समाज में यौन–क्रिया की भूमिका शायद तभी से चली आ रही है जब से जीव–जगत का प्रारंभ और विकास शुरु हुआ। जगत में भोजन, पानी की तरह नैसर्गिक आवश्यकता सेक्स–क्रिया मात्र मानव में ही नहीं बल्कि पशु–पक्षी या कहें प्रायः सभी जीव–जंतुओं में पाई जाती है। फर्क मात्र इतना है कि मानव अन्य जीवों की तरह मात्र प्रजनन के लिए यौन–क्रिया नहीं करता बल्कि मानसिक और शारीरिक तौर पर मौज–मस्ती के लिए कभी–भी अपनी इच्छा एवं सुविधानुसार अपने साथी के साथ रतिक्रिया में लिप्त हो जाता है। हॉं, आदिकाल से चली आ रही यौन–क्रिया की अवधारणा पुरुष और स्त्री के संगम की रही है, किन्तु आधुनिक काल में चिश्चमी समाज ही नहीं बल्कि हमारे भारतीय समाज में भी स्त्री–पुरुष के मिलन से इतर, सेक्स के कई अन्य प्रकार सामने आने लगे हैं, जैसे– पुरुष बनाम पुरुष (होमो), स्त्री बनाम स्त्री (लेस्बियन) इत्यादि। समाज में ढकी–छिपी और गोपनीय क्रिया मानी जाने वाली सेक्स क्रिया पर सार्वजनिक रूप से चर्चा करना भी पहले निषिद्घ माना जाता रहा है, किंतु अब ऐसी वर्जनाएँ ढीली पड़ती जा रही हैं। समय के साथ–साथ सेक्स संबंधी बंदिशें और नियम मानो समाप्त प्रायः ही होते जा रहे हैं।
आजकल महिलाएँ हर क्षेत्र में पुरुषों की प्रतिस्पर्धा कर रहीं हैं। उनका रहन–सहन ही नहीं बल्कि मानसिकता और सोचने–विचारने के ढंग में भी आशातीत परिवर्तन लक्षित हो रहा है। ऐसे में बदलते परिवेश और संस्कृति का प्रभाव सेक्स संबंधी आकर्षण और तौर–तरीकों पर पड़ना लाजिमी है। आगे चलकर सेक्स क्रिया में विविधता और समूहीकरण की संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता। फैशन जगत में भी व्यक्तिगत स्टाइल और सेक्सी वस्तुओं का बोलबाला होने से यौनाकर्षण और यौनिायाओं को बढ़ावा मिल रहा है। टेलीविजन, फिल्मों तथा पत्रिकाओं में कामोत्तेजना, यौनेच्छा तथा सहवास इत्यादि पर इतना कुछ छापा और दिखाया जाता है कि सेक्स संबंधी प्रयोगात्मक क्रियाओं और उत्तेजनाओं को बढ़ावा मिलता हैै।
मानव मन–मस्तिष्क में नैसर्गिक आवश्यकता के रूप में सेक्स का मतलब स्त्री–पुरुष का मिलन ही है, जो सृष्टि के आगे बढ़ने में भी योगदान देता है। किन्तु 21वीं सदी में, सेक्स क्रियाओं में इससे इतर भी प्रयोगात्मक तौर पर कहें या किन्हीं और कारणों से– विषम लिंगात्मक संबंध भी सामने आ रहे हैं। आधुनिक दंपत्तियों का अधिकांश समय घर से बाहर (कार्यस्थल या इतर) व्यतीत होता है। दोनों का जीवन इतना व्यस्त हो गया है कि परस्पर रोमांस और सेक्स संबंध कायम करने के लिए समय ही नहीं मिलता या फिर बहुत कम मिलता है। नतीजतन, इस नैसर्गिक आवश्यकता की पूर्ति हेतु विवाहेतर संबंधों में तो इजाफा होने ही लगा है, विषमलिंगी तथा समलिंगी यौन संबंध भी