हर सितम ऐ खुदा मुझे धोखा दिखाई दे
देखूँ जो महज़बीं को तो खर्चा दिखाई दे
मायके गयी है बीवी जो छुट्टी गुज़ारने
खिड़की में रोज़ चांद-सा चेहरा दिखाई दे
शौहर को किस तरह भला सेहत नसीब हो
अब दोनों बीवियों में जो झगड़ा दिखाई दे
खत पर भेजने वाले का पता न होने के बावजूद मज़मून (विषय) देख कर, जिस तरह कुछ लोग भेजने वाले का नाम जान लेते हैं, उसी तरह ये शेर पढ़ कर ऐसा लगा कि निश्र्चित ही यह रचना किसी हैदराबादी शायर की ही हो सकती है। किसी सुंदर बाला को देखकर हाथ जेब को टटोलने लगे, पत्नी के मायके जाने के बाद खिड़की वाला चेहरा चॉंद दिखाई दे और दोनों बीवियों के बीच झगड़ा देख कर पति का स्वास्थ्य बिगड़ जाने की बात हो तो ध्यान किसी हैदराबादी शायर की ही ओर जाता है, लेकिन ग़ज़ल के नीचे नाम और पता देख कर हैरत हुई। दुबई के एक विख्यात स्वास्थ्य केन्द्र में सेवारत डॉ. ज़ुबैर फारू़क पेशे से त्वचा विशेषज्ञ हैं और अरब नागरिक हैं तथा उनकी मातृ भाषा अरबी है, लेकिन वे उर्दू हास्य व्यंग्य शायरी में न केवल दिलचस्पी रखते हैं, बल्कि खुद भी कभी-कभार आज़मा लेते हैं। पति, पत्नी और बच्चों को समर्पित उनकी रचनाएं बड़ी दिलचस्प हैं। पत्नी के साथ आवश्यकता से अधिक प्रेम दर्शाने वाले को उर्दू में “ज़न मुरीद’ कहा जाता है। “ज़न’ स्त्री को कहते हैं और “मुरीद’ भक्त को। आम शब्दों में ऐसे लोग “जोरू के ग़ुलाम’ कहलाते हैं। डॉ. जुबैर ऐसी स्थिति का वर्णन कुछ इस प्रकार करते हैं।
वो मज़ा मेरी मुहब्बत ने दिया बीवी को
मैं जो पीता हूँ तो होता है नशा बीवी को
भोली भाली थी वो मासूम थी बच्चों जैसी
लग गयी कैसे ज़माने की हवा बीवी को
समंदर पार रहकर उनकी शायरी में अपनी जैसी ही स्थितियॉं देख कर ताज्जुब नहीं होना चाहिए, क्योंकि देश बदलने से स्थितियॉं बदलतींीर्ं है और ना जीने के अंदाज़ बदलते हैं। शादी के बाद प्रथम रात का वर्णन सुनने कि लिए दोस्त बेचैन रहते हैं। इस स्थिति में “होने- ना होने’ की घटना सुनाना आसान नहीं होता और इसी “होने-ना होने’ की बात उस समय सामने आती है, जब चमन में कोई गुल खिलता है। इसी बात को शायर कुछ इस ढंग से कहता है –
कल शब, शबे विसाल थी,
पर कब हुआ है कुछ
कहते हैं मुझ से दोस्त मेरे,
सब हुआ है कुछ
सैराब करता हूँ मैं तेरा गुलशने हयात
एक गुल खिले तो मानूँगा मैं
तब हुआ है कुछ
जलने लगा है जिस्म मेरा मीठी-सी आग में
मिलते ही उन लबों से मेरे लब, हुआ है कुछ
बच्चों के बारे में अक्सर कहा जाता है कि वे शरारती होते हैं। दूसरों की नींद हराम करते हैं। बच्चों के बारे में डॉ. ज़ुबैर की राय भी बड़ी दिलचस्प है। कहते हैं-
हम सोते हैं, तब शोर मचाते हैं ये आकर
सो जाते हैं फिर, लंबी सदा तान के बच्चे
लगता है कि घरवाले सभी फा़का करेंगे
खाना तो सभी खा गये, मेहमान के बच्चे
तरबियत हो तो सुधर जाएं हमेशा
हैवान के बच्चे हों कि इन्सान के बच्चे
हास्य व्यंग्यकारों के लिए हास्य पैदा करना आज आसान नहीं रहा है। राजनेताओं एवं प्रशासन से जुड़े पात्रों की हरकतों पर भी हंसी के बजाय अब गुस्सा ही आता है। डॉ. ज़ुबैर द्वारा टेलीफोन पर लिखी गयी एक रचना काफी लोकप्रिय हुई है, जिसमें उन्होंने रॉंग नम्बर, टेलीफोन सेवाएँ कट जाने, केवल फोन पर बातचीत करके मिलने से कतराने, पड़ोसियों द्वारा अपने रिश्तेदारों को पड़ोस का नंबर देने आदि विषयों पर भरपूर हास्य पैदा किया है।
होता है ज़िन्दगी में कई बार इस तरह
दो अजनबी दिलों को मिलाता है टेलीफोन
एक मसला अजीब-सा होता है इन दिनों
हर बार उसका बाप उठाता है टेलीफोन
सोचा है मैंने, मैं भी कटा दूंगा अपना फोन
देखेंगे कब पड़ोसी लगाता है टेलीफोन
पति के बेचारेपन पर भी उन्होंने खूब हास्य पैदा किया है। पत्नी की मानसिकता होती है कि वही पति अच्छा होता है, जो पत्नी की हर बात मानता है। सारी कमाई उसके हाथों में सौंपता है। पत्नी को समंदर का क्रोधित तूफान और पति को नदी की शांत धारा बताने वाले शायर की कुछ और पंक्तियॉं पेश हैं-
खुद अपने नसीबों का मारा है शौहर
कि बीवी से अपनी हारा है शौहर
हर एक नाज़ उसका उठाता है ऐसे
कि जैसे अभी तक कुंवारा है शौहर
वो जैसा भी है मर्द फारू़क लेकिन
सदा बीवियों का सहारा है शौहर
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