों को एक नया आयाम दे सकता है और उपमहाद्वीप की शांति के लिए यह सर्वाधिक आवश्यक भी है। इस रास्ते में सबसे बड़ी दिक्कत यही है कि पाकिस्तान में सर्वोच्च स्तर पर सत्ता के कई केन्द्र हैं। अब तक की पाकिस्तान की लोकतांत्रिक सरकारों को सेना के दबाव में ही रह कर कार्य करना पड़ा है। उसकी मर्जी की अवहेलना करने वाली सरकारों को अपना व़जूद बचा पाना असंभव रहा है। इस दृष्टि से जरदारी के लिए यह जरूरी है कि वे इन नीतियों पर पहले अपने देश में आम सहमति बनाने की कोशिश करें। भारत उनके प्रस्तावों के प्रति सकारात्मक प्रतििाया इस कारण व्यक्त करेगा क्योंकि वह हमेशा से आपसी संबंधों को व्यावहारिक रूप में विकसित करने का पक्षधर रहा है। मौजूदा समय में भारत के सामने आतंकवाद सबसे बड़ी समस्या है। इसमें पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई की भूमिका हमेशा से सर्वाधिक प्रभावी रही है। अगर आईएसआई को आतंकवादी संगठनों को प्रोत्साहन न देने के लिए जरदारी राजी करने में कामयाब होते हैं, तो यह भारत के लिए बहुत बड़ी राहत होगी। लेकिन उन्हें यह भी समझना होगा कि जब तक आतंकवाद को पाकिस्तान प्रायोजित करता रहेगा तब तक भारत के साथ किसी भी स्तर पर संबंधों का विकास संभव नहीं है।
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