ग़जल – मधु काबरा

ज़िन्दगी की चंद घड़ियां, बीत जायेंगी कहीं

खाक ऐसी ज़िन्दगी पर, तुम कहीं और हम कहीं

यूं तो गु़जरेगा कहीं भी ज़िन्दगी का कारवां

तुम न हो मौजूद जिसमें, खत्म क्या होगा कहीं

जश्र्न्न भी मातम बनेंगे, ज़िन्दगी के तब मेरे

जुलूस में होंगे जना़जे, मौत में खुशियां कहीं

वो किनारा कर गये, तू भी गु़जर जा ज़िन्दगी

देख ले ये भी तमाशा, दीपक कहीं और लौ कहीं

नादानियां उनकी मुबारक, मंजूर उनका हर सितम

अब बहारों में म़जा क्या, गुल कहीं गुलशन कहीं।

 

–     मधु काबरा, मुंबई

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