कावेरी नदी के तट पर बसा हुआ कुंभकोणम् नगर दक्षिण भारत का प्रमुख पावन तीर्थ है। यहां प्रति बारहवें वर्ष कुम्भ का मेला लगता है।
“कुंभकोणम्’ का संस्कृत नाम “कुंभघोणम्’ है। कहा जाता है कि ब्रह्माजी ने अमृत का घट (कुंभ) यहां लाकर रखा था। उस कुंभ की नासिका (घोणा) में से अमृत की कुछ बूंदें बाहर गिर गई थीं, जिससे सोलह किलोमीटर तक की भूमि भीग गयी थी। इसी कारण इस तीर्थ का नाम “कुंभकोणम्’ पड़ा। यह दक्षिण रेलवे के चेन्नई-एगमोर-तिरुचिरापल्ली-रामेश्र्वरम् रेलमार्ग पर स्थित है। सड़क मार्ग द्वारा कुंभकोणम् दक्षिण भारत के सभी नगरों से जुड़ा हुआ है।
कुंभकोणम् स्टेशन से लगभग तीन किलोमीटर उत्तरी दिशा में कावेरी नदी है। नदी के तट पर ही महाकालेश्र्वर, महादेव तथा अन्य कई देव मंदिर हैं, जिसमें सुन्दरेश्र्वर शिवलिंग तथा मीनाक्षी (पार्वती) की सुन्दर प्रतिमा स्थापित है। इसके समीप ही इन्द्र तथा महामाया का मंदिर है। महामाया के मंदिर में स्थापित मूर्ति के बारे में कहा जाता है कि वह मूर्ति स्वयं प्रकट हुई थी।
कुंभकोणम् में स्थित महामधम् सरोवर में श्रद्धालु स्नान करते हैं। वैसे भी कुंभकोणम् में अर्द्ध कुंभ स्नान के लिए यही पुण्यतीर्थ माना जाता है। यह सरोवर चारों ओर से पूरा पक्का बना हुआ है। कहा जाता है कि कुंभ पर्व के समय इस सरोवर में गंगाजी का प्रादुर्भाव होता है। सरोवर के नीचे से स्वयं जलधारा निकलती है। सरोवर के चारों ओर घाटों पर सोलह मंदिर बने हैं। प्रधान मंदिर सरोवर के उत्तर में है।
उस मंदिर में काशी विश्र्वनाथ तथा पार्वती जी की मूर्तियां स्थापित हैं। जनश्रुति है कि महामधम् सरोवर में कुंभ-पर्व पर गंगा, यमुना, सरस्वती, नर्मदा, गोदावरी, कावेरी, महानदी, पयोष्णी और सरयू ये नौ नदियां, जो कि “नौ गंगा’ कहलाती हैं, स्नान करने आती हैं। वे अपने जल में अवगाहन करने वालों की अनंत पाप राशि को नष्ट करती हैं। यह कुंभ-पर्व प्रति बारह वर्ष के पश्र्चात् लगता है। इसलिए इस सरोवर को “नवगंगा कुण्ड’ भी कहा जाता है। यहां स्वयं भगवान विष्णु, शिव तथा अन्य देवता कुंभ पर्व के समय आकर निवास करते हैं।
महामधम् सरोवर में कुंभेश्र्वर मंदिर की ओर जाने पर रास्ते में नागेश्र्वर मंदिर मिलता है। इस मंदिर में भगवान शंकर लिंग रूप में प्रतिष्ठित हैं। पार्वती जी का मंदिर भी यहीं है। परिक्रमा-मार्ग में अन्य देव मूर्तियां भी हैं। यहां सूर्य भगवान का भी एक मंदिर है। भगवान सूर्य ने यहां शंकरजी की आराधना की थी। इसके प्रमाण के रूप में नागेश्र्वर लिंग पर वर्ष में एक दिन सूर्य की रश्मियां पड़ती देखी जाती हैं। नागेश्र्वर मंदिर में एक उच्छिष्ट गणपति (गणेश का तंत्र रूप) की भी मूर्ति है।