सामने आने लगे हैं। इस स्थिति में आग में घी का काम करती है– टीवी अथवा इंटरनेट जैसे इलैक्टॉनिक माध्यमों पर बहुतायत से परोसी जाने वाली सेक्स संबंधी कामोत्तेजना जाग्रत करने वाली सामग्री। ऐसा नहीं है कि ऐसे संबंध मात्र शहरों में या घर से बाहर जाने वाले दंपत्तियों में ही पनपते हैं, गॉंव और कस्बे भी इस मामले में कम नहीं हैं। ऐसी बेवफाई कहें या व्याभिचार– इसके पक्ष में अनेक कारण गिनाए जा सकते हैं, मसलन सेक्स संबंधी हताशा, कुंठा, जिज्ञासा, बदले की भावना, बोरियत या फिर अपने व्यक्तित्व की पहचान बनाने की मानसिक आवश्यकता। वर्तमान काल में समाज के खुले विचारों के चलते दी जाने वाली छूट के कारण ऐसे प्रेम संबंधों पर सामाजिक तौर पर हंगामा नहीं होता बल्कि आजकल तो ऐसे संबंधों पर खुलेआम चचाएँ होती हैं। ऐसे संबंधों को लेकर टी.वी. पर सांस, स्वाभिमान तथा हसरतें इत्यादि कई धारावाहिक भी प्रसारित किये गये, जिन्हें समाज की छवि दिखाने का प्रयास भर बताया गया। यहॉं ऐसे संबंधों के पनपने के साथ–साथ, चिंता का विषय समाज की मान्यताओं और वर्जनाओं का ढीला पड़ना भी है। सामाजिक तौर पर अनैतिक माने जाने वाले ऐसे संबंधों के चलते परिवारों और पति–पत्नी के रिश्तों की अंतरंगता और गर्माहट में आशातीत कमी लक्षित हो रही है।
आज के दौर में महिलाएँ अपने सेक्स संबंधी अधिकारों के प्रति अधिक मुखर हो रही हैं। पहले की तरह वे यौन तृप्ति ना होने पर भी मौन नहीं साधे रहतीं, बल्कि स्पष्ट रूप से अपनी इस आवश्यकता पर खुलकर चर्चा करती हैं। अब सवाल यह उठता है कि सेक्स संबंधी समस्याओं का वैवाहिक जीवन पर कितना असर पड़ता है? देखा जाये तो पुरुषों एवं महिलाओं की शारीरिक संरचना, लालन–पालन इत्यादि के चलते, दोनों सेक्स का लुत्फ अलग–अलग ढंग से उठाते हैं। पुरुष शीघ्र ही कामोत्तेजित हो जाता है जबकि स्त्री को शारीरिक और मानसिक तौर पर कामोत्तेजित होने में थोड़ा समय लगता है। इसके अतिरिक्त यौन क्रिया के समय तकरीबन 10 प्रतिशत पुरुषों को भी कामेच्छा और कामोत्तेजना को लेकर विभिन्न प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इस बारे में किये गये अध्ययन के अनुसार – आदर्श दंपत्ति माने जाने वाले या सुखी वैवाहिक जीवन जीने वाले दंपत्तियों में भी, विशेषकर महिलाओं में, कामेच्छा एवं कामोत्तेजना में कमी जैसी समस्याएँ पाई गई हैं। बहुत कम युगल पूर्ण सेक्स का आनंद उठाते हैं। ऐसी समस्याएँ चाहे पुरुषों में हों या महिलाओं में– अब खुलकर सामने आने लगी हैं, तो स्वाभाविक है कि वैवाहिक जीवन तो प्रभावित होगा ही। शायद इसी के परिणामस्वरूप विवाहेतर या त्रिकोणीय प्रेम–प्रसंगों में भी बढ़ोत्तरी हो रही है।
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