दोस्तों, हम ज़िंदा रहने के लिए खाना खाते हैं। लेकिन सिर्फ खाना ही काफी नहीं होता, वह हजम भी होना चाहिए। फूड को हजम करने की प्रक्रिया पाचन या डाइजेशन कहलाती है। लेकिन यह प्रक्रिया वास्तव में होती कैसे है, आइए जानते हैं।
जैसे ही हम निवाला मुंह में डालकर चबाते और गटकते हैं, पाचन प्रक्रिया शुरू हो जाती है और यह एलिमेंटरी कैनाल में भी जारी रहती है। एलिमेंटरी कैनाल के सभी हिस्से आपस में जुड़े होते हैं, लेकिन इनके काम करने का अंदाज भिन्न होता है। मुंह गले में स्थित चौड़ी फिरनेक्स में खुलता है, जिस रास्ते का इस्तेमाल फूड व हवा दोनों के लिए किया जाता है। इसोफेगस या फूड पाइप छाती से गुजरता है और फिरनेक्स व पेट को जोड़ता है। पेट छोटी आंत से जुड़ा होता है। एलिमेंटरी कैनाल का आखिरी हिस्सा कोलन या बड़ी आंत होता है।
यह तो एलिमेंटरी कैनाल की संरचना हो गयी। अब इसमें पाचन क्रिया कैसे होती है?
मुंह में थूक की मदद से फूड का स्टार्च टूटता है। जब फूड पिसकर नरम हो जाता है तो वह फिरनेक्स के ज़रिये इसोफेगस में पहुंचता है और आखिरकार पेट में प्रवेश करता है। पेट में पाचन की ज्यादातर प्रक्रिया होती है। यहां पेट की दीवारों से बहुत से जूस निकलते हैं जो फूड के साथ मिल जाते हैं। हाइड्रोक्लोरिक एसिड भी इन जूसों में से एक है। एक अन्य जूस है पिप्सिन, जो प्रोटीन को साधारण पदार्थों में तोड़ता है ताकि पाचन में मदद मिले। स्टार्चों का टूटना जारी रहता है, जब तक कि पेट का पदार्थ एसिड न बन जाये। तब स्टार्च का पाचन तकरीबन बंद हो जाता है। फूड जब तक लिक्विड रहता है, पेट में रहता है। पेट में फूड घूमता है ताकि पाचन जूस उसमें अच्छी तरह से मिल जाये। जब फूड तरल होता है तो उसे चाइम कहते हैं। पेट के निचले हिस्से में एक वाल्व होता है जिसे पाइलोरस कहते हैं। यहां से चाइम छोटी आंत में जाता है। छोटी आंत 6.5 से 7.6 मीटर लंबी होती है। छोटी आंत के पहले हिस्से, डिसोडिनम में हाजमा जारी रहता है। पैन्क्रियाज़ और जिगर से जो जूस आते हैं, वह फूड को तोड़ने में मदद करते हैं। यहां प्रोटीनों का टूटना पूरा होता है। फैट्स फाइनर पाट्र्स में विभाजित होते हैं और यहां स्टार्च का पाचन पूरा हो जाता है।
पाचन किया गया फूड यहां हजम होकर रक्त और लिम्फ में चला जाता है। बड़ी आंत में पानी हजम होता है और कंटेंट अधिक ठोस हो जाते हैं, ताकि वह मल बनकर शरीर से बाहर निकल सकें।
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