जो कुछ तेरे नाम लिखा है, दाने-दाने में
वह तुझे ही मिले चाहे रखा हो तहखाने में
तूने इक फरियाद लगायी उसने हफ्ता भर मांगा
कितने हफ्ते और लगेंगे उस हफ्ते के आने में
एक दिए की िजद है आँधी में भी जलते रहने की
हमदर्दी हो तो फिर हिस्सेदारी करो बचाने में
आँसू आए देख टूटता छप्पर दीवारो-दर को
आखिर घर था, बरसों लग जाते हैं, उसे बनाने में
कुछ तो सोचो रोज वहीं क्यों जाकर मरना होता है
शाम की कुछ तो साजिश होगी सूरज तुम्हें दबाने में
जाकर तूफानों से कह दो जितना चाहे तेज चलें
कश्ती को अभ्यास हो गया लहरों से लड़ जाने में
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