एक बार एक लोमड़ी वन से निकली। बहुत दूर चलने के बाद भीनी-भीनी महक उसकी सांस में समा गई। वह महक वाले स्थान पर पहुँची तो देखा कि एक बगीचे में आम के बहुत से पेड़ हैं और उन पर ढेरों आम लटक रहे हैं।
बस फिर क्या था, वह आम खाने को लालायित हो गई। पर आम तो बहुत ऊँचाई पर थे। किस तरह आम को पाया जाए? वह पेड़ पर चढ़ने की कोशिश करने लगी। पर हर बार पैर फिसल जाते। बहुत कोशिश करने पर भी वह पेड़ पर नहीं चढ़ पाई और उदास-सी अपने ठिकाने पर लौट आई।
दूसरे दिन वह फिर आम के पेड़ों के पास पहुँची। आज वह एक रस्सी अपने साथ लाई थी। उसने ज़ोर लगाकर एक पेड़ पर रस्सी उछाली। किस्मत से वह पेड़ से अटक गई। लोमड़ी खुश होकर रस्सी के सहारे पेड़ पर चढ़ने लगी। लेकिन अभी वह आधी ऊँचाई तक ही पहुँची थी कि उसके वजन से रस्सी चरमराई और लोमड़ी रस्सी सहित नीचे आ गिरी। उसे थोड़ी चोट भी आई। आह भरते हुए व बड़बड़ाते हुए फिर अपने ठिकाने पर लौट आई। रात में उसने गहन विचार किया। भाड़ में जाएं ऐसे आम…? इसके कारण मुझे चोट लगी। अब आमों के बारे में सोचूंगी भी नहीं…?
फिर दो-तीन दिन लोमड़ी आम के पेड़ों की तरफ नहीं गई। पर बार-बार उसकी नज़र में आम ही आम घूम जाते थे। तब वह मुंह बिचका देती। आखिर उसका धैर्य टूट ही गया। एक दिन वह फिर आम के पेड़ों के पास पहुँच गई और ऊपर देखने लगी। बड़े-बड़े आम देखकर उन्हें पाने की तरकीब भिड़ाने लगी। पर आम फिर भी नहीं मिल पाए।
वह रोज आम पाने की लालसा लेकर जाती। एक दिन वह आम के पेड़ों के करीब पहुँची। उसे एक गिलहरी दिखाई पड़ी। उसने मन में विचारा कि किसी तरह इसे पटाया जाये। यह पेड़ पर पहुँचकर एक डाली भी हिला देगी तो बहुत से आम गिर जाएँगे और मेरे मन की चाह पूरी हो जाएगी।
उसने गिलहरी को आवाज़ लगाई। वह आई और बोली, “”मुझे क्यों बुलाया?” लोमड़ी आवाज़ में मिठास लाकर बोली, तुम यहीं रहती हो? गिलहरी हंसते हुए बोली, मेरा कोई ठिकाना नहीं है। आज यहॉं तो कल जाने कहां…। अभी कहॉं जा रही हो? मैं तो घूमते हुए इधर आ निकली। अब आगे जा रही हूँ। अच्छा मैं चलती हूँ…। कहकर गिलहरी कूदती-फांदती चली गई। लोमड़ी ने मुंह बिचकाया और मन में बोली – मेरी किस्मत में आम पाना और खाना लिखा ही नहीं है।
वह आगे बढ़ने लगी। अचानक उसकी नज़र आम के एक पेड़ की ऊपरी डाल पर बैठे तोते पर पड़ी। उसे पटाने के हिसाब से वह ज़ोर से चिल्लाई। उसकी चिल्लाहट सुनकर तोता उड़ता हुआ आया और चिल्लाने का कारण पूछा। लोमड़ी उदास-सी बोली, “”क्या बताऊँ तोते भाई… तोता बोला, तुमने मुझे भाई कहा है। अब बहन होने के नाते जल्दी अपना दर्द बताओ। लोमड़ी मन में बोली – अगर असली बात तोते को बताऊँगी तो यह मुझे लालची मानकर जाने क्या-क्या कहकर कोसेगा। यह चाल भी नाकामयाब होगी।
वह कराहते हुए बोली, क्या बताऊँ… कल इसी जगह एक सियार मिल गया था। उसने मुझसे शर्त लगाई कि इन पेड़ों पर लगे आम मीठे हैं। मैं बोली, तुम्हारी बात सही नहीं है। इन पेड़ों पर लगे आम खट्टे हैं। वह अपनी बात पर अड़ा रहा। मैं अपनी बात पर। इस तरह हम दोनों में झगड़ा हो गया। उठापटक हो गई और मेरे पैरों में चोट आ गई। सियार तो भाग गया। मैं आज उसी के लिए आई हूँ। अगर वह मिल जाए तो अपनी बात सच साबित कर दूँ। तोते भाई! मेरी मदद करोगे? दो-चार आम तोड़कर लाओगे?
तोता लोमड़ी की चालाकी समझ गया। मन में बोला – तेरी बात मैं सच साबित करके ही रहूँगा। वह उड़ गया। लोमड़ी मन में बोली – किस तरकीब से तोते को मूर्ख बनाया है। सच है, किसी को मूर्ख बनाना कोई मुझसे सीखे? थोड़ी देर बाद तोता लौटा। उसकी चोंच में एक बड़ी डाल थी। उस पर पॉंच-छः आम थे।
आमों को देखते ही लोमड़ी का धैर्य टूट गया। उसने झटपट एक आम मुंह में भरा। यह क्या…उसका मुंह तो खट्टेपन से भर गया। उसने आम को थूकना चाहा, पर फिर यह सोचकर कि यह आम खट्टा हो सकता है, लेकिन दूसरे आम मीठे होंगे। उसने दूसरा आम खाया। वह भी खट्टा था। तोते द्वारा पूछने पर वह बोली, आम तो बहुत मीठे हैं। तोता बोला, अब तो सियार की बात सच हो गई। आप शर्त हार गई हैं। लोमड़ी मुंह बनाते हुए बोली, अभी तो और भी आम हैं। वह आम खाती रही। तोता हंसता रहा।
आखिरी आम खाकर उसने थूका और मुंह बनाते हुए बोली, आम खट्टे हैं। तोता हंसते हुए बोला, दीदी, सभी आम खट्टे हैं या केवल यह आम…? लोमड़ी पैर पटकते हुए बोली, तुम्हारे लाए सभी आम खट्टे थे। वह तो मैं तुम्हें पटाने के हिसाब से कह रही थी कि आगे भी तुम मुझे आम खिलाते रहोगे। पर ऐसे खट्टे आम खाने से तो नहीं खाना अच्छा है। सचमुच आम बहुत ही खट्टे हैं।
लोमड़ी के कहने पर तोता हंसकर मज़ाकिया अंदाज़ में बोला, दीदी, कभी-कभी चाल भी खाल निकाल सकती है। यह सुन लोमड़ी उसे झपटने को दौड़ी। तोता उड़कर आम के पेड़ पर बैठ गया और गाने लगा – मीठे-मीठे रसीले आमों की क्या बात है। हम तो दिन रात इनके साथ हैं…? लोमड़ी मुंह बिचकाते हुए चली गई।
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