ग़ज़ल – जहीर कुरैशी

पंछियों की ज़ुबान में बोले

हम हमेशा उड़ान में बोले

जो तराशे गए वो बतियाए

कितने हीरे खदान में बोले

भूल कर नदियों की कुर्बानी

लोग सागर की शान में बोले

दंभ दौलत का छिप नहीं पाता

जब वो मंदिर के दान में बोले

बात सुन ले न दूसरा कोई

इसलिए लोग कान में बोले

भूल कर भूतकाल के किस्से

हम सदा वर्तमान में बोले

लोग दंगों के दौर की पीड़ा

खुल के अमन-ओ-अमान में बोले।

 

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