किसी देश में खिलाड़ियों की संख्या में वृद्धि देश की खुशहाली, सुख-समृद्धि का प्रतीक मानी जाती है। किसान खुशहाल हों तो देश की आर्थिक स्थिति को मजबूती मिलती है। पुलिस बढ़े तो आंतरिक सुरक्षा में खतरे की घंटी है, अगर सुरक्षा सेवा में असंतोष हो तो सवाल उठता है कि देश की सुरक्षा का ज़िम्मा कौन लेगा? आज भारतवर्ष में सभी ओर असंतोष है। क्रिकेट छोड़कर विभिन्न खेलों और खिलाड़ियों की दुर्दशा हो रही है, खेल भावना समाप्त हो गई है। किसान अपनी बदहाली पर रो रहा है। देश की आंतरिक तथा बाहरी सुरक्षा से जुड़े सभी अधिकारी व कर्मी रुष्ट हैं। तीनों सेनाओं के कमांडर खुलकर असंतोष व्यक्त कर चुके हैं। भारतीय प्रशासनिक सेवाओं को छोड़ कर छठे वेतन आयोग ने वास्तव में सभी वर्गों को नाराज व निराश किया है। आभास हो रहा है कि यह आयोग केवल भारतीय प्रशासनिक सेवाओं के लिए, के द्वारा और उन्हीं का था।
आज़ादी के 60 साल बाद भी देश में सुरक्षा कर्मियों की अनदेखी लगातार होती रही है जबकि अपनी बहादुरी व छवि के हिसाब से सैन्य बलों का रिकार्ड हमेशा ही बेहतर रहा है। छठे वेतन आयोग की सिफारिशों ने सुरक्षा सेवाओं में असंतोष तथा भेदभाव को उजागर किया है। लंबे अरसे से वेतनमान व अन्य भत्तों में बढ़ोत्तरी की आस लगाये हुए जवानों के लिए आयोग की सिफारिशें केवल ऊंट के मुंह में जीरा साबित हुई हैं। राष्ट्र के कुल 42 प्रतिशत सरकारी कर्मी सशस्त्र सेवाओं में कार्यरत हैं तथा 37 प्रतिशत पुलिस में हैं। 22 प्रतिशत नौकरशाह हैं जिन्हें खुश रखने का जिम्मा ही मानो सरकार ने ले रखा है। भारतीय सेना का विश्र्व में नाम है। “इज्जत-ए-इकबाल’ के नारे से चलने वाले वतन के प्रहरी अपना दुखड़ा किसे सुनाएं। नौकरशाहों को अपनी आरामपरस्ती चाहिए और राजनेताओं को जी-हुजूर के साथ हर नैतिक-अनैतिक तरीके से धन उपार्जन करने वाले। सूचना तकनीक में प्रगति हुई है। बहुराष्ट्रीय कंपनियां हमारे राष्ट्र के होनहारों का औने-पौने दामों में दोहन कर रही हैं। हमारे नवयुवकों से तीन-चार लाख के पैकेज से काम लिया जा रहा है तथा विश्र्व में सूचना क्रांति पर भारत का कब्जा होने के बावजूद विकसित देशों को लगभग 1200 पाउंड प्रतिमाह 40 घंटों के हिसाब से दिया जाता है। अकुशल कारीगर की मजदूरी करीब 12 लाख रुपये वार्षिक है। हमारे युवा चार लाख में 18 घंटे प्रतिदिन काम कर रहे हैं। किसानों को उनके अनाज की उचित कीमत नहीं मिल रही है। कीमतें कम करने के नाम पर किसान को बलि का बकरा बनाया जा रहा है। मजबूरी में किसान गेहूं 1000 रुपये क्ंिवटल बेचने को बाध्य होगा लेकिन ज़रूरत पड़ने पर उसे बाज़ार से 1600 रुपये के हिसाब से खरीद करनी पड़ेगी।
निजी क्षेत्र की अपेक्षा बहुत कम तनख्वाह व अपर्याप्त सुविधाओं के चलते सैनिक व अधिकारी समय से पहले रिटायरमेंट लेने व नौकरी छोड़ने पर मजबूर हो रहे हैं। आंकड़ों के मुताबिक 2003 से 2007 के बीच वायुसेना में सेवानिवृत्तियों व इस्तीफों की संख्या 793 थीं, नौसेना में यह आंकड़ा 780 तक पहुँच गया। इस अवधि में 3474 आर्मी अधिकारियों ने समय से पहले रिटायरमेंट के लिए आवेदन किया जो कि एक रिकॉर्ड है। छठे वेतन आयोग से कोई राहत न मिलने के कारण इसमें और भी वृद्धि होगी। अधिकारी और जवान के बीच व्यावहारिक दूरी, प्राइवेट सेक्टर के मुकाबले कम वेतन व सुविधाएं, आतंकवाद प्रभावित क्षेत्रों में सदैव युद्ध की आशंका व ब्रिटिश शासनकाल से चल रहे सुरक्षा सेवाओं में प्रवेश के बेहद कठोर नियमों आदि के कारण सुरक्षा सैनिक हमेशा तनावग्रस्त रहता है। वह अपने भविष्य के लिए स्वयं को असुरक्षित महसूस करता है। वेतन आयोग प्रस्तावों की खामियों को दूर करके सुरक्षाबलों की इन समस्याओं को दूर करने की नितान्त आवश्यकता है।
