झगड़ों के मूल में अक्सर गलतफहमियां ही होती हैं। कई लोगों को, जैसे कहते हैं न कि उल्टा चश्मा लगा कर देखने की आदत होती है। वे हमेशा अर्थ का अनर्थ करके ही रिएक्ट करते हैं। अब महिमा की बात ही लें। दीदी ने उसे सहेली के यहां से रात होने से पहले जल्द लौटने को कहा तो उसने सोच लिया कि दीदी सहेली के भाई शशांक की वजह से ऐसा कह रही हैं। वह सोचती हैं कि मेरा शशांक के साथ कोई चक्कर चल रहा है। जबकि खुद ने ऑफिस में अपने एक कलीग के साथ अफेयर चला रखा है। मेरे फ्रेंड्स ने कई बार उन्हें यहां-वहां साथ घूमते देखा है, पर बड़ी हैं, उनसे कौन कुछ कह सकता है। जैसी खुद हैं वैसा ही औरों को समझती हैं।” यह सोचकर महिमा उस दिन तो गुस्सा पीकर रह गई, लेकिन जब अगली बार एक दूसरी सखी के यहां जाते हुए भी अपनी वही हिदायत उन्होंने दोहराते हुए रात होने से पहले लौटने को कहा तो महिमा ने भड़कते हुए कहा, अब वहां कौन-सा दूसरा शशांक बैठा है जो तुम्हें मेरा रेप होने का डर है।”
ऐसी गलत बात सुनकर बेचारी दीदी सकते में आ गईं। उन्होंने तो वैसे ही रात को लड़कियों के साथ होने वाले हादसों के डर से बहन का भला चाहते हुए उसे वक्त से लौट आने को कहा था मगर महिमा ने बात को कैसा गलत मोड़ दे दिया था।
महिमा जैसे लोगों की कमी नहीं है, जो बातों को नकारात्मक रूप से देखने के आदी होने के कारण हमेशा अर्थ को अनर्थ में तब्दील कर देते हैं।
ज्यादातर यह बातें अपनी मानसिकता पर निर्भर करती हैं। जिनकी सोच सुलझी हुई होती है और जो बेवजह लड़ने-भिड़ने मनमुटाव या कड़वाहट पैदा करने में विश्र्वास न रखकर सौहार्दपूर्ण वातावरण बनाये रखने के हिमायती होते हैं, वे बातों को सही परिपेक्ष्य में रखकर ही देखते हैं। वहीं नकारात्मक सोच को ही तरजीह देने वाले लोग सीधी बात का भी उल्टा मतलब निकाल कर बेमजगी का वातावरण बना देते हैं।
अब एक प्रशंसा को कैसा गलत मोड़ दिया गया, उसका एक उदाहरण देखिए और स्वयं निर्णय कीजिए, यह कहां तक उचित है? मिसेज जैन और मिसेज आहूजा की नई-नई पहचान हुई थी। दोनों उम्रदराज महिलाएं थीं। मिसेज आहूजा बहुत समृद्धशाली परिवार से थीं। मिसेज जैन खाते-पीते घर की। मिसेज जैन के बेटे-बहू उसी शहर में अलग रहते थे। मगर उनके संबंध अच्छे थे। हर मां की तरह मिसेज जैन को भी अपने बेटे पर मान था। उनका बेटा उसी प्रेस्टिजियस क्लब का मेंबर था, जिसकी मेंबर मिसेज आहूजा भी थीं। सो वे उनके बेटे को अच्छी तरह से जानती थीं।
एक बार जब दोनों महिलाएं गपशप कर रही थीं, मिसेज जैन ने अपने बेटे की तारीफ करते हुए कहा, रवि बचपन से ही बहुत समझदार रहा है। पढ़ते हुए उसने कभी फिजूलखर्ची नहीं की। कभी हमसे घूमने-फिरने, फालतू उड़ाने के लिए पैसा नहीं मांगा। जो पैसा देते, उसे वक्त-बेवक्त के लिए संभालकर रखता था।”
मिसेज आहूजा ने क्लब के सारे अमीरजादों में यह बात फैला दी कि रवि की मां बता रही थी कि रवि शुरू से बेहद कंजूस रहा है। क्लब के मेंबर ज्यादातर नंबर दो की कमाई कर पैसे का भोंडा प्रदर्शन करनेवाले लोग थे। उन्होंने रवि की इस बात को लेकर इतनी खिंचाई की कि रवि बुरी तरह चिढ़ गया। उसने भी मां को गलत समझकर मां से नाराजगी प्रगट की। हैरान-परेशान मां समझ न पाई कि ऐसा मैने क्या कहा था, जो बेटा इतना चिढ़ा हुआ है।
अर्थ का अनर्थ हमेशा तबाही और आहत होने या करने का बायस ही नहीं होता। कभी-कभी इसका लाइटर साइड भी देखने को मिलता है। बीवी ने पति से कहा, फुल्के बाद में सेंकती हूं पहले आपका भर्ता तो बना लूं।” इस पर घर के बच्चे और पतिदेव ओर-जोर से हंसने लगे। उनकी हंसी से चौंकती मां ने जब अपने कथन पर गौर किया तो उनकी भी हंसी छूट गई।
माहौल अच्छा बना रहे, हमारी यही कोशिश रहनी चाहिए। समझदार लोग उल्टी बात भी सीधी कर के देखते दिखाते हैं। ऐसे लोगों को सभी मान-सम्मान से देखते हैं। संभलकर बोलने की आदत होने के बावजूद कभी चूक हो सकती है कभी ध्यान बंटा होता है। बात जल्दी में कहने के चक्कर के अधूरी-सी रह जाती है। ऐसे में एकदम से तुरंत रिएक्ट करते हुए बात को नकारात्मक रूप में नहीं लें। धैर्य से सुनें और समझें। अनसुनी करने में भलाई हो तो अर्थ को चुप्पी से पूर्ण विराम दें बनिस्वत उसका अनर्थ करने के।
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