करना न ा़र्ंिजंदगी से मुर्दानगी की बात
करना हो जब भी करना मर्दानगी की बात
दरिया के पास प्यास से कुछ लोग मर गये
मौजें-रवां में होती रही तिश्र्न्नगी की बात
पत्थर-दिलों के सामने करना कभी न दोस्त!
पलकों के बीच डबडबा रही नमी की बात
गुलशन में ़कह़कशां के कुछ फूल खिले हैं
अश्कों से मेरे कर रहे जो ता़जगी की बात
हैरत है लोग कर रहे हैं शौ़के-तलब से
मुर्दों के इस शहर में अभी ा़र्ंिजदगी की बात
जब से चलन में आयी वोटों की सियासत
करने लगे हैं अब महल भी झोपड़ी की बात
दिन-भर का थका-मांदा बच्चों से कर रहा
उतरी थी आसमां से कभी उस परी की बात
– गोविंद मिश्र
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