21वीं शताब्दी में सेक्स प्रवृत्ति

देखा जाये तो सेक्स के मामले में पुरुषों का रवैया अधिकांशतः मर्दानगी युक्त, आाामक तथा कभी-कभी हिंसात्मक भी हो जाता है। बहुविवाह या रखैल रखना- जैसे नाजायज संबंधों के पीछे भी ऐसी ही मानसिकता और उम्र, जवानी, खान-पान, पैसा तथा शराब इत्यादि की भूमिका रहती है। आधुनिक समय में पुरुषों में लम्बे समय तक यौन िाया में संलिप्त रहने की इच्छा में भी वृद्घि हो रही है और इसकी पूर्ति के भी अनेक साधन (वियाग्रा इत्यादि) बाजार में उपलब्ध हैं।

इस संबंध में समाज के विशेष क्षेत्रों में पत्नियों की अदला-बदली की घटनाओं में वृद्घि भी मनोविज्ञानियों और यौन-विज्ञानियों की चिंता का विषय बनती जा रही हैं। ऐसी घटनाओं के पीछे तत्काल कामोत्तेजना, सामाजिक वर्जनाओं के विरुद्घ जाने का रोमांच, वर्जित कार्य का आनंद लेना या सबसे अलग या विलक्षण होने का अहसास इत्यादि कारण हैं अथवा इनसे इतर भी कोई सेक्स संबंधित कारण हो सकता है- वैज्ञानिक इस बाबत विचार कर रहे हैं।

विषमलिंगी सेक्स संबंधों पर अध्ययन से पता चला है कि महिलाएँ अपने साथी का चुनाव करने में ऊपरी दिखावे या तड़क-भड़क अर्थात् हीरोनुमा पुरुषों के प्रति अधिक आकर्षित होती हैं। इसके अतिरिक्त, बुद्घिमत्ता, पैसा तथा साहसीपन इत्यादि विशेषताएँ भी मायने रखती हैं। इस बारे में शोधकर्त्ताओं का मानना है कि अगर किसी महिला को पता चले कि कोई और महिला को भी अमुक पुरुष आकर्षक लगता है, तो उसकी दिलचस्पी उक्त पुरुष में बढ़ जाती है।

माना गया है कि यौन िाया की गुणवत्ता और क्षमता पर रोमांस, बहुविवाह तथा नशे इत्यादि का काफी प्रभाव पड़ता है। नशे की हालत को ही लें- तो नशे में पुरुष की कामेच्छा तो जागृत होती है लेकिन क्षमता समाप्तप्रायः हो जाती है, जबकि महिलाओं में नशे का प्रभाव सर्वथा अलग होता है। नशे में महिलाओं की कामोत्तेजना में तो इजाफा होता ही है, साथ ही वे सहवास को लेकर अधिक साहसपूर्ण और खुला व्यवहार करने लगती हैं, अर्थात् उनका संकोच समाप्त हो जाता है। आधुनिक समय में महिलाओं में सार्वजनिक रूप से खुल्लम-खुल्ला मद्यपान का चलन जोर पकड़ता जा रहा है।

अगर बात समलिंगियों – होमोसेक्सुअल (पुरुष) तथा लैस्बियंस (महिलाएँ)) की करें तो ऐसे मामले भी अब ढके-छुपे नहीं रहे। एक स्तर तक समाज ने भी इनके प्रति उदारवादी दृष्टिकोण अपना लिया है और कई मामलों में तो इन्हें कानूनी मान्यता भी मिल गई है। ऐसी स्थिति में चिंता का विषय है कि ऐसे लोग अपने ग्रुप के विस्तार की ताक में रहते हैं। किसी भी व्यक्ति के समलिंगी बनने के पीछे पारिवारिक माहौल और पालन-पोषण का हाथ होता है, न कि किसी प्रकार की बीमारी, अनुवांशिक या जैविक स्थिति का। इसे सेक्स संबंधी विकास का एक भिन्न प्रकार माना जा सकता है। ऐसे लोग अब किसी प्रकार के संकोच या झिझक की बनिस्पत खुलेआम समाज में अपना स्थान एवं हक मॉंगने लगे हैं। अगले 10 वर्षों में यह स्थिति और खुलकर सामने आयेगी।

अत्याधुनिकता की अंधी दौड़ और उदारवादी सामाजिक दृष्टिकोण के चलते विदेशों की तरह भारत में भी किशोरावस्था में सहवास की प्रवृत्ति जोर पकड़ रही है। इसके पीछे वर्तमान पारिवारिक माहौल, लड़के-लड़कियों को घुलने-मिलने की आजादी, फिल्मी एवं टीवी परिदृश्य तथा जिज्ञासा एवं कुछ कर गुजरने का अहसास जैसे कारक कार्यरत रहते हैं। ऐसा नहीं है कि ऐसे मामले केवल शहरों में ही होते हैं, गॉंवों के किशोर भी पीछे नहीं हैं। झुग्गी-झोपड़ियों में गरीबी से छुटकारा पाने या पैसों के लालच में ऐसे संबंध कायम होते हैं, जबकि उच्च वर्ग में आसपास का माहौल, दोस्तों का दबाव तथा सेक्स संबंधी जानकारी की जिज्ञासा- जैसे तथ्य कार्यरत रहते हैं।

पश्र्चिमी समाज में सामान्य पुरुषों और महिलाओं द्वारा लिंग-परिवर्तन करवाने के मामले भी सामने आ रहे हैं। हालॉंकि, अभी तक ऐसे मामलों की संख्या काफी कम है।

सेक्स संबंधी विभिन्न प्रकार की ये अभिवृत्तियॉं आने वाले समय में और जोर पकड़ेंगी। हो सकता है कि कुछ नई प्रकार की प्रवृत्तियॉं भी सामने आयें, क्योंकि सेक्स संबंधी सामाजिक वर्जनाएँ और नियम इस अत्याधुनिकता के दौर में ढीले पड़ते जा रहे हैं।

प्रस्तुति- डॉ. नरेश बंसल

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