नागेश्र्वर मंदिर से थोड़ी ही दूरी पर कुंभेश्र्वर मंदिर है। यही कुंभकोणम तीर्थ का प्रमुख मंदिर है। इसका गोपुरम् बहुत ऊँचा है तथा मंदिर का घेरा बहुत विस्तृत है। इसमें कुंभेश्र्वर लिंग मुख्य पीठ पर है। यह लिंग घड़े के आकार का है। मंदिर परिसर में ही पार्वती जी का मंदिर है। यहां पार्वती को “मंगलाम्बिका’ कहते हैं। यहां भी गणेशजी, सुब्रहमण्यम आदि की मूर्तियां परिक्रमा-मार्ग में हैं।
कुंभेश्र्वर मंदिर से थोड़ी दूर पर ही रामस्वामी मंदिर है। इसमें श्रीराम, लक्ष्मण, सीताजी की बहुत सुन्दर झांकी है। कहा जाता है कि ये मूर्तियां दारा सुरम् ग्राम के एक तालाब से निकली थीं। इस मंदिर में श्रीराम के जन्म से लेकर राज्याभिषेक काल तक की सम्पूर्ण लीलाओं को व्यक्त करने वाली बहुत ही सुंदर एवं कलात्मक मूर्तियां उत्कीर्ण की गई हैं। यह मंदिर अपनी कला के लिए प्रसिद्ध है।
रामस्वामी मंदिर के समीप ही शांगपाणि का विशाल मंदिर है। इस मंदिर में स्वर्ण मण्डित गरुड़ स्तम्भ है। मंदिर के घेरे में अनेक छोटे मंदिर तथा मण्डप हैं। प्रमुख मंदिर में भगवान शांगपाणि की मनोहर चतुर्भुज मूर्ति है। यह शेषशायी भगवान नारायण की मूर्ति है।
श्रीदेवी और भूदेवी भगवान की चरण-सेवा कर रही हैं। परिक्रमा मार्ग में श्री लक्ष्मी जी का मंदिर है। यहां का मुख्य मंदिर जो घेरे के मध्य में है, एक रथ के आकार का है, जिसमें घोड़े और हाथी जुते हुए हैं। मंदिर की आकृति इस बात का प्रमाण है कि भगवान शांगपाणि इसी रथ में बैठकर बैकुण्ठधाम से यहां पधारे थे।
शांगपाणि मंदिर से संबंधित एक कथा प्रचलित है। कहा जाता है कि भगवान विष्णु ने छाती पर लात मारने पर भी भृगु को कोई दण्ड तो दिया ही नहीं, उल्टे उनसे क्षमा मांगी, तब लक्ष्मी जी भगवान नारायण से रुठ गयीं। और यहां हेम नामक ऋषि के घर में कन्या रूप में अवतीर्ण हुईं। भगवान नारायण भी अपनी नित्यप्रिया लक्ष्मी जी का वियोग सह नहीं सके। वे भी यहां पधारे और ऋषि-कन्या से उन्होंने विवाह कर लिया। तभी से शांगपाणि और लक्ष्मीजी यहां स्थित हैं।
शांगपाणि मंदिर के समीप ही सोमेश्र्वर नामक छोटा-सा मंदिर है। इसमें दो भिन्न-भिन्न पीठों पर सोमेश्र्वर शिवलिंग तथा पार्वती की मूर्ति स्थापित है। कुंभकोणम् के बाजार के एक सिरे पर चक्रपाणि मंदिर है। इसमें भगवान विष्णु की मूर्ति है। इसके समीप ही श्री लक्ष्मी जी का मंदिर एक चबूतरे पर स्थित है।
कुंभकोणम् नगर के समीप ही वेदनारायण मंदिर है। कहा जाता है कि सृष्टि के प्रारम्भ में यहीं ब्रह्माजी ने नारायण का यज्ञ किया था। उस यज्ञ में वेदनारायण प्रकट हुए थे। भगवान वेदनारायण ने वहां अवभृत-स्नान के लिए कावेरी नदी को बुला लिया था, जो अब भी वहां हरिहर नदी के रूप में है। कुंभकोणम् में इन मंदिरों के अलावा विनायक, अभिवृद्धेश्र्वर, कालहर्सीश्र्वर, बाणेश्र्वर, गौतमेश्र्वर आदि मंदिर भी दर्शनीय हैं।
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