टेलीविजन आज विश्र्व का सबसे सशक्त प्रसारण माध्यम है। जो आज समूचे विश्र्व के जन-जीवन को नियंत्रित कर रहा है। आज टेलीविजन का प्रभाव इस तरह से है कि वह आपके आचार-व्यावहार, खान-पान एवं आपके मन-मस्तिष्क को भी हर क्षण परिवर्तित कर रहा है।
टेलीविजन के इस प्रसारण संप्रेषण का जरिया उसकी भाषा का संप्रेषण है, जिसे लेकर आज बवाल मचा हुआ है। टेलीविजन की भाषा को लेकर अब कोई उस तरह की गुंजाइश शेष नहीं रही क्योंकि टेलीविजन अपने विभिन्न विषय-वस्तु वाले कार्यक्रमों के द्वारा एक नया भाषाई परिदृश्य बना रहा है।
टेलीविजन के इस नये भाषाई परिदृश्य में जो भाषा टेलीविजन के कार्यक्रमों एवं प्रसारणों के द्वारा दर्शकों तक संप्रेषित हो रही है, वह ही आने वाले कल की भाषा है। अब इससे कतई इनकार नहीं किया जा सकता कि यह भाषा हिन्दी के मानकीकरण व्याकरणीय अवधारणा को तोड़ती है अथवा उसमें कुछ जोड़ती है। वर्तमान ग्लोबल परिदृश्य में टेलीविजन की महत्वपूर्ण भूमिका को भाषा के संप्रेषण का मूल आधार माना जा सकता है।
टेलीविजन की भाषा कैसी हो? यह एक दिलचस्प बहस का मुद्दा हो सकता है, परन्तु यह भी सच है कि आज टेलीविजन भाषा को अंतर्राष्ट्रीय भाषाई परिपेक्ष्य में प्रस्तुत करता है। टेलीविजन आज भाषा को दृष्य श्रवय के साथ नये स्वरूप में दिखाता तथा बनाता है। भाषा का वह चेहरा दिखाता है, जिससे मिलीजुली भाषा को (जिसे आप खिचड़ी भाषा हिंग्लिश अथवा पिंग्लिश जैसे नामों से जानते हैं) देखा जा सकता है। टेलीविजन के वर्तमान परिदृश्य में दुनिया के 300 से ज्यादा चैनलों से जिस नये रियालटी शो अथवा नये लाइफ शो द्वारा खुला प्रदर्शन एवं प्रसारण किया जा रहा है, वह बढ़ते विज्ञापन बाज़ार तथा टीआरपी रेटिंग के चलते अब टेलीविजन की भाषा का एक यथार्थ है।
बाज़ार टीआरपी तथा ग्लोबल टेलीविजन परिदृश्य ने भाषाओं का सीमा घेरा तोड़ दिया है। अब टेलीविजन की भाषा मिलीजुली ग्लोबल ही हो सकती है, परन्तु जिस तरह की छूट हमारे यहॉं हिन्दी टीवी चैनलों ने सस्ती लोकप्रियता अर्जित करने के लिये-रियालिटी शो तथा लाफ्टर शो इत्यादि में ली है, वह नयी पीढ़ी को किस दिशा में ले जा रही है तथा किस भाषा का संवर्धन कर रही है?
टेलीविजन की भाषा को लेकर सबसे मूल प्रश्र्न्न यह है कि आज हम अपने घर, परिवार, समाज एवं बाजार में क्या यह भाषा प्रयोग में नहीं लाते, जिस पर टेलीविजन संप्रेषण से प्रश्र्न्नचिह्न लगाये जा रहे हैं। सवाल यह भी है कि हम टेलीविजन जैसे सशक्त माध्यम द्वारा नयी भाषा के साथ अपनी भाषा को जिन्दा रख सकते हैं तथा नयी भाषा को भी आत्मसात कर सकते हैं। दुनिया बदल रही है तो फिर टेलीविजन की बदलती हुई भाषा पर इतना बवाल क्यों? इस बहाने शब्दों का भाषायी एवं भाषा का मानीकृत स्वरूप टूट रहा है। साहित्य में विषय वस्तु बदल रही हैं। संस्कृति के बहाने मानवाधिकार एवं मानवीय व्यवहार मनोविज्ञान एवं वैश्र्वीकृत नये संसार की छाप भी दिखायी दे रही है। सच तो यह है कि इक्कीसवीं सदी के इन दिनों में साहित्य, संस्कृति एवं आधुनिक आदमी की अभिव्यक्ति मानवाधिकार के परिवेश में शब्दों के नये स्वरूप में प्रस्तुत हो रही है।
टेलीविजन द्वारा समय की परिभाषा को हमारे पिछली सदी के पुरोधा भाषा वैज्ञानियों तथा समाज चिंतकों ने मानवाधिकार की अभिव्यक्ति के आइने में एक नये नज़रिये से देखने की कोशिश भी की है। एक नई भाषा समाज को नया व्यवहारिक मुहावरा देती है। यह व्यवहार समाज का मानवाधिकार अर्थात अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का पहला चरण है। दूसरे चरण में व्यवहार सामाजिक परिवर्तन के साथ-साथ नई संभावनाओं को भी दिखाता है तथा तीसरे चरण में भाषा एवं साहित्य संस्कृति का एक परिवर्तन एक नये अभिव्यक्ति के अधिकार को जन्म देता है। वह आधुनिक स्वरूप साहित्य, संस्कृति एवं भाषा का बदलता हुआ नया परिदृश्य है।
देखा जाये तो टेलीविजन अब नई दुनिया का बदलता हुआ नया चेहरा है। टेलीविजन ने हमारी दिनचर्या एवं हमारा जीवन बोध बदल दिया है। सच तो है कि अब टेलीविजन हमारी जिंदगी के हर क्षण को नियंत्रित करने लगा है।
बदलते हुए जीवन मूल्यों को जिस तरह से टेलीविजन ने बदला है तथा जिस तरह से नये मानवीय मूल्य एवं सरोकार बदले हैं, उन्होंने सामाजिक रिश्तों की एक नई इबारत लिखी है तभी तो टेलीविजन को इस समय का सबसे बड़ा परिवर्तनशील माध्यम देखा जाने लगा है। यह भी सच है कि आज टेलीविजन ने इन सभी रिश्तों की एक नई जीवनशैली को इसी परिपेक्ष्य में प्रस्तुत किया है।
टेलीविजन के कारण मानवीय रिश्ते एवं अभिव्यक्ति जिस संक्रमण के दौर से गुजर रहे हैं वह बेहद महत्वूपर्ण दौर है। विश्र्व के पिछड़े हुए अविकसित वर्ग के हाशिये के बाहर पड़े आम आदमी एवं महिलाओं की आवाज़ एवं मसीहाओं को जिस तरह से टेलीविजन ने एक नई जुबान एवं नया उत्साह दिया है, वह सिर्फ टेलीविजन का ही चमत्कार है।
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