सुरक्षा सेवाओं को चुस्त-दुरुस्त बनाये रखना एक राष्ट्रीय आवश्यकता है। लेकिन सरकार की उपेक्षापूर्ण नीति के कारण लगभग 94 प्रतिशत जवान अपनी 30 से 40 साल की उम्र में पुनर्वास की व्यवस्था के बिना ही रिटायर कर दिये जाते हैं। बहुत से राज्यों में एनआरआई की संपत्ति की सुरक्षा सरकार द्वारा की जाती है लेकिन एक सुरक्षा सैनिक जो कि कठिन परिस्थितियों को झेलता हुआ अपना आज, हमारे कल के लिए न्योछावर करने को तत्पर है, उसके घर-परिवार व आश्रितों की इस देश में कोई सुध नहीं लेता।
इसमें कोई शक नहीं कि वतन की आबरू पर मर मिटने वाली सेना को छठे वेतन आयोग ने निराश किया है। 14000 अधिकारियों की कमी वाली सेना में गोली के आगे कौन जाएगा? जांबाज अधिकारी-कर्मी अपनों से दूर वतन के लिए दिन-रात एक कर, हर खतरा मोल लेकर इज्जत-ए-इकबाल बुलंद रखने वालों को 40 प्रतिशत के इजाफे का झुनझुना दिखाया गया। शब्दों की जादूगरी हरेक की समझ में आ गई। वास्तव में यह मात्र चार प्रतिशत है जो महंगाई भत्ते से भी कम है। इसी कमी को राजनेताओं ने भी स्वीकार किया है। इसलिए एक संसदीय कमेटी का गठन कर दिया गया ताकि कुछ दिन के लिए समस्या को और लटकाया जा सके। लेकिन यह ज्वालामुखी दबने वाला नहीं। उनकी खून-पसीने की कमाई को उचित मान-इज्जत देनी ही होगी। उनका वेतन आयोग अलग गठित होना चाहिए जिससे प्रशासनिक सेवा अफसर दूर रखे जाएं और सुरक्षा बलों के प्रतिनिधि शामिल हों। वेतन आयोग देश में सैन्य बल कर्मियों, अफसरों आदि को मिलने वाली सुख-सुविधाओं का अध्ययन करे, तभी देश का भला हो सकेगा। प्रशासनिक सेवा अफसरों के लिए पॉंच वर्ष की सैन्य सेवा में रहना अनिवार्य कर दिया जाए और इस अवधि में कम से कम दो वर्ष तक वे लोग राष्ट्रीय सीमाओं पर रहें तो बेहतर होगा। प्रशासनिक सेवाओं में सुधार भी नितांत ज़रूरी है। किसी भी सेवा में प्रमुख केवल उसी विषय के विशेषज्ञ को ही लगाया जाये। विश्र्वभर में इतनी आजादी कहीं नहीं है जितनी हमारी प्रशासनिक सेवाओं को है। गौरतलब है कि अंग्रेजों ने लंदन के केंद्रीय चौराहे पर नौकरशाह का पुतला एक छोटे घोड़े पर लगाया है ताकि उसे अपनी औकात का हमेशा अंदाजा रहे। जबकि उसके आसपास सभी पुतले बहुत बड़े-बड़े हैं।
वेतन आयोग द्वारा प्रस्तावित विसंगतियों में प्रमुख हैं- सभी नागरिक सेवा अधिकारी नयी ब्रैकेट-4 जो 52000 रुपये प्रतिमाह से शुरू होती है, तक पहुँचेंगे जबकि सुरक्षा सेवा के केवल 3.5 प्रतिशत अधिकारी (मेजर जनरल तथा कुछ अन्य) ही वहॉं पहुँच पायेंगे। पुलिस के केवल दर्जन भर अधिकारी ही राष्ट्र के करीब 200 सचिव पद के आईएएस अधिकारियों की बराबरी तक आ सकेंगे। ग्रेड पे सभी आईएएस को स्टेट्स लाभ उपलब्ध होगा, जो सुरक्षा सेवा के केवल 15 प्रतिशत ब्रिगेडियर तथा उच्च अधिकारियों को सुलभ होगा। पुलिस में पदोन्नतियां तीन-चार वर्ष धीमी गति से चलेंगी। सभी आईएएस केवल 14 वर्ष की सेवाकाल में संयुक्त सचिव पद पर पहुँचने में सफल होंगे तथा पदोन्नति के सभी द्वार उनके लिए खुले रहेंगे। पुलिस महानिरीक्षक का पद 20 वर्ष की सेवा के बाद मिलेगा।
राजनेता अगर अभी भी नहीं जागे तो सुरक्षा सेवाओं का आक्रोश खतरनाक बन सकता है। हमारे प्रधानमंत्री ने भी माना है कि सुरक्षा सेवाओं के साथ अन्याय हुआ है।
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